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क्योंकि रिंकल्स अच्छे हैं... यहां सुनाया सरकारी विभाग का फरमान, पहनने होंगे बिना प्रेस किए कपड़े

CSIR Amazing Climate Change Campaign: केंद्रीय संस्थान CSIR ने कर्मचारियों और छात्रों को बिना प्रेस किए हुए कपड़े पहनकर आने का हुक्म सुनाया है. संस्थान ने इसे जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संरक्षण से जोड़ा है.

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CSIR Amazing Climate Change Campaign: आप घर से निकलने से पहले साफ-सुथरे और प्रेस किए हुए कपड़े पहनना पसंद करते होंगे. पूरी दुनिया में सिलवटों से दूर अच्छी तरह प्रेस किए कपड़े पहनना ही सभ्य इंसान होने की निशानी माना जाता है. ऐसे में यदि कोई संस्थान अपने कर्मचारियों व छात्रों से यह कहे कि उन्हें बिना प्रेस किए हुए और सिलवटों से भरे कपड़े पहनकर आना है तो आपको कैसा लगेगा? लेकिन ऐसा फरमान जारी किया है देश के एक केंद्रीय संस्थान ने, जिन्हें सप्ताह में एक दिन इसी तरह के कपड़े पहनकर आने के लिए कहा गया है. मोदी सरकार के टॉप प्रियोरिटी डिपार्टमेंट वैज्ञानिक व औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) ने अपने कर्मचारियों व छात्रों को सप्ताह में सोमवार के दिन ऐसे कपड़े पहनने का आदेश दिया है. 'रिंकल्स अच्छे हैं...' की मुहिम के साथ जारी इस आदेश को पर्यावरण संरक्षण से जोड़ा गया है. 

क्या कहा गया है आदेश में

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, CSIR ने पूरे देश में मौजूद अपनी 37 लैब में काम करने वाले हजारों वैज्ञानिकों, टेक्निकल स्टाफ व स्टूडेंट्स के लिए यह आदेश जारी किया है. इसमें कहा गया है कि सभी लोग सोमवार के दिन बिना प्रेस किए हुए कपड़े पहनकर ऑफिस आएंगे. इसका मकसद विभाग के उस अभियान को सफल बनाना है, जिसमें जलवायु परिवर्तन (Climate Change) और पर्यावरण संरक्षण (Environment Preservation) के लिए जागरूकता की मुहिम छेड़ी गई है.

10% बिजली खपत कम करना है मकसद

CSIR ने 1 मई से 'रिंकल्स अच्छे हैं...' मुहिम शुरू की है. यह अभियान 15 मई तक चलाया जाएगा. स्वच्छता पखवाड़ा के तहत चलाए जा रहे इस अभियान का मकसद बिजली की खपत को 10% घटाना है. इसके लिए CSIR अपनी सभी 37 लैब में स्पेसिफिक स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग सिस्टम लागू कर रहा है. यह कवायद सबसे पहले IIT Bombay के एनर्जी साइंस एंड इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के प्रोफेसर चेतन सिंह सोलंकी ने शुरू की थी. उन्होंने अपने एनर्जी स्वराज फाउंडेशन के तहत यह कवायद शुरू की थी. अब इस मुहिम से CSIR-CLRI और सेंट्रल लेदर रिसर्च इंस्टिट्यूट भी जुड़ गे हैं. CSIR के 3,500 से ज्यादा वैज्ञानिकों और 4,000 से ज्यादा टेक्निकल स्टाफ को अब सोमवार के दिन बिना प्रेस किए हुए कपड़े पहनने का आदेश दिया गया है.

यह होगा इस मुहिम का लाभ

  • दरअसल किसी भी कपड़े को प्रेस करने पर कार्बन-डाई-ऑक्साइड का उत्सर्जन होता है.
  • प्रेस का लोहा गर्म करते समय 800 से 1200 वाट बिजली लगती है, जो एक बल्ब की रोशनी से 30 गुना ज्यादा है.
  • प्रेस करते समय एक जोड़ी कपड़े की नमी से करीब 200 ग्राम तक कार्बन-डाई-ऑक्सॉइड गैस निकलती है.
  • देश में बिजली उत्पादन में कोयले के ईंधन की 74% हिस्सेदारी है, जिसे कम करने का मकसद है.
  • यदि आप मामूली बिजली खपत भी करते हैं तो उतनी ही बिजली का उत्पादन करने में और ज्यादा कोयला जलाया जाता है. 
  • इस कोयले को जलाने से भी कार्बन-डाई-ऑक्सॉइड निकलती है, जिसे रोकने की कवायद की जा रही है. 

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