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Nitish Kumar resign: पुरानी तल्खियां भूलकर कैसे तेजस्वी के साथ सत्ता चलाएंगे 'पलटीमार' नीतीश कुमार?

Nitish Kumar resign: बिहार में NDA गठबंधन को बड़ा झटका लगा है. नीतीश कुमार ने BJP का साथ छोड़कर एक बार फिर से आरजेडी का साथ पकड़ लिया है. जिस तेजस्वी यादव को भ्रष्टाचार में संलिप्त बताकर नीतीश कुमार ने अपनी राहें जुदा की थीं एक बार फिर उन्हीं के सहारे सरकार बनाने की तैयारी में नीतीश कुमार जुटे हैं.

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बिहार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे चुके हैं नीतीश कुमार. 

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डीएनए हिंदी: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने राज्यपाल फागु चौहान से मिलकर अपना इस्तीफा (Nitish Kumar resign) सौंप दिया है. उन्होंने एनडीए गठबंधन (NDA Alliance) से अपनी राहें जुदा कर ली हैं और एक बार फिर महागठबंन के सहारे सरकार बनाने की तैयारी में जुट गए हैं. बीते 1 साल से नीतीश कुमार के तेवर भारतीय जनता पार्टी (BJP) के लिए कभी नर्म तो कभी गर्म वाले रहे हैं. अब एक बार फिर नीतीश कुमार खुद को बीजेपी से अपमानित बताकर नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व वाली पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) का हाथ थाम लिया है.

यह वही आरजेडी है जिसके साथ नीतीश कुमार कई बार जोड़-तोड़ कर गठबंधन कर चुके हैं. साल 2014 में जब राष्ट्रीय फलक पर नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) और अमित शाह (Amit Shah) की जोड़ी सामने आई तो यह बात नीतीश कुमार को नागवार गुजरी. नीतीश कुमार की नरेंद्र मोदी से नाराजगी जगजाहिर है. उन्होंने तय किया कि वह नरेंद्र मोदी के साथ नहीं जाएंगे. 

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साल 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव हुआ था. नीतीश कुमार ने तय किया था कि वह किसी भी कीमत पर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (BJP) के साथ नहीं जाएंगे. वह महागठबंधन (Mahagathbandhan) में शामिल हो गए. जिस लालू यादव (Lalu Yadav) के सत्ता वाली राष्ट्रीय जनता दल के खिलाफ वह विकल्प बनकर मुख्यमंत्री बने थे, उसी के साथ उन्होंने दोस्ती गांठ ली.

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बिहार विधानसभा (Bihar Assembly) में कुल 243 सीटे हैं. जिस एनडीए गठबंधन ने नीतीश कुमार की स्वच्छ छवि को हर बार कैश कराया था, उसी गठबंधन को गहरा झटका लगा. महागठबंधन के खाते में कुल 178 सीटें हासिल हुईं. आरजेडी को 80 सीटों पर जीत मिली थ, जेडीयू 71 और कांग्रेस को 27 सीटों पर जीत मिली. एनडीए महागठबंधन के आगे सिमट गया था. उसे महज 58 सीटें मिलीं.

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भारतीय जनता पार्टी इस चुनाव में मोदी मैजिक के बाद भी 53 सीटें हासिल कर सकी थी, 2 सीटें एलजेपी के पास थीं और रालोसपा के पास भी 2 सीटें थीं. हिंदुस्तान आवाम मोर्चा को 1 सीट पर सफलता मिली थी. नीतीश कुमार ने चुनाव में जीत के बाद 20 नवंबर 2015 को पांचवी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. यह दोस्ती ज्यादा दिन नहीं चली. आए दिन उन्हें राष्ट्रीय जनता दल के नेताओं के साथ अनबन होने लगी.

'लालू के लाल से कैसे रिश्ता निभाएंगे नीतीश कुमार?'

