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Trending News: गाय-भैंस के गोबर की 'लकड़ी' ने बनाया लखपति, जानिए भीलवाड़ा के ग्वालों की अनूठी कहानी

Trending News: गाय-भैंस पालने वालों को उतना मुनाफा उनका दूध-घी बेचकर नहीं हो रहा है, जितनी कमाई वे गाय-भैंस के गोबर से एक चीज बनाकर कर रहे हैं.

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Trending News: आपने गाय-भैंस पालने वालों को देखा होगा. उनके घरों के आसपास इन जानवरों के गोबर से बने उपलों से लगे ढेर भी देखे होंगे. गाय-भैंस का यह गोबर बड़े शहरों में मुसीबत बनता जा रहा है, जिसके चलते कई जगह नगर पालिकाओं ने पशु डेयरी बंद करने और शहर से बाहर ले जाने के नोटिस भी दिए हैं. लेकिन राजस्थान के भीलवाड़ा शहर में यही गोबर ग्वालों के लिए ही नहीं बल्कि पर्यावरण के लिए भी वरदान बन गया है. गाय-भैंस के गोबर से बनी एक चीज बेचकर ग्वाले इतना पैसा कमा ले रहे हैं, जितनी कमाई वे उनका दूध-घी बेचकर नहीं कर पा रहे हैं. आइए आपको बताते हैं क्या है भीलवाड़ा के ग्वालों का यह अनूठा बिजनेस आइडिया, जो आपको भी हैरान कर देगा.

गोबर से उपले नहीं बना रहे हैं 'लकड़ी'

अब तक आपने गोबर से परंपरागत उपले बनाते हुए ही महिलाओं को देखा होगा, जिनका इस्तेमाल गांव के घरों में चूल्हों और अंगीठियों में किया जाता है. इसके अलावा गोबर को सड़ाकर उससे बनी जैविक खाद का खेतों में इस्तेमाल होते हुए देखा होगा, लेकिन भीलवाड़ा के ग्वालों ने इससे भी एक कदम आगे बढ़ा दिया है. दरअसल यहां ग्वाले गाय-भैंस के गोबर से उपले नहीं बल्कि 'लकड़ी' तैयार कर रहे हैं. सुनने में आपको शायद अजीब लगे, लेकिन यह सच है. गोबर को लकड़ी के डंडे जैसी शेप दी जा रही है और फिर इसकी बिक्री की जा रही है.

खास मशीन से ऐसे बनाते हैं गोबर की लकड़ी

ग्वाले एक खास मशीन की मदद से गोबर को प्रोसेस करते हैं और उसमें लकड़ी का बुरादा या ऐसी ही कोई ठोस चीज मिलाई जाती है. इसके बाद गोबर के इस मिश्रण को मशीन में दिए ब्लॉक्स में डाला जाता है. मशीन इसे लकड़ी के डंडों जैसी शेप में बदल देती है. इसके बाद आम उपलों की तरह ही इसे भी धूप में सूखने के लिए डाल दिया जाता है. सूखने के बाद प्रॉडक्ट पूरी तरह तैयार हो जाता है, जिसे मार्केट में बेचा जा रहा है और लाखों रुपये कमाए जा रहे हैं.

होटलों से श्मशान घाट तक, हर तरफ डिमांड

गोबर से बनी इन कृत्रिम लकड़ियों की मांग हर जगह हो रही है. होटलों में इनका इस्तेमाल भट्टी को सुलगाने में किया जाता है. इसके अलावा श्मशान घाटों पर भी इनकी भारी मांग है, जहां इन्हें चिता जलाने के लिए सामान्य लकड़ी की जगह उपयोग किया जा रहा है. दरअसल पेड़ों की कटाई पर सख्ती होने के बाद जलावन की लकड़ी मिलना मुश्किल हो गया है और यह बेहद महंगी भी मिलने लगी है. ऐसे में श्मशान घाट से लेकर होटलों तक के लिए गोबर की ये लकड़ियां सस्ता और बेहतरीन ईंधन साबित हो रहीं हैं. 

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