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जबना चौहान को PM Modi से लेकर Akshay Kumar तक कर चुके हैं सम्मानित, कभी करती थीं खेतों में मजदूरी

ऐसी मिसालें हमारे सामने हैं, जब एक छोटे शहर की लड़की बड़े शहर वाले लोगों के लिए मिसाल बनी है. 'छोटे शहर की लड़की' सीरीज में आज कहानी जबना चौहान की.

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डीएनए हिंदी: आप छोटे से किसी कस्बे या गांव में पली-बढ़ी हैं. आपने कभी महानगरों की दुनिया नहीं देखी है. अगर ये बातें आपकी जिंदगी से जुड़ी हैं और लोग कहते हैं कि आप कुछ नहीं कर सकतीं, तो उन्हें ये खबर जरूर पढ़वाइएगा.

साल 2016 में जबना चौहान ने देश की सबसे कम उम्र की सरपंच बनकर जो मिसाल कायम की, उसकी दाद दुनिया भर में दी गई. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें सम्मानित किया था. फिल्म अभिनेता अक्षय कुमार ने भी अपनी फिल्म 'टॉयलेट-एक प्रेमकथा' के प्रमोशन के दौरान जबना के स्वच्छ भारत को लेकर किए गए कामों की वजह से उन्हें खासतौर पर बुलाकर उनकी तारीफ की थी. 

एक छोटे से गांव के बेहद गरीब परिवार में जन्म लेने के बाद यहां तक का सफर तय करना आसान नहीं रहा होगा. इस बारे में जब हमने जबना से बात की तो उन्होंने अपनी कहानी को कुछ इस तरह बयां किया, कि कोई भी उससे प्रेरणा ले सकता है. जबना कहती हैं, ' मेरा जन्म बहुत गरीब किसान परिवार में हुआ था.  हम तीन भाई-बहन हैं. एक भाई है, जो देख नहीं सकता. मैं तीनों में सबसे छोटी हूं. बचपन से ही हम दूसरे लोगों के खेतों पर काम करने जाते थे. मनरेगा योजना के तहत जो काम मिलता था, उसे करके कुछ पैसे जुटा पाते थे. गरीबी ज्यादा थी और जिम्मेदारी भी. तभी सोच लिया था कि कुछ करके दिखाना है. कुछ बनना है. आने वाली पीढ़ी के सामने ये परेशानी नहीं होनी चाहिए. हालांकि पिता ने पहले ही कह दिया था कि वह चाहकर भी हमें पढ़ा नहीं सकते. मुश्किल से हमारी दसवीं तक की पढ़ाई पूरी हुई. इसके बाद पढ़ाई का कोई जरिया नहीं था.'

पत्रकार बनकर उठाए लोगों के मुद्दे
इन हालातों में कोई भी पढ़ाई करने की बात सोच तक नहीं सकता था. मगर जबना ने ऐसे हालातों में भी नए रास्ते बनाए और पिता से कहा कि वो पढ़ना चाहती हैं. पढ़ाई का खर्च खुद उठाने की कोशिश करेंगी, लेकिन उन्हें पढ़ने दिया जाए. पिता ने भी हामी भर दी. किसी तरह खेतों पर काम करके ही उन्होंने 12वीं की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद कॉलेज के लिए उन्हें मंडी जाना पड़ा. वह बताती हैं, 'हमारे गांव में कोई डिग्री कॉलेज नहीं था, इसी वजह से मुझे पढ़ाई पूरी करने के लिए मंडी जाना पड़ा. इस मामले में मेरे चाचा ने मेरी मदद की. उन्होंने मुझे एक अखबार में पार्ट टाइम नौकरी करने का मौका दिया. ऐसा करके मैं अपना खर्चा पूरा करने लगी. अखबार के लिए खबरें जुटाने का जो सिलसिला शुरू हुआ था, उसकी वजह से मैं मंडी के कोने-कोने तक पहुंच गई. हर मुद्दे पर मैंने गहराई से लिखना शुरू कर दिया. इसके बाद एक लोकल न्यूज चैनल में बतौर रिपोर्टर मेरी नौकरी लग गई. बतौर पत्रकार मैंने ना सिर्फ हाशिए पर खड़े लोगों के मुद्दे उठाए, बल्कि आम जनजीवन को प्रभावित करने वाली सभी समस्याओं पर जमकर लिखा और अधिकारियों तक ये समस्याएं पहुंचाकर उनका समाधान भी कराया. '

