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Book Review: 'चांदपुर की चंदा' में है राजनीति और प्रेम के साथ देश-दुनिया के तमाम मुद्दों का कॉकटेल

इस उपन्यास की कहानी सिर्फ चांदपुर की चंदा की ही नहीं, देश भर के गांवों की उन सभी चंदाओं की है जिन्हें कदम कदम पर खुद को साबित करना पड़ा है.

Book Review: 'चांदपुर की चंदा' में है राजनीति और प्रेम के साथ देश-दुनिया के तमाम मुद्दों का कॉकटेल

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-श्रुति गौतम 

हिन्द युग्म प्रकाशन द्वारा प्रकाशित ‘चांदपुर की चंदा’ अतुल कुमार राय का पहला उपन्यास है लेकिन उपन्यास के समस्त तत्त्वों को समाहित करते हुए परिवेश, कथानक, शिल्प एवं चरित्र-चित्रण के क्रम में इतनी परिपक्वता को दिखाता है जो आश्चर्यजनक रूप से प्रशंसनीय है.
 
उपन्यास का नायक है शशि और नायिका है चंदा. दोनों सरयू किनारे बसे एक गांव चांदपुर में रहते है जो न केवल इस कथा का परिवेश है वरन् उपन्यास में एक अहम किरदार भी रखता है. इस कहानी का बीज रूप में जन्म सोशल मीडिया पर वायरल हुए ' पिंकिया का लव लेटर' नामक प्रेमपत्र से हुआ जो काफी प्रशंसित हुआ और इस प्रेमपत्र के पीछे की कहानी के प्रति पाठकों की जिज्ञासा को समाप्त करते हुए इस उपन्यास के रूप में वह बीज 287 पृष्ठों के विशाल वटवृक्ष का रूप ले चुका है जिसकी एक शाखा पर बाढ़ की समस्या से ग्रस्त चांदपुर दियरा है तो दूसरी तरफ दहेज की समस्या से ग्रस्त गुड़िया और पूनम जैसी कई लड़कियां. 

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उपन्यास की कहानी को आगे बढ़ाते हुए अतुल हास्य - व्यंग्य का भरपूर प्रयोग करते हैं और राजनीति, प्रेम, शिक्षा, बेरोजगारी, दहेज जैसी समस्याओं पर इतनी सहजता से प्रहार करते हैं कि सहसा राग दरबारी स्मरण हो आती है.. कई पंक्तियां बेहद सुन्दर बन पड़ी हैं. 
मसलन-
 
"इस देश मे ड्राइविंग लाइसेंस लेने से आसान ठेकेदारी का लाइसेंस लेना है और खैनी बनाने से से आसान सड़क बनाना।" 
 
“एक साल की गारंटी हो या पांच साल की.. फ्रिज, कूलर, टीवी, एसी, सोफा, पलंग की गारंटी तो हर कंपनी दे देती है लेकिन दहेज में दिए जाने वाले इन सामानों से आपकी बेटी पांच दिन भी खुश रहेगी, इसकी गारंटी आज तक न कोई कंपनी दे सकी है, न ही कोई दुकानदार ले सका है.” 
 
उपन्यास में मंटू के मित्र राकेश, मौसी, गुड़िया, झांझा बाबा, डब्ल्यू नेता, कविराज चिंगारी जी, सुखारी डॉक्टर, उमेश चौधरी सहित सभी किरदारों का चरित्र चित्रण इतनी कुशलता से किया गया है कि पढ़ते वक्त वे हमें हमारे आप-पास के किरदारों की याद दिलाए बिना नहीं रहते. 

