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छोटे शहर की लड़की : TATA-BIRLA की तरह JHAJI को इंटरनेशनल ब्रांड बनाने में जुटी ननद-भाभी की जोड़ी

आपका छोटे शहर की लड़की होना, आपके भविष्य का रास्ता तय नहीं कर सकता. ऐसे उदाहरण सामने हैं, जब एक छोटे शहर की लड़की बड़े शहर वालों के लिए मिसाल बनी है.

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kalpana jha and Uma Jha

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डीएनए हिंदी: बागमती नदी के किनारे बसा बिहार का दरभंगा जिला भी उन छोटे शहरों में शुमार है, जहां की लड़कियों या महिलाओं से कुछ बड़ा करने की उम्मीद नहीं पाली जाती. इसी छोटे शहर से आती हैं कल्पना झा. जो 50 की उम्र पार करने के बाद भी बड़े शहर वालों के लिए एक उदाहरण कायम कर रही हैं. हमने कल्पना से ही जानी उनकी कहानी-

जिम्मेदारी चली आगे, सपने रहे पीछे
'कम उम्र में शादी हो गई थी. पति प्रशासनिक सेवा में थे. उनकी नौकरी में अक्सर अलग-अलग जगहों पर ट्रांसफर होता रहता था. पति की सेहत भी कुछ ठीक नहीं रहती थी. फिर दो बच्चे भी थे. इन सारी जिम्मेदारियों के बीच कभी कुछ करने का ख्याल भी आया तो उसे आने से पहले ही रोक दिया.' वैसे तो कल्पना इस एक वाक्य में अपनी पूरी कहानी कह देती हैं, लेकिन इस कहानी के बीच उनके सपने भी कई बार अहम किरदार बने जिनका कई सालों तक कोई जिक्र नहीं हो पाया. बताती हैं, 'पति की सेहत कुछ ठीक नहीं रहती थी. उनका ख्याल रखने के लिए हमेशा सतर्क रहना होता था. दो बच्चों को पढ़ाना-लिखाना भी एक अहम जिम्मेदारी थी. ऐसे में एम.ए की डिग्री लेने के बाद भी कभी हिम्मत नहीं कर पाई कि कुछ करूं, मन बहुत करता था.' ऐसे में कल्पना ने जिंदगी की परिस्थितियों के साथ चलने का फैसला किया और सपनों को पीछे ही रखा, सिर्फ जिम्मेदारी निभाती रहीं.

पति का रिटायरमेंट बना अहम पड़ाव
पति के रिटायरमेंट के बाद अपने शहर दरभंगा में ठहरना और बसना हुआ. तब तक दोनों बच्चों की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी. वो अपने करियर में पूरी तरह सेटल हो चुके थे. अब 52 वर्षीय कल्पना के पति को उनसे किया हुआ वादा याद आया. कल्पना बताती हैं, 'पति जानते थे कि मैं हमेशा से कुछ करना चाहती थी. वह अक्सर कहते भी थे कि ये जिम्मेदारियां पूरी हो जाएं फिर मैं पूरी तरह तुम्हारे सपनों को सच करने में साथ दूंगा. रिटायरमेंट के बाद उन्होंने सबसे पहले मुझसे किया ये वादा ही याद किया. इस पर बच्चों ने भी साथ दिया. जब हर तरफ से प्रोत्साहन मिला, तब मैंने बिजनेस करने का सोचा.'

