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Women's Day: इंदौर की रानी अहिल्याबाई होलकर क्यों हिंदुओं के लिए बन गईं आराध्य, रोंगटे खड़े कर देगी मराठा साम्राज्य की इस महारानी की कहानी

जब भी देश की विरांगनाओं का नाम आता है तो आपके दिमाग में दो नाम जरूर कौंधते होंगे. एक रानी लक्ष्मी बाई और दूसरा रानी अल्हिया बाई होलकर. इन दो रानियों को न केवल अपनी हिम्मत, साहस के लिए याद किया जाता है, बल्कि इनकी न्याय प्रणाली भी होश उड़ाने वाली थी.

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इंदौर की रानी अहिल्याबाई

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रानी लक्ष्मी बाई के बारे में आप बहुत कुछ जानते होंगे लेकिन उत्तर भारत में लोग अहिल्याबाई होलकर की दिलेरी के बारे में कम ही जानते हैं. आज हम आपको मराठा साम्रज्य की इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होलकर के बारें कई ऐसी बातें बताएंगे जिन्हें सुनने के बाद आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे. पहली कड़ी में आपको आज महारानी के जन्म से लेकर उनके विवाह और इंदौर की राजगद्दी पर बैठने तक की कुछ उपलब्धियों की एक झलक देंगे.

इंदौर की ये रानी एक कुशल शासक होने के साथ-साथ एक कुशल राजनीतिज्ञ भी थीं. जबकि अहिल्या किसी शाही वंश से नहीं थीं.मराठा कुल की ये रानी ही नहीं, इनके ने भी इनकी ताकत को पहचाना था और जीवनपर्यंत वह अपनी बहु अहिल्याबाई और मराठा साम्रज्य के हित में बढ़कर कई ऐसे फैसले लिये थे जो इतिहास में दर्ज हैं. हिंदू वास्तुकला को संरक्षित करने से लेकर दानवीरता के लिए भी अहिल्या बाई प्रसिद्ध थीं.

ब्रिटिश समाजवादी, थियोसोफिस्ट, फ्रीमेसन, महिला अधिकार और होम रूल कार्यकर्ता, शिक्षाविद् और भारतीय राष्ट्रवाद के प्रचारक एनी बेसेंट ने अपनी किताब में मराठा साम्राज्य की वंशानुगत कुलीन महारानी अहिल्याबाई के बारे में लिखा है. तो चलिए आज आपको हिंदू राजवंश की विरांगना महारानी की पहली कड़ी में अहिल्याबाई बाई होलकर की उन वीर गाथाओं के बारे में बताएं जिसे पढ़ने के बाद आप गर्व की अनुभूति करेंगे.

अहिल्याबाई होलकर का जन्म

अहमदनगर के जामखेड के चोंडी गांव में जन्मी महारानी अहिल्याबाई या जैसा कि उन्हें प्यार से राजमाता अहिल्याबाई कहा जाता था, मालवा साम्राज्य की होल्कर रानी थीं. उनके पिता मानकोजी राव शिंदे गांव के पाटिल (प्रमुख) थे. गाँव में महिलाओं की शिक्षा बहुत दूर की बात होने के बावजूद, उनके पिता ने उन्हें घर पर ही पढ़ना-लिखना सिखाया था.

8 साल की उम्र बनी थी मराठा राजवंश की बहु

अहिल्या किसी शाही वंश से नहीं थीं, लेकिन अधिकांश लोग इतिहास में उनके प्रवेश को भाग्य का मोड़ मानते हैं. यह तब की बात है जब मालवा क्षेत्र के प्रशंसित भगवान मल्हार राव होल्कर ने पुणे की यात्रा के दौरान चौंडी में अपने पड़ाव पर आठ वर्षीय अहिल्याबाई को मंदिर की सेवा में भूखे और गरीबों को खाना खिलाते हुए देखा था. युवा लड़की की दानशीलता और चरित्र की ताकत से प्रभावित होकर, उन्होंने अपने बेटे खंडेराव होल्कर के लिए उससे शादी करने का फैसला किया. उनकी शादी 1733 में 8 साल की उम्र में खंडेराव होलकर से हुई थी.

29 साल में हो गईं थी विधवा

लेकिन युवा दुल्हन पर संकट तुरंत आ गया जब उसके पति खंडेराव 1754 में कुंभेर की लड़ाई में मारे गए, जिससे वह केवल 29 वर्ष की उम्र में विधवा हो गई.

