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Attorney General : कौन होते हैं अटॉर्नी जनरल? इस पद पर दोबारा वापसी करेंगे मुकुल रोहतगी

Attorney-General : एक अक्टूबर को मुकुल रोहतगी दोबारा अटॉर्नी जनरल बनेंगे. वह  केके वेणुगोपाल की जगह लेंगे. 

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Attorney General : कौन होते हैं अटॉर्नी जनरल? इस पद पर दोबारा वापसी करेंगे मुकुल रोहतगी
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डीएनए हिंदीः मुकुल रोहतगी (Mukul Rohatgi) देश के अगले अटॉर्नी जनरल (Attorney General) होंगे. वह केके वेणुगोपाल की जगह लेंगे. केंद्र सरकार की ओर से वेणुगोपाल का कार्यकाल बढ़ाने की पेशकश की गई थी लेकिन 90 साल की उम्र पार करने के बाद उन्होंने इनकार कर दिया. मुकुल रोहतगी इससे पहले 2014 से 2017 तक अटॉर्नी जनरल का पद संभाल चुके हैं. जून 2017 मेंउन्होंने व्यक्तिगत कारणों का हवाला देते हुए अटॉर्नी जनरल के पद से इस्तीफा दे दिया था. अब वह 1 अक्टूबर को दोबारा चार्ज लेंगे. आखिर अटॉर्नी जनरल कौन होते हैं और उनका काम क्या होता है? विस्तार से समझते हैं. 

संविधान में क्या प्रावधान?
संविधान के अनुच्छेद 76 में कहा गया है कि सरकार को कानूनी सहायता देने के एक अधिकारी की नियुक्ति की जाती है. यह सरकार के सबसे सबसे विधि अधिकारी होते हैं. इन्हें ही अटॉर्नी जनरल के नाम से जानते हैं. इनकी योग्यता सुप्रीम कोर्ट के जज के बराबर होती है. यह भारत के किसी भी न्यायालय में सरकार का पक्ष रख सकते हैं. यह किसी भी व्यक्ति का मुकदमा भी लड़ सकते हैं लेकिन शर्त यह होती है कि वह मुकदमा सरकार के खिलाफ नहीं होना चाहिए.  

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क्या होते हैं अधिकार? 
अनुच्छेद 88 के अनुसार अटॉर्नी जनरल संसद की कार्यवाही में भी हिस्सा से सकते हैं. भले ही यह संसद के सदस्य ना तो लेकिन इन्हें किसी भी सदन में बोलने का अधिकार होता है. यह विधेयक को लेकर होने वाली चर्चा में सरकार का पक्ष रख सकता है. इन्हें ना तो किसी बिल पर संसद में होने वाली वोटिंग में हिस्सा लेने का अधिकार होते है और ना ही इन्हें किसी भी प्रकार का कोई वेतन या भत्ता दिया जाता है. 

कैसे होती है अटॉर्नी जनरल की नियुक्ति?
संविधान के अनुच्छेद 76 अनुसार केंद्रीय मंत्रिमंडल की सलाह पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा अटॉर्नी जनरल की नियुक्ति की जाती है. इनसे त्यागपत्र लेने का अधिकार भी राष्ट्रपति के पास होता है. अटॉर्नी जनरल का पद संवैधानिक होता है. इनके कार्यकाल की कोई सीमा नहीं होती, यानी राष्ट्रपति अपनी इच्छानुसार इन्हें नियुक्त भी कर सकते हैं और हटा भी सकते हैं. 

सहायता के लिए होते हैं सॉलिसिटर जनरल
अटॉर्नी जनरल का काम सरकार के सभी बड़े मुकदमों की सुप्रीम कोर्ट में पैरवी का होता है. इतने बड़े काम को यह अकेले नहीं संभाल सकते हैं. ऐसे में इनकी सहायता के लिए सॉलिसिटर जनरल (Solicitor General) का पद बनाया गया है. इनकी संख्या 1 होती है. यह देश के दूसरे कानून अधिकारी होते हैं. वर्तमान में भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता हैं. वह 2018 से इस पद पर हैं. इनका पद वैधानिक होता है. इनकी मदद के लिए भी एडिशनल सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किए जाते हैं जिनकी संख्या 4 होती है. यह भी वैधानिक पद होता है. अगर राष्‍ट्रपति की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में कोई संदर्भ उठता है तो संविधान के अनुच्‍छेद 143 के तहत अटॉर्नी और सॉलिसिटर जनरल, दोनों में से कोई भी सरकार का प्रतिनिधित्‍व कर सकता है. काम के लिहाज से देखें तो अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल में कोई अंतर नहीं है. हां, अटॉर्नी जनरल का पद संवैधानिक है मगर सॉलिसिटर जनरल और एडीशनल सॉलिसिटर जनरल के पद महज वैधानिक. 

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राज्यों में होते हैं एडवोकेट जनरल  
जिस तरह केंद्र सरकार को कानून सहायता देने का काम अटॉर्नी जनरल का होता है ठीक उसी तरह राज्य सरकार को कानूनी सलाह देने का काम एडवोकेट जनरल (Advocate General) यानी महाधिवक्ता राज्य प्रमुख को विधि संबंधी सलाह देने का कार्य करता है. वो राज्य के दोनों सदनों ( विधानसभा तथा विधान परिषद ) की कार्यवाही में और सदन में बोलने की शक्ति रखता है. इनका पारिश्रमिक संविधान द्वारा निर्धारित नहीं है, लेकिन सरकार द्वारा निर्धारण के अनुसार वेतन प्राप्त होता है. एडवोकेट जनरल को राज्य के सीओएम की सलाह पर राज्यपाल द्वारा नियुक्त किया जाता है और एडवोकेट जनरल अपना इस्तीफा भी राज्यपाल को ही सौंपते है. महाधिवक्ता किसी राज्य का प्रथम विधि अधिकारी होते हैं. 

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