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Gyanvapi Case: ज्ञानवापी मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचा हिंदू पक्ष, कैविएट दाखिल कर की ये मांग

Gyanvapi Case: वाराणसी कोर्ट ने ज्ञानवापी मामले में मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज कर दी थी. अब मामला हाईकोर्ट जा सकता है. 

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ज्ञानवापी मस्जिद मामले में आज इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई होनी है.  

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डीएनए हिंदीः वाराणसी की जिला अदालत ने ज्ञानवापी (Gyanvapi Case)-श्रृंगार गौरी मामले की हिंदू पक्ष की याचिका को सुनवाई के योग्य मानते हुए मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज कर दिया था. अब श्रृंगार गौरी मामले में रोजाना पूजा के अधिकार की याचिका पर सुनवाई जारी रहेगी. जिला अदालत की ओर से जारी फैसले के बाद हिंदू पक्ष ने ज्ञानवापी मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट में कैविएट () अर्जी दाखिल की है. हिंदू पक्ष की ओर से ऐसा इसलिए किया गया है कि जिससे हाईकोर्ट इस मामले में हिंदू पक्ष को सुने बिना कोई आदेश नहीं देगा. इस मामले में 28 सितंबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई होनी है. 

कोर्ट ने क्या सुनाया था फैसला? 
सोमवार को वाराणसी जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की कोर्ट ने ज्ञानवापी मामले में फैसला दिया था कि हिंदू पक्ष की याचिका सुनवाई के योग्य है. कोर्ट ने कहा कि इस मामले में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 इस मामले में लागू नहीं होता है. पिछले साल अगस्त में 5 महिलाओं ने वाराणसी सिविल जज (सीनियर डिविजन) के सामने एक याचिका दायर की थी. इसमें उन्होंने ज्ञानवापी मस्जिद के बगल में बने श्रृंगार गौरी मंदिर में रोजाना पूजन-दर्शन की अनुमति देने की मांग की थी. महिलाओं की याचिका पर सिविल जज ने ज्ञानवापी परिसर का सर्वे भी करवाया था. बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ये मामला सिविल जज की अदालत से जिला कोर्ट को ट्रांसफर कर दिया गया था.

ये भी पढ़ेंः क्या श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद में भी निष्प्रभावी हो सकता है 1991 का प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट?

क्या होती है कैविएट? 
कैविएट एक तरह की याचिका ही है, जिसमें कोई भी पक्षकार किसी मामले में पार्टी बनाए जाने की संभावना के आधार पर न्यायालय के समक्ष एक कैविएट दाखिल करके यह कह सकता है कि अगर उससे जुड़ा हुआ मामला कोर्ट में आए तो उसे सुने बगैर मामले में किसी प्रकार का कोई भी आदेश नहीं दिया जाए. सिविल प्रोसीजर कोड की धारा 148 A में कैविएट दाखिल करने के अधिकार के बारे में लिखा हुआ है. किसी भी देश के कानून में नैसर्गिक न्याय का सिद्धांत होता है जिसके तहत सभी पक्षकारों को बराबर सुनवाई का अधिकार मिला है. यानी किसी भी केस में सभी पक्षकारों से बराबर सबूत लिए जाएं और उनकी दलीलों को सुनने के बाद ही कोर्ट कोई फैसला सुनाए. 

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