21साल की उम्र में बनीं सरपंच
यही वजह रही कि एक साल के अंदर ही मंडी में जबना एक जाना-पहचाना नाम बन गई थीं. साल 2016 में जब पंचायत चुनाव आए, तो उनके चाचा ने चुनाव में खड़ा होने के लिए कहा. उस वक्त जबना की उम्र सिर्फ 21 साल थी. उस वक्त ऐसा कोई भी फैसला लेना काफी मुश्किल था. राजनीति की कोई समझ नहीं थी. करियर के लिए राजनीति को चुनने के बारे में कभी सोचा नहीं था. हालांकि परिवार की सलाह और गांव वालों के कहने पर जबना चुनाव में खड़ी हो गईं.

इस बारे में जबना बताती हैं, ' पिता ने कहा और गांववालों ने भी सपोर्ट किया तो मैं चुनाव लड़ने को तैयार हो गई, लेकिन विरोध करने वाले लोग भी कम नहीं थे. कई लोगों ने गांव में ये कहकर प्रचार कर दिया कि जबना जैसी सरपंच चुनने से नुकसान हो सकता है, क्योंकि कुछ वक्त में उसकी शादी हो जाएगी और वो ये जिम्मेदारी नहीं निभा पाएगी. किसी लड़की को सरपंच बनाना सही नहीं होगा. इतनी कम उम्र की लड़की क्या निभाएगी जिम्मेदारी... इन सब बातों से ध्यान हटाकर मैंने सिर्फ काम पर ध्यान दिया और नतीजे में मुझे मिली जीत.'

इस जीत के साथ ही जबना देश की सबसे युवा सरपंच बन गईं.  बतौर रिपोर्टर जबना ने जिन मुद्दों को देखा था अब सरपंच के तौर पर उनके खिलाफ आवाज बुलंद करना शुरू किया. इन्हीं में से एक था शराबबंदी. गांव के ज्यादातर पुरुष नशे के आदी हो चुके थे. महिलाएं दिन भर खेतों में काम करती थीं और रात में पुरुष शराब पीकर उनके साथ मारपीट करते थे. सरपंच चुनाव जीतने के बाद जबना ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया. 

मिला बेस्ट सरपंच का अवॉर्ड
जबना बताती हैं, ' मैंने थार्जुन पंचायत में एक प्रतिनिधि मंडल बनाया और क्षेत्र के डिप्टी कमिश्नर को शराब की दुकानें बंद कराने संबंधी ज्ञापन सौंपा. इसके बाद पास के गांव के लोगों से भी मिलना शुरू किया. उन्हें इस मुद्दे के बारे में जागरुक किया और शराबबंदी से जुड़े कैंपेन करने के लिए राजी किया. लंबे समय तक चली कवायद के बाद एक मार्च 2017 को ग्रामसभा ने शराब और तंबाकू जैसे उत्पाद बेचने पर प्रतिबंध संबंधी आदेश पारित किया. इस दौरान जबना को कई तरह की धमकियां भी मिलीं, मगर वो रुकी नहीं. इतना ही नहीं मंडी जिले की 432 से ज्यादा पंचायतों में से जबना को बेस्ट प्रधान का अवॉर्ड भी मिला. अब जबना साल 2022 में होने वाले विधानसभा चुनावों में भी खड़े होने की तैयारी कर रही हैं. 

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