Twitter
Advertisement
  • LATEST
  • WEBSTORY
  • TRENDING
  • PHOTOS
  • ENTERTAINMENT

Freebies: 'मुफ्त की रेवड़ी' पर एक्शन ले सकता है EC, नए नियमों के लिए राजनीतिक दलों से मांगे सुझाव

'मुफ्त की रेवड़ी' बांटने के मुद्दे पर अब चुनाव आयोग एक्टिव हो गया है और इस पर नए चुनावी नियम भी लागू हो सकते हैं.

Freebies: 'मुफ्त की रेवड़ी' पर एक्शन ले सकता है EC, नए नियमों के लिए राजनीतिक दलों से मांगे सुझाव
FacebookTwitterWhatsappLinkedin

डीएनए हिंदी: मुफ्त चुनावी सौगातों को लेकर देश में जारी बहस के बीच निर्वाचन आयोग ने राजनीतिक दलों के समक्ष आदर्श चुनाव संहिता में संशोधन का एक प्रस्ताव रखा है. आयोग ने इसके तहत चुनावी वादों की वित्तीय व्यवहार्यता के बारे में मतदाताओं को प्रामाणिक जानकारी देने को लेकर राजनीतिक दलों की राय मांगी है. 

चुनाव आयोग ने नए नियमों को लेकर सभी मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय दलों को लिखे गए एक पत्र में आयोग ने उनसे 19 अक्टूबर तक उनके विचार साझा करने को कहा है. ऐसे में अब यह देखना होगा कि चुनाव आयोग के इस पत्र पर राजनीतिक दल क्या टिप्पणी करते हैं क्योंकि बीजेपी लगातार इस रेवड़ी कल्चर पर सवाल उठाती रही है. 

Satyapal Malik: रिटायर होते ही सत्यपाल मलिक का मोदी सरकार पर तीखा हमला, लगाया से बड़ा आरोप

राजनीतिक दलों को लिखा पत्र 

दरअसल, निर्वाचन आयोग ने कहा कि वह चुनावी वादों पर अपर्याप्त सूचना और वित्तीय स्थिति पर अवांछित प्रभाव की अनदेखी नहीं कर सकता है क्योंकि खोखले चुनावी वादों के दूरगामी प्रभाव होंगे. राजनीतिक दलों को दिए अपने पत्र में आयोग ने कहा, ‘‘चुनावी घोषणा पत्रों में स्पष्ट रूप से यह संकेत मिलना चाहिए कि वादों की पारदर्शिता, समानता और विश्वसनीयता के हित में यह पता लगना चाहिए कि किस तरह और किस माध्यम से वित्तीय आवश्यकता पूरी की जाएगी.’’

दशहरे से 4 शहरों में 5G रोलआउट करेगा रिलायंस जियो, बीटा वर्जन से होगी शुरुआत  

आयोग के आदर्श चुनाव संहिता में प्रस्तावित संशोधन के अनुसार चुनाव घोषणा पत्रों में चुनावी वादों का औचित्य दिखना चाहिए. आयोग ने यह पत्र ऐसे समय में लिखा है, जब कुछ दिन पूर्व ही प्रधानमंत्री ने ‘‘रेवड़ी संस्कृति’’ का उल्लेख करते हुए कुछ राजनीतिक दलों पर कटाक्ष किया था. इसके बाद भारतीय जनता पार्टी और विपक्षी दलों के बीच इसे लेकर वाद-विवाद बढ़ता चला गया था. 

राजनीतिक दलों द्वारा किए गए चुनावी वादों की घोषणा संबंधी प्रस्तावित प्रारूप में तथ्यों को तुलना योग्य बनाने वाली जानकारी की प्रकृति में मानकीकरण लाने का प्रयास किया गया है. प्रस्तावित प्रारूप में वादों के वित्तीय निहितार्थ और वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता की घोषणा करना अनिवार्य होगा. 

चुनावी वादों की सामने आए हकीकत

इस सुधार के प्रस्ताव के जरिए निर्वाचन आयोग का मकसद मतदाताओं को घोषणापत्र में चुनावी वादों की वित्तीय व्यवहार्यता के बारे में सूचित करने के साथ ही यह भी अवगत कराना है कि क्या वे राज्य या केंद्र सरकार की वित्तीय क्षमता के भीतर हैं या नहीं.

इसके साथ ही चुनाव आयोग ने चुनाव घोषणा पत्र में किए गए वादों से जुड़ी वित्तीय आवश्यकता का विवरण देने के लिए राजनीतिक दलों के लिए एक प्रारूप भी प्रस्तावित किया है. उसने कहा है कि यदि निर्धारित समयसीमा के भीतर यदि राजनीतिक दलों का जवाब नहीं आता तो यह मान लिया जाएगा कि उनके पास इस विषय पर कहने के लिए कुछ विशेष नहीं है.

नीतीश कुमार से क्यों मिले थे प्रशांत किशोर? पीके ने बताई मुलाकात की वजह

देनी होगी सारी जानकारी

आयोग ने कहा है कि निर्धारित प्रारूप, सूचना की प्रकृति और सूचनाओं की तुलना के लिए मानकीकरण हेतु आवश्यक है. निर्वाचन आयोग ने यह भी कहा कि किए गए वादों के वित्तीय प्रभाव पर पर्याप्त सूचना मिल जाने से मतदाता विकल्प चुन सकेंगे. आयोग ने यह भी कहा कि वह चुनावी वादों पर अपर्याप्त सूचना और वित्तीय स्थिति पर अवांछित प्रभाव की अनदेखी नहीं कर सकता है. 

चुनाव आयोग ने कहा कि ज्यादातर राजनीतिक दल चुनावी घोषणाओं का ब्योरा समय पर उसे उपलब्ध नहीं कराते जिससे जनता में वे भ्रम फैलाते रहते हैं और इससे वे राजनीतिक लाभ लेने के प्रयास भी करते हैं.

(इनपुट- भाषा एवं अन्य एजेंसी)

Advertisement

Live tv

Advertisement

पसंदीदा वीडियो

Advertisement