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Fact Check: क्या चीन की वुहान लैब और दवा कंपनियों की वजह से फैला कोविड-19? जानिए क्या है सच

Corona Fact Check: सोशल मीडिया पर वायरल एक मैसेज में दावा किया जा रहा है कि चीन की वुहान लैब और कुछ दवा कंपनियों ने साजिश करके कोरोना फैलाया.

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डीएनए हिंदी: कोरोना के और नए वेरिएंट JN.1 के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. इस बीच दावे किए जा रहे हैं कि चीन की वुहान लैब और कई बड़ी दवा कंपनियों की वजह से कोविड-19 महामारी फैली थी. सोशल मीडिया पर इसी दावे से जुड़े कुछ मैसेज भी वायरल हो रहे हैं. दावा किया जा रहा है कि चीन ने वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों के साथ मिलकर साजिश रची ताकि खूब सारा लाभ कमाया जा सके और पैसे बनाए जा सकें.

इस दावे की सच्चाई का पता लगाने के लिए हमने इसका फैक्ट चेक किया. दरअसल, साल 2021 से ही इस तरह के दावे किए जाते हैं. अब नया सब-वेरिएंट सामने आने के बाद इस तरह के दावे एक बार फिर से सामने आ रहे हैं. आइए जानते हैं कि इस पूरे दावे की सच्चाई आखिर है क्या?

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क्या है वायरल मैसेज?
इस मैसेज में लिखा है, 'चीन के वुहान में मौजूद बायोलॉजिकल लैब के मालिक ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन हैं जो कि वैक्सीन बनाने वाली कंपनी Pfizer के भी मालिक हैं. यह वायरस इसी लैब में शुरू हुआ और इस लैब की फंडिंग डॉ. फॉसी करते हैं और यही डॉक्टर फॉसी फाइजर की वैक्सीन का प्रचार भी करते हैं. ग्लैक्सो को ब्लैक रॉक कंपनी का फाइनेंस डिवीजन मैनेज करता है और यही कंपनी ओपन फाउंडेशन कंपनी (सोरोस फाउंडेशन) को भी मैनेज करती है जो कि फेंच AXA को मैनेज करती है. सोरोस उस जर्मन कंपनी  Winterthur के मालिक हैं जिसने वुहान में लैब बनाई थी और इसे जर्मन आलियांज ने खरीद लिया था जो कि कि Vanguard की शेयर होल्डर है और Vanguard ब्लैक रॉक की शेयर होल्डर है. ब्लैर कॉक माइक्रोसॉफ्ट की एक बड़ी शेयरहोल्डर है और माइक्रोसॉफ्ट के मालिक बिल गेट्स हैं जो कि फाइजर के भी शेयरहोल्डर हैं और अब WHO के पहले स्पॉन्सर हैं. अब आप समझ गए होंगे कि कैसे चीन के बाजार में बिकने वाले एक मरे हुए चमगादड़ ने पूरी दुनिया को संक्रमित कर दिया.'

क्या है दावों की सच्चाई?

पहला दावा- वुहान इंस्टिट्यूट ऑफ वायरोलॉजी की स्थापना 1958 में हुआ और यह चीन का सरकारी संस्थान है. इससे साबित होता है कि ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन (GSK) या उनकी कोई कंपनी इसके मालिक नहीं हैं.

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दूसरा दावा- ग्लैक्सो एक ब्रिटिश कंपनी है जबकि फाइजर एक अमेरिकी कंपनी है. इंस्टिट्यूशनल शेयरहोल्डर्स के पास फाइजर की 69 प्रतिशत शेयर हैं और वही इसके मालिक हैं. Vanguard ग्रुप के पास इसके सबसे ज्यादा 7.67 प्रतिशत शेयर हैं. GSK फाइजर के टॉप 10 मालिकों में भी नहीं है जैसा कि दावा किया गया है.

तीसरा दावा- प्रतिष्ठित लैंसेंट पत्रिका में 27 मशहूर वैज्ञानिकों ने कोरोना के शुरू होने की जगहों से जुड़े दावों को खारिज किया था. अमेरिकी इंटेलिजेंस एजेंसियों को भी इस बात का कोई सबूत नहीं मिला है कि कोरोना चीन की वुहान लैब से फैला.

चौथा दावा- सच्चाई यह है कि डॉ. एंथनी फॉसी ने वुहान लैब की फंडिंग नहीं की है. वह अमेरिका के नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इन्फेक्शियस डिजीज (NIAID) के डायरेक्टर हैं जो कि अमेरिकी स्वास्थ्य विभाग के नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH) का हिस्सा है. NIH ने साल 2014 में अमेरिकी कंपनी इकोहेल्थ अलायंस को चमगादड़ों से कोरोना के फैलने की आशंकाओं पर स्टडी करने के लिए 3.4 मिलियन डॉलर का ग्रांट दिया था. इस इकोहेल्थ अलायंस ने वुहान लैब को 6 लाख डॉलर देकर इस प्रोजेक्ट के लिए उसके साथ कोलेबोरेशन किया था.

पांचवां दावा- GSK के शेयरों में ब्लैकरॉक की हिस्सेदारी 7.5 प्रतिशत की है. ऐसे में यह दावा गलत है कि GSK को ब्लैकरॉक मैनेज करता है. इस बात का कोई सबूत नहीं है कि ब्लैकरॉक GSK या सोरोस फाउंडेशन को मैनेज करता है.

छठा दावा- इस बात का भी कोई सबूत नहीं है कि सोरोस फाउंडेशन का कोई संबंध फ्रेंच इंश्योरेंस कंपनी AXA से है. 

ऐसे में इस वायरल मैसेज में किए जा रहे तमाम दावे पूरी तरह गलत हैं.

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