ससुर ने सती होने से रोका था

उस समय पति की मौत के बाद सती होने की परंपरा थी. पति पति खंडेराव की मौत के बाद जब उनकी चिता सजाई जा रही ती तब अहिल्याबाई सती होने के लिए जान लगीं थी लेकिन तभी उनके ससुर मल्हार राव ने ऐसा करने से उन्हें रोक दिया था. उस समय ये बहुत बड़ा कदम था जो उनके ससुर ने उठाया था. वह उस समय उनके समर्थन का सबसे मजबूत स्तंभ थे.

ससुर के निधन के बाद 

पति खंडेराव की मृत्यु के केवल 12 साल बाद 1766 में अहिल्याबाई के ससुर के निधन हो गया और  ससुर की मृत्यु के कारण उनके पोते और अहिल्याबाई के इकलौते पुत्र माले राव होल्कर उनके शासनकाल के तहत सिंहासन पर बैठे.

युवा राजा माले राव की मृत्यु 

आखिरी संकट तब आया जब 5 अप्रैल 1767 को अपने शासन के कुछ ही महीनों बाद युवा राजा माले राव की भी मृत्यु हो गई. और उनका राज्य ताश के पत्तों की तरह ढहने लगा और ये अहिल्याबाई देख नहीं पा रहीं थीं.

अपने हाथों में पकड़ी राज्य की कमान

उस समय कोई कल्पना कर सकता था कि वो महिला जो राजपरिवार से भी तालु्क नहीं रखती थी वो अपने पति, ससुर और इकलौते बेटे को खोने के बाद भी अविचलित नहीं हुई और अपने हाथ में राज्य की कमान पड़ ली. बेटे की मृत्यु के बाद प्रशासन स्वयं संभालने के लिए अहिल्याबाई ने पेशवा से प्रार्थना की. वह सिंहासन पर बैठीं और 11 दिसंबर 1767 को इंदौर की शासक बनीं.हालांकि उस समय भी कुछ लोगों ने उनके सिंहासन ग्रहण करने पर आपत्ति जताई थी, लेकिन होलकरों की सेना उनके साथ खड़ी थी और अपनी रानी के नेतृत्व का समर्थन कर रही थी. सैन्य मामलों पर उनके विश्वासपात्र सूबेदार तुकोजीराव होल्कर (मल्हार राव के दत्तक पुत्र भी) थे, जिन्हें उन्होंने सेना का प्रमुख नियुक्त किया था.

30 साल का शासन में महारानी नें जान लें क्या-कुछ किया था

1-इंदौर उनके 30 साल के शासन के दौरान समृद्ध हुआ. वह मालवा में कई किले और सड़कें बनवाने, त्योहारों को प्रायोजित करने और कई हिंदू मंदिरों को दान देने के लिए प्रसिद्ध थीं. उनके राज्य के बाहर भी, उनकी परोपकारिता उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में तीर्थस्थलों तक फैले दर्जनों मंदिरों, घाटों, कुओं, टैंकों और विश्रामगृहों के निर्माण में परिलक्षित हुई. 

2-होलकर रानी ने भारतीय संस्कृतिकोश के अनुसार काशी, गया, सोमनाथ, अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, कांची, अवंती, द्वारका, बद्रीनारायण, रामेश्वर और जगनाथपुरी सहित विभिन्न स्थलों को सजाया और संवारा.

3-महेश्वर में उनकी राजधानी साहित्यिक, संगीत, कलात्मक और औद्योगिक उपलब्धियों का मिश्रण थी. उन्होंने मराठी कवि मोरोपंत, शाहिर अनंतफंडी और संस्कृत विद्वान खुशाली राम जैसे दिग्गजों के लिए अपनी राजधानी के दरवाजे खोले.

4-उनकी राजधानी विशिष्ट शिल्पकारों, मूर्तिकारों और कलाकारों के लिए जानी जाती थी, जिन्हें उनके काम के लिए अच्छा वेतन दिया जाता था और रानी द्वारा उन्हें बहुत सम्मान दिया जाता था. वह शहर में कपड़ा उद्योग स्थापित करने के लिए भी आगे बढ़ीं

70 साल की उम्र में महारानी ने मूंदी थीं आंखे

जब उनकी मृत्यु हुई तब वह 70 वर्ष की थीं और उनके सेनापति तुकोजी राव होल्कर प्रथम उनके उत्तराधिकारी बने थे.

अगली कड़ी में हम बताएंगे कि क्यों रानी अहिल्या बाई होलकर अपने ही बेटे माले राव को कुचलने जा रही थीं...

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