Advertisement

कैसे खत्म हुआ Buddha और Jain के समकालीन रहा धर्म Ajivik?

आजीविकों (Ajivik) का मानना था कि जो भी करना है कर लो लेकिन होगा वही जो लिखा जा चुका है. ये कर्म के सिद्धांत को सीधे-सीधे नकारते थे. इसकी वजह से बौद्ध (Buddhism) और जैन (Jainism) धर्मों (Religions) के अनुयायियों से इनकी ठनी रहती थी.

Latest News
कैसे खत्म हुआ Buddha और Jain के समकालीन रहा धर्म Ajivik?

Ajivika an ascetic sect that emerged in India

Add DNA as a Preferred Source

आजीविक (Ajivik) संप्रदाय के बारें में कहा जाता है कि ये दुनिया का सबसे पुराना नास्तिकवादी और भौतिकवादी दर्शन है. इस भारतीय दर्शन का संस्थापक मक्खलि गोसाल थे. उन्हें गोशालक भी कहा जाता है. ये संप्रदाय आज से करीब 2500 साल पहले अपने वजूद में आया था. ये धर्म लंबे समय तक बना रहा, साथ ही एक वक्त मे काफी तकतवर भी था, लेकिन समय के साथ यह मत खत्म भी हो गया. इसके समकालीन धर्मों की बात करें तो इनमें बौद्ध (Buddhism) और जैन (Jainism) शामिल हैं. ये दोनों धर्म आज भी वजूद में हैं, इनकी पहचान एक ताकतवर धर्म के तौर पर होती है. वहीं, आजीविक समय के साथ धीरे-धीरे दृश्य से गायब होते चले गए. आइए समझते हैं कि आजीविक कौन थे? और कैसे ये संप्रदाय अप्रासंगिक हो गया?

कौन थे आजीविक?
आजीविकवाद का मूल सिद्धांत भाग्यवाद था. ये कर्मवाद या इच्छावाद में यकीन नहीं रखते थे. आजिविकों के मुताबिक मानव आत्मा का अवतरण होता है. ये अवतरण नियति द्वारा निर्धारित होता है. इस मत के मुताबिक मुक्ति महज एक भ्रम है. इस धर्म को पालन करने वाले आजीविकों के बारे में मान्यता है कि ये ज्यादातर नग्न रहने में यकीन करते थे. संन्यासियों के जैसे हमेशा एक जगह से दूसरी जगह पर घूमते रहते हैं. आजीविक संप्रदाय किस कदर ताकतवर था, इसका अंदाजा इसी से लगता है कि अशोक के पोते दशरथ इससे काफी प्रभावित थे. उन्होंने आजीवकों के लिए बिहार के जहानाबाद के आस-पास की पहाड़ियों के भीतर सात गुफाओं को बनवाया था.

हिंदू, बौद्ध और जैन साहित्य में इनका जिक्र
आजिविकों का कोई साहित्य मौजूद नहीं है, लेकिन हिंदू, बौद्ध और जैन साहित्य और शिलालेखों में इनके बारे में बहुत कुछ लिखा हुआ है. कई जगह उनके बारे में ये लिखा हुआ है कि ये लोगों का भाग्य बताते थे, और इसी से अपनी आजीविका चलाते थे. वहीं, हिंदू (Hinduism) धर्म ग्रंथों में खासकर वायुपुराण में इसे लोक का दर्शन बताया है, साथ में उन्हें कलाओं के जानकार के तौर पर दिखाया गया है. कहा गया है कि ये इसी से अपनी आजीविका चलाते थे.

ये कैसे हुए विलुप्त?
आजीविकों का मानना था कि सब कुछ पहले से तय है. इसे मूल रूप से नियतिवाद कहते हैं. उनके मुताबिक जिंदगी धागे के गोले की तरह है. आपको पता नहीं होता कि एक परत के बाद धागा किस रंग का होगा. ठीक ऐसे ही जिंदगी का नहीं पता होता है कि आने वाला वक्त कैसा होगा. इनका मानना था कि जो भी करना है कर लो लेकिन होगा वही जो लिखा जा चुका है. ये कर्म के सिद्धांत को सीधे-सीधे नकारते थे. इसकी वजह से बौद्ध और जैन मतों के अनुयायियों से इनकी ठनी रहती थी. आजीविकों के गायब होने का सबसे बड़ा कारण मौर्य काल में उनपर हुए हमले थे. उसी समय से उनकी संख्या कम होने लगी. ऐसा माना जाता है कि थोड़े-बहुत आजीविक बचे भी थे वो मध्यकाल में खत्म हो गए. इस तरह से ये संप्रदाय विलुप्त हो गया.

DNA हिंदी अब APP में आ चुका है. एप को अपने फोन पर लोड करने के लिए यहां क्लिक करें

देश-दुनिया की ताज़ा खबरों Latest News पर अलग नज़रिया, अब हिंदी में Hindi News पढ़ने के लिए फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी को गूगलफ़ेसबुकट्विटर और इंस्टाग्राम पर.

Read More
Advertisement
Advertisement
पसंदीदा वीडियो
Advertisement