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आंखों में गुस्सा, मूछों पर ताव और बात बाबा साहेब की, कैसे राजनीति में बड़ा हुआ चंद्रशेखर आजाद का नाम?

भीमा आर्मी के चीफ चंद्रशेखर आजाद, किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं. यूपी की सियासत में उनका कद, साल-दर-साल बढ़ता जा रहा है. आइए जानते हैं कि कैसे वह देखते-देखते बहुजन समाज के बड़े नेताओं में शुमार हो गए.

आंखों में गुस्सा, मूछों पर ताव और बात ब��ाबा साहेब की, कैसे राजनीति में बड़ा हुआ चंद्रशेखर आजाद का नाम?

भीम आर्मी के चीफ चंद्रशेखर आजाद. 

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डीएनए हिंदी: आंखों में गुस्सा, मूंछों पर ताव, कांधे पर नीला गमछा, बाबा साहेब और संविधान का बार-बार जिक्र और सरकार के खिलाफ कड़े तेवर. भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आजाद की यही पहचान है. चंद्रशेखर आजाद को कुछ दिनों पहले तक, उनके समर्थक रावण नाम से भी बुलाते थे. देशभर में दलित युवाओं के बीच अगर कोई सबसे लोकप्रिय चेहरा है तो वह चंद्रशेखर आजाद ही हैं.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के रहने वाले चंद्रशेखर आजाद, मायावती के बाद दूसरे ऐसे बहुजन नेता हैं जिनकी देशभर में पैठ है. सहारनपुर का यह बगावती तेवर वाला लड़के की छवि से सधे हुए राजनेता के तौर पर चंद्रशेखर आजाद की यात्रा, बहुत लंबी है. वह महीनों तक जेल काट चुके हैं, पुलिस कई प्रदर्शनस्थलों से उन्हें घसीटकर ले गई है.

वह नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ सरकार के धुर आलोचक हैं. हर सियासी पार्टी उन्हें अपने में शामिल करना चाहती है. आइए जानते हैं कि कैसे चंद्रशेखर आजाद का कद बढ़ता गया और वह राष्ट्रीय फलक पर छा गए.

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दलित आंदोलन का चेहरा बन गए हैं चंद्रशेखर

चंद्रशेखर आजाद के बनने की कहानी इतनी आसान नहीं है. दलित उत्पीड़न कहीं भी हो, उनकी भीम आर्मी पहले मोर्चा संभाल लेती है. हाथरस गैंगरेप केस के बाद उसे राष्ट्रीय मुद्दा बनाने में चंद्रशेखर आजाद का भी हाथ था. दिल्ली से लेकर बिहार तक, कहीं भी बात अगर दलितों की आती है तो वहां चंद्रशेखर आजाद से पहले उनकी भीम आर्मी पहुंचती है.

आजाद समाज पार्टी की स्थापना से पहले ही चंद्रशेखर आजाद, दलित युवाओं का एक मजबूत कैडर बना चुके हैं. युवाओं को उनका रुआब पसंद आता है. सहारनपुर में जब जातीय हिंसा भड़की थी तो उसके लिए चंद्रशेखर आजाद महीनों तक जेल में रहे. उनके खिलाफ गंभीर धाराएं लगाई गईं. उन्हें उपद्रवी तक कहा गया, इन सबसे बेपरवाह चंद्रशेखर, अपनी जामीन तैयार करते रहे.

'द ग्रेट चमार' एक लाइन ने बदल दी दलित युवाओं की जिंदगी

चंद्रशेखर आजाद 2017 तक, बड़ा नाम बन चुके थे. उन्होंने दलितों के उत्थान के लिए अपनी आर्मी लगा दी. दलित लड़कियों की शादी से लेकर उनकी पढ़ाई तक के लिए वह फंड जुटाने लगे. अपने गांव धड़कौली के बाहर एक बोर्ड लगाया, 'द ग्रेट चमार.' 

चंद्रशेखर आजाद ने कहा कि अपनी जाति पर इतना गर्व करो कि दूसरे लोग तुम्हारी पहचान को स्वीकारें और उन्हें भी तुम पर गर्व हो. तुम खुद को ऊंचा मानो और अन्याय के खिलाफ लड़ो. वह बात-बात में संविधान और भीम राव अंबेडकर का जिक्र करते हैं. चंद्रशेखर स्थिति कोई भी हो, हार नहीं मानते हैं. यही तेवर युवाओं को पसंद आता है.

सियासी तौर पर भी समझौता नहीं करते हैं पसंद

वह जानते थे कि आजाद समाज पार्टी (ASP) को आगे बढ़ना है तो गठबंधन करना होगा. अखिलेश यादव के पास 2022 विधानसभा चुनावों के दौरान गठबंधन के लिए गए भी. उन्होंने सपा से साथ मांगा और कहा कि वह गोरखपुर में चुनाव लड़ना चाहते हैं. इसके लिए पार्टी समर्थन दे.

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अखिलेश नहीं माने. चंद्रशेखर ने भी गठबंधन से मना कर दिया. उन्होंने हर विधानसभा सीट पर अपने उम्मीदवार उतारे. कई पूर्व विधायकों ने भी चुनाव लड़ा. बस जीत एक सीट पर भी नहीं मिली. चंद्रशेखर आजाद निराश नहीं है. वह अपनी जमीनी पकड़ मजबूत कर रहे हैं. उन्हें उम्मीद है कि लोकभा चुनाव 2024 में उनकी पार्टी शानदार प्रदर्शन करेगी. 

सहारनपुर में लगी पीठ में गोली

बुधवार को चंद्रशेकर आजाद पर अंधाधुंध फायरिंग की गई है. जब उनका काफिला सहारनपुर पहुंचा, तभी अज्ञात हमलावरों ने फायरिंग कर दी. उनकी पीठ पर गोली लग गई. अस्पताल में उनका इलाज चल रहा है. गोली उनकी कार और सीट पार कर गई है. वह अपनी फॉर्च्यूनर कार से जा रहे थे, तभी लोगों ने हमला बोल दिया. उनकी हालत स्थिर है. विपक्ष उन पर हुए हमले को लेकर केंद्र पर निशाना साध रहा है.

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