बिहार कैबिनेट में पहली बार लालू यादव के दोनों बेटे मंत्री मिली. बड़े बेटे तेज प्रताप ने स्वास्थ्य मंत्री का पद संभाला तो छोटे बेटे तेजस्वी यादव सीधे डिप्टी सीएम बन गए. यह लालू यादव की बड़ी सियासी जीत थी. जुलाई 2017 में दोनों के बीच सियासी टकराव बढ़ने लगी. भारतीय जनता पार्टी के साथ एक बार फिर नीतीश कुमार नजदीकी दिखाने लगे. नतीजा यह हुआ कि उन्होंने 26 जुलाई 2017 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया.

आरजेडी से अलग होने के बाद नीतीश कुमार ने एक बार फिर बीजेपी का हाथ थाम लिया. 27 जुलाई 2017 की छठी बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और कार्यकाल पूरा किया. 2020 के चुनाव में एनडीए को बहुमत मिली और नई सरकार के गठन से पहले नीतीश ने 13 नवंबर 2020 को राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंपा. 

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2020 के विधानसभा चुनाव में भी उन्हें जीत मिली. पूरे विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने लालू यादव और आरजेडी के नेतृत्व वाली सरकार पर जमकर आरोप लगाए. उन्होंने बिहार की जनता को जंगलराज का डर दिखाया, लालू के दौर के उखड़ी हुई कानून व्यवस्था का डर दिखाया. एक तरफ तेजस्वी यादव अपने तीखे तेवर दिखाकर नीतीश कुमार की अलोचना करते तो दूसरी तरफ उनके बड़े भाई तेज प्रताप नीतीश कुमार को दगाबाज चाचा कहते. दगाबाज इसलिए कि नीतीश कुमार को पता है सत्ता में कैसे रहा जाता है. 

आरजेडी के साथ कई बार ब्रेकअप कर चुके हैं नीतीश कुमार!

नीतीश कुमार आरजेडी से कई बार ब्रेकअप कर चुके हैं. उन्हें सत्ता में बने रहने का हुनर बाखूबी आता है. साल 2005 से लगातार वह बिहार के मुख्यमंत्री हैं. उन्होंने ऐसा कद बना लिया है कि बीजेपी उनके बिना वहां रीढ़ विहीन है. अगर वह आरजेडी के साथ जाते हैं तो भी वही मुख्यमंत्री का चेहरा होते हैं. बिहार की राजनीति की धुरी उन्हीं के इर्द-गिर्द घूमती है.

वैसे 1994 में नीतीश कुमार और लालू यादव एक-दूसरे के मजबूत साथी थे. उन्होंने जॉर्ज फर्नांडिस के सात मिलकर समता पार्टी का गठन किया था लेकिन साल 1995 के विधानसभा चुनाव में उनकी करारी हार हो गई.  2003 में समता पार्टी का नाम बदला और यह जेडीयू हो गई. 2013 तक दोनों राजनीतिक पार्टियों के साथ गठजोड़ दुरुस्त रहा. 2013 में ही बीजेपी के साथ नीतीश ने दोस्ती तोड़ी. नतीजा नीतीश कुमार के ठीक नहीं रहा. अब एक बार फिर यह दोस्ती टूटी है. भ्रष्टाचार, तानाशाही और बीजेपी के दया पात्र सीएम जैसे कई आरोपों से जिस आरजेडी ने नीतीश कुमार ने वार किया था उसी के साथ नीतीश कुमार सरकार बनाने जा रहे हैं.

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क्यों बीजेपी से खफा थे नीतीश कुमार?

एनडीए में एक ही दल सबसे प्रमुख है वह है बीजेपी. बीजेपी अपने सहयोगियों को बहुत भाव देने की पक्षधर नहीं हैं. जिस सम्मान की चाह नीतीश कुमार को बीजेपी से है, वह उन्हें मिलने से रहा. जातिगत जनगणना, विशेष राज्य का दर्जा और बिहार के लिए स्पेशल पैकेज की मांग नीतीश कुमार बीजेपी से 2017 से पहले से ही कर रहे हैं लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार ने उनकी हर मांग अनसुनी कर रही है. बीजेपी से अलगाव की एक वजह यह भी मानी जा रही है.

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