अचार को बनाया बिजनेस
अचार को बिजनेस के लिए क्यों चुना? इस सवाल के जवाब में कल्पना बताती हैं, 'जब बिजनेस करने का मौका लगा. सबका साथ मिला तो सोचा अपने हुनर को आगे बढ़ाऊं. मैं दो चीजों में काफी अच्छी हूं. एक मधुबनी पेंटिंग, जो बिहार की पहचान है. दूसरा अचार, जो कि बिहार का अलग स्वाद लिए होता है. इन दो में से मुझे एक चुनना था. मैंने सोचा मधुबनी पेंटिंग के बारे में तो दुनिया भर में लोग जानते हैं लेकिन बिहारी खाने का स्वाद अभी देश दुनिया में उस तरह मशहूर नहीं है. यहीं से अचार का ये बिजनेस शुरू हुआ. मेरे हाथ का अचार लोग काफी पसंद करते हैं. ये मेरी मां और सास की रेसिपी है, लेकिन जो भी खाता हमेशा और मांगकर ले जाता. बस घर पर ही अचार बनाकर आगे भेजना शुरू किया. देखते ही देखते घर पर बना अचार हाथों हाथ बिकने लगा. काम बढ़ा तो इसमें मेरी भाभी उमा झा ने भी मेरा साथ दिया. वह स्कूल में पढ़ाती हैं, लेकिन पास में ही रहने की वजह से स्कूल के बाद का समय उन्होंने अचार के बिजनेस में देना शुरू कर दिया. 

इसलिए सोचा 'झाजी' नाम
अचार के इस बिजनेस का नाम  'झाजी'  क्यों रखा? इसके पीछे भी सपनों को उस ऊंचाई तक ले जाने वाली सोच है, जो कभी आपको हारने या थकने नहीं देती. कल्पना कहती हैं, जब टाटा और बिरला जैसे लोगों ने अपने सरनेम पर अपने बिजनेस आगे बढ़ाए, तो हम क्यों पीछे रहें. जब नाम सोचने की बात आई, तो एक ही बार में ये नाम हमारे सामने था. हमारा सरनेम झा है और हमारे आसपास के लोग हमें झाजी कहकर बुलाते हैं. बस यहीं से नाम रख लिया झाजी. 

आसपास के लोगों को भी मिला रोजगार
कल्पना कहती हैं, 'कभी सोचा नहीं था कि ये बिजनेस ना सिर्फ मेरे सपने पूरे करेगा बल्कि इससे हम आस-पास के लोगों की मदद भी कर पाएंगे. शुरुआत में हमने 10 लोगों को काम पर रखा. अब ये संख्या बढ़ रही है. आसपास के लोगों को रोजगार मिल रहा है. पास के गांव से भी 20-25 महिलाओं को बुलाकर उनकी मदद से हम कटिंग और चॉपिंग का काम करते हैं. इससे उनकी भी कमाई हो जाती है और हमारा भी काम हल्का हो जाता है.' 

ऑर्गेनिक अचार, 15 से ज्यादा वैरायटी
झाजी अचार की पहले 10 वैरायटी ही उपलब्ध थीं. अब 15 तरह के अचार बेचे जा रहे हैं. इनमें पांच तरह के आम के अचार, लहसुन, हरी मिर्च, गोभी, इमली की चटनी शामिल है. पारम्परिक बिहारी तरीके से अचार बनाया जाता है. धूप में सुखाकर अचार तैयार होता है. अक्टूबर 2020 में बिज़नेस के लिए आवेदन दिया था. इसके बाद जून, 2021 में JhaJi स्टोर की ऑनलाइन शुरुआत हो गई. कल्पना के बेटे मयंक इसकी ऑनलाइन मार्केटिंग का काम संभालते हैं. अब एक बार में एक हजार किलो तैयार किया जाता है. 

भविष्य के इरादे
कल्पना बताती हैं, 'JhaJi स्टोर के दो महीने में ही दो हजार ग्राहक बन गए थे. पिछले दो महीने से 500 किलो के ऑर्डर्स भी मिल रहे हैं. मुंबई, बेंगलुरु, दिल्ली और पश्चिम बंगाल से खूब ऑर्डर्स मिल रहे हैं. फिलहाल घर से ही काम किया जा रहा है, लेकिन जल्द ही इसकी बड़ी यूनिट खोलने की योजना है और भविष्य में सिर्फ अचार ही नहीं बिहार का सारा ऑथेंटिक फूड हमारी फूड चेन में शामिल होगा. 

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