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लेखक के बारे में
अतुल मूल रूप से संगीतकार हैं और संगीत पूरे उपन्यास में एक महत्वपूर्ण भूमिका में है, चाहे वह 90's नॉस्टेल्जिया वाला फिल्मी संगीत हो, चाहे होली और ब्याह के गीतों में गूंथे लोक संगीत के विभिन्न स्वर. कहानी के साथ आगे बढ़ते-बढ़ते साथ में प्रयुक्त होते विभिन्न लोकगीत इस उपन्यास के सौंदर्य को कई गुना बढ़ा देते हैं.  उपन्यास में आंचलिकता न केवल परिवेश में है वरन् भाषा में भी परिवेश जन्य भाषा का ही प्रयोग किया गया है जो उपन्यास को सरस और आकर्षक बनाता है लेकिन उसकी बोधगम्यता के साथ भी कोई समझौता नहीं करता. संवाद चुटीले हैं एवं पात्रों के भावानुकूल उन्हीं की भाषा में लिखे गए हैं.
 
देश-दुनिया के मुद्दे
गांव जवार की विभिन्न समस्याएं, विभिन्न किरदार, विभिन्न प्रसंग आपस में मिलकर इस उपन्यास को पठनीय बना देते हैं. कथानक इतना कसा हुआ और प्रवाहमान और रोचक है कि लगभग तीन सौ पृष्ठों का यह उपन्यास एक सेकंड के लिए भी जटिल और उबाऊ नहीं लगता. एक बार शुरू करने के बाद इसे पूरा पढ़े बिना रखना असंभव सा लगता है. 
 
दहेज और बाढ़ दो मुख्य समस्याओं के रूप में प्रतिबिंबित हुई हैं, जिनके साथ राजनीति, शिक्षा व्यवस्था की दुर्दशा, चुनाव आदि कई अन्य समस्याओं को उठाने का भी लेखक का प्रयास रहा है. कहीं प्रेम का पारावर है.. सिर्फ तुम जैसी फिल्मों और गीतों से किशोरवय के प्रेम की सुन्दर अभिव्यंजना है  तो कहीं करुणा का अथाह समंदर. गुड़िया और उसकी मां का मृत्यु का प्रसंग, गाड़ीवान वाला प्रसंग बेहद मार्मिक बन पड़ा है. उपन्यास का अंत बहुत अर्थपूर्ण है, प्रेरक है और मनुष्य की अप्रतिम जिजीविषा में आशा को बनाए रखने में सफल रहा है. 
 
मोबाइल से दिन में पचास टेक्स्ट करने वाली, इंस्टाग्राम पर दिन भर लाइव रहने वाली पीढ़ी को हफ्तों लगाकर प्रेमपत्र लिखने और महीनों बाद उसका उत्तर मिलने की बात समझना मुश्किल हो सकता है लेकिन पिंकी और मंटू के निश्चल प्रेम को समझना कितना सरल है ये पुस्तक की सोशल मीडिया पर आती हुई प्रतिक्रियाओं से समझा जा सकता है. 
 
उपन्यासकार ने पिंकी के माध्यम से महादेवी वर्मा की कुछ कविताएं भी उपन्यास में प्रयुक्त की हैं जो अर्थपूर्ण रूप से प्रसंग की प्रभावोत्पादकता में वृद्धि करती हैं. 
 
फिर कहानी सिर्फ चांदपुर की चंदा की ही तो नहीं, देश भर के गांवों की उन सभी चंदाओं की है जिन्हें कदम कदम पर खुद को साबित करना पड़ा है, जिनके लिए घर की दहलीज ही सबसे बड़ी कैद बन जाती है, जो आज भी दहेज दानव की शिकार है और आशा है कि वे भी एक दिन चंदा की तरह अपने हिस्से का आसमान अपने नाम कर उस पर पूरी शिद्दत से चमकेगी और चंदा की तरह महादेवी के शब्द कह उठेगी: जाग, तुझको दूर जाना. 
 
पुस्तक रोचक, प्रभावी और पठनीय है. उपन्यासकार चांदपुर की चंदा के लिए बधाई के पात्र है.
 
(किताब के लेखक अतुल कुमार राय फ़िल्म की पटकथा लिखते हैं. किताब की समीक्षक श्रुति गौतम, अजमेर (राजस्थान) में असिस्टेंट टैक्स कमिश्नर हैं.)

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