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अब अमेरिका और यूरोप की यात्रा में लगेगा कम समय, जानें क्या है वजह

अगस्त 2021 में अफगानिस्तान में तालिबान के कब्ज़ा करने के बाद विमानों को तालिबान के ऊपर से उड़ान भरने पर रोक लगा दिया गया था.

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अब अमेरिका और यूरोप की यात्रा में लगेगा कम समय, जानें क्या है वजह

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डीएनए हिंदी: बहुत से भारतीय हैं जो विदेश की यात्रा करते हैं. जिसमें उन्हें काफी समय तक फ्लाइट में बैठना पड़ता हैं तो ऐसे यात्रियों के लिए एक अच्छी खबर है. अब अमेरिका और यूरोप जाने वाले यात्रियों को फ्लाइट में ज्यादा टाइम तक नहीं बैठना पड़ेगा. अब इस यात्रा में उन्हें कम समय लगेगा. क्योंकि बहुत से देशों के एविएशन रेगुलेटर्स ने अपनी एयरलाइन्स को अफगानिस्तान से उड़ान भरने की परमिशन दे दी है. बता दें कि अगस्त 2021 में अफगानिस्तान के ऊपर से फ्लाइट्स के गुजरने की मनाही हो गई थी. एविएशन रेगुलेटर्स ने ये फैसला तब लिया था जब तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा कर लिया था. वहीं इस समय की बात करें तो अमेरिका और यूरोपीय रेगुलेटर्स ने अपनी एयरलाइन कंपनियों को कुछ शर्तों के साथ अफगानिस्तान से उड़ान भरने की अनुमति दे दी है. एविएशन रेगुलेटर्स के इस फैसले से ट्रैवल टाइम में आधे घंटे की कमी हो जाएगी.

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यूएस फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन ने अमेरिकन एयरलाइन्स को और यूरोपियन यूनियन एविएशन सेफ्टी एजेंसी ने अपने एयरलाइन्स को काबुल फ्लाइट इन्फॉर्मेशन रीजन से गुजरने का परमिशन दे दिया है. बता दें कि काबुल फ्लाइट इन्फॉर्मेशन रीजन पूरे अफगानिस्तान को कवर करता है. हालांकि, विमानों को इस रीजन में 32,000 फीट से ज्यादा ऊंचाई पर उड़ान भरने का निर्देश दिया गया है. क्योंकि यहां अभी भी खतरे को देखा जा सकता है. TOI के मुताबिक, कुछ यूरोपीय एयरलाइन्स अफगानिस्तान के ऊपर से टेस्ट फ्लाइट्स शुरू कर सकती हैं. इन एयरलाइन्स में बहुत सी फ्लाइट भारत से भी यात्रा करती हैं.  
   
आइए जाने इससे क्या हैं फायदें

बता दें कि अगस्त 2021 में अफगानिस्तान के ऊपर से उड़ाने भरने पर रोक लगा दिया गया था. इससे यात्रा में आधा घंटे ज्यादा समय लगने लगा था. इसके बाद पिछले साल रूस और यूक्रेन के युद्ध के बाद भी विमानों को रूस से उड़ान भरने पर भी पाबंदी लगा दी गई थी. लेकिन अब अफगानिस्तान का रूट खुलने से विमानों का उड़ान भरना आसान हो जाएगा. इसके अलावा ट्रैवल टाइम में आधे घंटे की कमी आएगी और एयरलाइन्स में फ्यूल भी कम लगेगा. इससे एयरलाइन कंपनियों को फ्यूल पर कम खर्च आएगा.

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