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क्या है जमात-ए-इस्लामी जम्मू-कश्मीर, जिसपर 5 साल के लिए बैन बढ़ा सकती है मोदी सरकार

साल 1971 में जमात-ए-इस्लामी (जम्मू-कश्मीर) ने घाटी में सक्रिए राजनीति में प्रवेश किया था. उसने पहले विधानसभा चुनाव में भले ही कोई सीट नहीं जीती हो लेकिन लोकप्रियता पूरी हासिल की थी.

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क्या है जमात-ए-इस्लामी जम्मू-कश्मीर, जिसपर 5 साल के लिए बैन बढ़ा सकती है मोदी सरकार

Jamaat-e-Islami Jammu and Kashmir

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केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर के जमात-ए-इस्लामी संगठन पर 5 साल का प्रतिबंध बढ़ा सकती है. सूत्रों के मुताबिक, गृह मंत्रालय (MHA) इसकी तैयारी कर रहा है. सरकार ने आंतकवाद विरोधी कानूनों के तहत मार्च 2019 में इस संगठन पर 5 साल के लिए बैन लगा दिया था. ऐसे में सवाल यह है कि जमात-ए-इस्लामी (जम्मू-कश्मीर) क्या है और क्यों सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगा रखा है.

जमात-ए-इस्लामी की स्थापना साल 1941 में हुई थी. इस्लामी धर्मशास्त्री मौलाना अबुल अला मौदुदी ने इसका गठन किया था. मुस्लिम ब्रदरहुड के साथ जमात-ए-इस्लामी अपनी तरह का पहला संगठन था, जिसने इस्लाम की विचारधारा को लेकर काम शुरू किया. हालांकि 1947 में विभाजन के बाद यह संगठन अलग-अलग बंट गया. जिसमें जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान और जमात-ए-इस्लामी हिंद शामिल थे.

आजादी के बाद जमात-ए-इस्लामी का विस्तार और बढ़ता गया और पढ़े-लिखे नौजवान, मध्यम स्तरीय सरकारी नौकर भी इसके साथ जुड़ते चले गए.  इससे प्रेरणा लेकर दुनियाभर में संगठन फैलता गया. जिसमें जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश, जमात-ए-इस्लामी ब्रिटेन, जमात-ए-इस्लामी अफगानिस्तान और जमात-ए-इस्लामी जम्मू कश्मीर कुछ प्रमुख नाम हैं.


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साल 1971 में जमात-ए-इस्लामी (जम्मू-कश्मीर) ने घाटी में सक्रिए राजनीति में प्रवेश किया था. उसने पहले विधानसभा चुनाव में भले ही कोई सीट नहीं जीती हो लेकिन लोकप्रियता पूरी हासिल की थी. वह जम्मू-कश्मीर की राजनीति में अपनी जगह बनाने में कामयाब रहा. इसके बाद कश्मीर को अलग करने की आवाज उठना शुरू किया. उसका मानना है कि कश्मीर का विकास भारत के साथ रहकर नहीं हो सकता है.

सरकार ने क्यों लगाया बैन?
केंद्र सरकार ने 2019 में जमात-ए-इस्लामी (जम्मू-कश्मीर) को घाटी में अलगाववादी विचारधारा और आंतवादी मानसिकता के प्रसार के लिए प्रमुख जिम्मेदार माना था. जिसके बाद उसपर  पांच साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया था. इस संगठन पर आरोप है कि वह आंतकियों को फंड देना, ट्रेंड करना और शरण देने जैसे काम करता है.

1975 में पहली बार लगा बैन
हालांकि इससे पहले 2 बार जमात-ए-इस्लामी संगठन पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है. पहली बार जम्मू-कश्मीर सरकार ने इस संगठन को साल 1975 में 2 साल के लिए बैन लगाया था. दूसरी बार साल 1990 में इस पर प्रतिबंध लगाया था, जो दिसंबर 1993 रहा.

जमात-ए-इस्लामी हिंद से अलग है ये संगठन
जमात-ए-इस्लामी (जम्मू-कश्मीर) संगठन जमात-ए-इस्लामी हिंद से अलग है. इसका राजनीतिक से कोई लेना देना नहीं है. जमात-ए-इस्लामी हिंद देश में वेलफेयर के लिए काम करता है. गरीब लोगों की मदद करना, शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़े कार्यों को करता है.

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