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Trending News: 41 साल पहले लिखी थी PM Modi ने 'मारुति की प्राण प्रतिष्ठा' कविता, अब क्यों हो रही है वायरल

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब सामाजिक कार्यकर्ता थे, तब दक्षिण गुजरात में एक हनुमान मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में जाते समय एक गांव के आदिवासियों को देखकर भावुक हो गए थे. तब उन्होंने यह कविता लिखी थी.

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PM Modi Poetry 'Maruti Ki Praan Pratistha'

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर सोशल मीडिया पर छाए रहते हैं, लेकिन इस बार मोदी नहीं बल्कि उनकी कविता सोशल मीडिया पर आग की तरह फैलती जा रही है. आदिवासियों की स्थिति और संघर्षों को दर्शाती हुई इस कविता को उन्होंने 1983 में लिखा था. अब 41 साल बाद इस कविता का नरेंद्र मोदी द्वारा हस्तलिखित अंश सोशल मीडिया पर अचानक वायरल हो गया है. लोग इसे बेहद शेयर कर रहे हैं. 


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आदिवासियों की स्थिति पर लिख डाली कविता

नरेंद्र मोदी ने जिस स्थिति में इस कविता को लिखा था, उसकी कहानी बड़ी दिलचस्प है. दरअसल साल 1983 में जब वह आरएसएस (संघ) के स्वयंसेवक थे, तो उन्हें दक्षिण गुजरात में स्थित एक हनुमान मंदिर की 'प्राण प्रतिष्ठा' में आमंत्रित किया गया था. रास्ता काफी लंबा था और दूर-दूर तक कोई दिखाई नहीं दे रहा था. तभी गांव के रास्ते से गुजरते समय उनकी नजर धरमपुर के आदिवासियों पर पड़ी. वहां के आदिवासी संसाधनों की कमी के कारण कठिनाई भरा जीवन यापन कर रहे थे. उन्होंने देखा कि उनका शरीर काला पड़ रहा था. 


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आज भी इन मंदिरों में आदिवासी करते है पूजा

मोदी पहली बार इस दृश्य को अपनी आंखों से देख रहे थे. इस दृश्य को देख वह काफी परेशान हो गए. आदिवासियों के इस संघर्ष को देखकर ही उन्होंने अपने मन में आए भावों को कविता में लिखा था. बता दें कि आज भी गुजरात के धरमपुर स्थित भावा भैरव मंदिर, पनवा हनुमान मंदिर, बड़ी फलिया समेत अन्य कई मंदिरो में आदिवासी समुदाय ही पूजा अर्चना करता है. 

'Maruti ki Pran Pratishtha'

In 1983, @narendramodi, then an RSS Swayamsevak, was invited to participate in the 'pran pratishta' of a Hanuman temple in South Gujarat. The drive was long, and no soul was in sight for kilometres at a stretch. On his way to the village, he noticed… pic.twitter.com/LC0AhdkYMX

— Modi Archive (@modiarchive) April 9, 2024


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देश की उन्नति के लिए उसकी जड़ों का महत्व समझना जरूरी

नरेंद्र मोदी ने कई बार इस बात का जिक्र किया करते हैं कि अक्सर वे अपने जंगलप्रेमी दोस्तों के साथ धरमपुर जंगल का दौरा किया करते थे. यहां वे बजरंगबली की प्रतिमा स्थापित कर उनके छोटे-छोटे मंदिर बनाया करते थे. आज उनकी यह कविता एक बार फिर सुर्खियां बटोर रही है. 

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