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छोटे शहर की लड़की :Truck Driver की यह बेटी 10 साल की उम्र में बन गई थी Changemaker, कहानी पढ़कर होगी हैरानी

10 साल की उम्र में ही अंजू वर्मा ने बाल शिक्षा के लिए काम करना शुरू कर दिया था. 17 साल की छोटी सी उम्र में उन्होंने अपनी एनजीओ की भी नींव रख दी थी.

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anju verma

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डीएनए हिंदी: बचपन में पड़ने वाली गर्मी की छुट्टियां अपने साथ जो ढेर सारी खुशियां लाती हैं, उनमें से एक होती है मामा-बुआ या नानी के घर जाकर रहना. मां-पापा की नजरों से दूर मामा-बुआ या नानी के लाड़-प्यार के साथ. जो मांगों वो मिल जाए, जो चाहो वो करो. ज्यादातर बच्चों की यही कहानी होती है. मगर फतेहाबाद हरियाणा की रहने वाली अंजू वर्मा की कहानी दिल दहला देने वाली थी. दस साल की उम्र में जब गर्मी की छुट्टियों में वह बच्ची अपने पिता की बुआ के घर गई तो उसके साथ बाल मजदूरों जैसा व्यवहार हुआ और उसके यौन शोषण की भी कोशिश की गई. 

उन गर्मी की छुट्टियों ने अंजू की जिंदगी में एक बर्फ जैसा अहसास घोल दिया था. उसका दिलो-दिमाग जैसे बिलकुल ठंडा पड़ गया था. इस सबके बाद उसने खुद को झंझोड़ा. खुद को खुद ही जगाया. खुद ही उठाया और आज महज 19 साल की उम्र में वह कई और लड़कियों और बच्चों की जिंदगी संवार रही है. गूगल करने पर अंजू वर्मा के नाम के साथ एक और नाम दिख जाता है- बुलंद उड़ान. ये उनकी NGO का नाम है. 

30 दिन तक की वो बेबसी और लाचारी
अपने पिता की बुआ के यहां जब अंजू गर्मी की छुट्टियों में रहने गईं तो वहां उनके साथ बाल मजदूरों जैसा व्यवहार किया गया. सुबह 5 बजे उठा दिया जाता और घर के सारे काम करवाए जाते. बताती हैं, ' मुझे घर का कोई काम करना नहीं आता था. मगर वहां मुझसे जबरदस्ती सारे काम करवाए जाते. खाने को भी ठीक से नहीं दिया जाता. घर के काम जरा खत्म होते तो किसी के पैर दबाने या सिर पर तेल लगाने को कह दिया जाता. यही नहीं वहां मेरे साथ यौन शोषण की भी कोशिश की गई. कभी जब मेरे घरवाले फोन करते तो जबरदस्ती मुझसे कहलवा दिया जाता कि मैं खुश हूं.' एक दिन यूं ही जब मेरे पिता उस गांव में किसी काम से आए और मुझसे भी मिलने चले आए तब मैंने उन्हें पूरी कहानी बताई और वह मुझे वहां से अपने घर ले आए.

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कई दिन लगे स्कूल जाने में

यौन शौषण और बाल मजदूरी जैसी घटना का शिकार होने के बाद जब अंजू अपने रिश्तेदार के घर से अपने घर वापस लौटी तो एक-दो महीने तक अपने साथ हुईं उन घटनाओं को भूला नहीं पाईं. स्कूल भी नहीं गईं. किसी से बात भी नहीं की. जब खुद को संभाला-समझाया और स्कूल गईं तो उनकी क्लास की दो लड़कियों को टीचर से बहुत डांट खाते देखा. कई दिन तक ऐसा ही चला. उन दोनों लड़कियों को हर रोज टीचर से डांट पड़ती क्योंकि वो अपना होमवर्क ही नहीं करके लाती थीं. अंजू ने उन दोनों से यूं ही एक दिन कहा- तुम्हें रोज डांट खाना अच्छा लगता है क्या, कर क्यों नहीं लेती होमवर्क. उन लड़कियों का जवाब था- 'हमारी जिंदगी तेरी तरह नहीं है. हमें घर के सारे काम करने होते हैं. हमारे मां-बाप काम पर जाते हैं. हम घर के काम नही करेंगे तो घर में खाना कौन बनाएगा.' 

