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Tips Not to Expect From Others: दूसरों से अपेक्षाएं करेंगे तो दुख ही मिलेगा, आज ही खुदको करें चेंज

Dont' Expect From Others: दूसरों से अपेक्षाएं करेंगे तो दुख मिलेगा, इसलिए आज से अपने संस्कार को बदल दीजिए, बीके शिवानी के ये टिप्स फॉलो कीजिए

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Tips Not to Expect From Others: दूसरों से अपेक्षाएं करेंगे तो दुख ही मिलेगा, आज ही खुदको करें चेंज
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डीएनए हिंदी: Don't Expect From Others- जब हम अपने जीवन में जीवन मूल्यों को ले आते हैं तो जो बातों को स्वीकार करना हमें बोझ लगता था वे आसान लगने लगती हैं. इससे हम लोगों से स्वाभाविक रूप से कम एक्सपेक्टेशन रखते हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि अभी भी बातें नहीं आएंगी,अभी भी मन परेशान नहीं होगा, होगा अभी भी होगा क्योंकि एक्सपेक्टेशन करना हमारी पुरानी आदत है और उसकी वजह से ही सारी परेशानियां होती हैं. आज मोटिवेशनल स्पीकर बीके शिवानी हमें बता रही हैं कि कैसे हम बगैर अपेक्षा के खुश रह सकते हैं. 

जब सामने वाले से हम ये उम्मीद करते हैं कि वो एक सेकेंड में बदल जाएगा, हमारी सारी बातों पर खड़ा उतरेगा तभी मुश्किलें पैदा होती हैं. इसके लिए हमें खुद एक्सपेक्टेशन नहीं रखनी हैं कि यह एक सेकंड में बदल जाएगा क्योंकि यह थोड़ा सा अनुचित है. हमें धीरे धीरे इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाना है. हमें यह भी नहीं एक्स्पेक्ट करना है कि आज समझ में आ गया है, तो आज से हम सभी को एक्सेप्ट (स्वीकार) कर लेंगे और हम कभी डिस्टर्ब नहीं होंगे, ऐसा भी नहीं हो सकता लेकिन यह भी नहीं होना चाहिए कि जितना पहले एक्स्पेक्ट कर रहे थे, आज भी उतना ही करते रहें. अगर हमें रियलाइज हो गया है तो फिर धीरे धीर ये अपेक्षाएं कम होती जानी चाहिए. 

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मान लो कोई बात हुई, हम डिस्टर्ब भी हुए, हमने रियलाइज भी किया, दूसरे का दृष्टिकोण भी देखा, सही लगा या नहीं लगा, उसे स्वीकार किया और अब आगे बढ़ गए. हरेक के लिए हर चीज़ उनके नज़रिए से ठीक है लेकिन कई बार सामने वाले का नजरिया हमें सही नहीं लग रहा था. मान लीजिये कोई मुझे चीट करता है, चाहे वो रिश्तों में है या कार्य में है या किसी भी चीज़ में है, चाहे वो एक झूठ बोलकर है. तो जिस व्यक्ति ने मुझे चीट किया, उसका उसके पास कोई कारण होगा. उसने कोई बात मुझसे छिपाई, उसका भी उसके पास कोई कारण होगा. अगर मैं उसके नज़रिए से देखती हूं तो मैं अपने आपको समझा सकती हूं कि कोई न कोई कारण होगा. जब परिस्थिति आई और हमने वो चीटिंग की, तो उसके लिए हम कोई जस्टीफ़ाइड लॉजिक देते हैं. 

मैंने यह ऐसा किया क्योंकि कारण ही ऐसे हो गए क्योंकि ऐसा करने के संस्कार हैं, ऐसा करने का मन हुआ, फिर उसने अपने आपको लॉजिक भी दिया. जैसे ही अपने गलत कर्म को भी वेलीडेट करते हैं, वैसे ही अपने संस्कार को और पक्का कर दिया. अब इसमें 100% गारंटी है कि इसे हम फिर से करते रहेंगे, क्योंकि उस क्षण हमने इसे वेलीडेट किया था. हमसे गलतियां होंगी क्योंकि हम बहुत से पुराने संस्कार कैर्री फॉरवर्ड कर रहे हैं. वो संस्कार सिर्फ इस जन्म में नहीं बने हैं, हम उन्हें पूर्व जन्मों से कैर्री फॉरवर्ड कर रहे हैं.  

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अब इतनी भी रियलाइज़ेशन आ जाए कि क्या गलत किया, तो उसे बस वेलिडेट नहीं करना है. उसके बारे में चिंतन करना है.  क्या मैं इस कर्म को किसी अन्य तरीके से कर सकता था? अगर हम चिंतन नहीं करते तो वह संस्कार लम्बा चलने लगता है. क्योंकि संस्कार अपने आप बदलने वाले नहीं है. संस्कार को या तो हम एंडोर्स कर देते हैं कि यह तो सही था, तो वह और पक्का हो जाता है या हमें उसमें अपनी गलती को रियलाइज़ करते हुए यह निर्णय लेना है कि जो कुछ हुआ, उस समय मुझे सही लगा लेकिन आज मुझे रिफ्लेक्ट करना है.  क्यों मुझसे गलत कर्म हो रहा है, वो मेरे लिए गलत है, चाहे मैंने उसके लिए अपने आपको कितने लॉजिक, कितने जस्टिफिकेशन दिए थे लेकिन वो सही नहीं है. इसलिए चेक, करेक्ट एंड चेंज की रीति से बुरे कर्मों को बदलें 

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