दो लड़कियों की जिंदगी संवारने से हुई शुरुआत

इसके बाद किसी को बिना बताए अंजू उन दो लड़कियों के घर पहुंच गईं. उनके माता-पिता को समझाया. पहली बार में अंजू की कोई बात नहीं सुनी गई. वह दोबारा पहुंची. तीसरी बार पहुंची और तब तक समझाने का काम करती रहीं, जब तक कि उन दोनों लड़कियों के माता-पिता इस बात को समझ नहीं गए कि बच्चों से घर के काम करवाने की बजाय उन्हें पढ़ाना ज्यादा जरूरी है. ये सिलसिला उन दो लड़कियों से शुरू हुआ और आज अंजू वर्मा 1000 से ज्यादा बच्चों को स्कूल तक का सफर तय करवा चुकी हैं. 40 बाल विवाह रोक चुकी हैं. 15 यौन शोषण की घटनाओं में सीधा दखल देकर लड़कियों को सुरक्षित निकाल चुकी हैं. 

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स्कूल में लगे कैंप ने दिखाया नया रास्ता

अंजू गांव के सरपंच के साथ मिलकर अपने और आसपास के गांव में बच्चों की शिक्षा के लिए, बाल मजदूरी और बाल विवाह रोकने के लिए काम कर रही थीं. फिर इतनी उपलब्धियां कैसे हासिल कीं और इतनी कम उम्र में यहां तक का सफर कैसे तय हुआ? इस बारे में अंजू कहती हैं, 'मुझे कुछ नहीं पता था कि कैसे करना है, बस इतना पता था कि क्या करना है और मैं वही सब कर रही थी. इसी दौरान स्कूल में 'सेव द चिल्ड्रन' नाम की संस्था का एक कैंप लगा. उसमें हिस्सा लिया और अपने अब तक किए गए कामों की वजह से वहां 'चाइल्ड राइट्स चैंपियन' बनीं. इसके बाद सिलसिला शुरू हुआ तो थमा नहीं. तब तक घर पर किसी को भनक तक नहीं थी कि मैं क्या कर रही हूं.' जब TEDx में अंजू को बतौर स्पीकर बुलाया गया, तब उनके घरवालों को मालूम चला कि बेटी पूरे देश में नाम रोशन कर रही है. इसके बाद सन् 2017 में औपचारिक रूप से बुलंद उड़ान की नींव रखी गई. आज यह संस्था बाल और महिला अधिकारों के लिए युद्ध स्तर पर काम कर रही है. 

गांव में खत्म करवाई घूंघट प्रथा 
वह भी फतेहाबाद के दौलतपुर गांव के लिए एक ऐतिहासिक पल था जब गांव की ही 30-40 औऱतों को स्टेज पर बुलाकर उनका घूंघट हटवाया गया. अंजू ने गांव के सरपंच की मदद से यह घूंघट हटाओ कार्यक्रम आयोजित किया था. स्टेज पर उन्होंने अपनी मां सहित गांव की अन्य महिलाओं को बुलाकर उनका घूंघट हटवाया. इस तरह उस दिन के बाद से गांव में घूंघट प्रथा का अंत हो गया. अंजू बताती हैं, ' मैंने अपनी मां को किसी के सामने भी घूंघट हटाकर बाद करते नहीं देखा था. हमारे यहां लड़की की शादी के बाद उसके लिए घूंघट रखना अनिवार्य था. मुझे इस प्रथा को खत्म करवाना था और इसकी शुरुआत मैंने अपने घर से की. अब हमारे गांव की महिलाएं सम्मान और पूरे अधिकार के साथ रहती हैं. 

ट्रक ड्राइवर हैं पिता

पिता के बारे में बात करते हुए अंजू कहती हैं, 'हम ऐसे माहौल में बड़े हुए हैं जहां पापा से आंख उठाकर बात भी नहीं की जाती. पापा के आने की आहट से ही बच्चे कमरे में घुस जाते हैं. हमारे घर में भी ऐसा ही था. मगर जब मेरे पापा को मेरे काम के बारे में पता चला तो वो बदलने लगे. उन्होंने मुझे सपोर्ट करना शुरू किया. जब मैं कुछ जोखिम भरे मामलों में आगे बढ़कर काम करने लगती हूं तो उन्हें डर जरूर लगता है लेकिन अब वह मेरे साथ हैं और मुझे समझते भी हैं.'अंजू के पिता पेशे से ट्रक ड्राइवर हैं. उनकी एक बड़ी बहन है जिसकी शादी हो गई है और एक छोटा भाई है जो पढ़ाई कर रहा है. अंजू को अब तक पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से लेकर केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी और रमेश पोखरियाल तक से सम्मान मिल चुका है. 

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