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शादी को कारण बता सेना ने महिला नर्स को किया था बर्खास्त, SC का आदेश- अब केंद्र देगी ₹60 लाख का मुआवजा

शादी को आधार बनाकर भारतीय सेना ने एक महिला नर्स को 1998 में बर्खास्त कर दिया था. 36 साल की कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद आखिरकार महिला नर्स को इंसाफ मिल गया है.

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शादी को कारण बता सेना ने महिला नर्स को किया था बर्खास्त, SC का आदेश- अब केंद्र देगी  ₹60 लाख का मुआवजा

शादी को कारण बता सेना ने महिला नर्स को किया था बर्खास्त, SC का आदेश- अब केंद्र देगी  ₹60 लाख का मुआवजा

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New Delhi: शादी को आधार बनाकर भारतीय सेना ने एक महिला नर्स को 1998 में बर्खास्त कर दिया था. 36 साल की कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद आखिरकार महिला नर्स को इंसाफ मिल गया है. सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपना फैसला महिला के पक्ष में देते हुए केंद्र सरकार से कहा है कि शादी के आधार पर एक महिला को नौकरी से निकालना लिंग भेदभाव का बड़ा मामला है. और किसी भी तरह का लैंगिक भेदभाव कानून में स्वीकार्य नहीं किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और सेना को आदेश देते हुए कहा कि वह महिला नर्स को 60 लाख रुपये का मुआवजा दें.

सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की पीठ जिसमें जज संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता ने महिला नर्स सेलिना जॉन की अपील पर आदेश पारित किया. सेलिना ने 1988 में शादी की थी जिसके बाद उन्हें उनके पद से बर्खास्त कर दिया गया था.   उस समय सेलिना लेफ्टिनेंट के पद पर कार्यरत थीं.

उन्होंने 2012 में सशस्त्र बल न्यायाधिकरण से संपर्क किया, जिसने उनके पक्ष में फैसला सुनाया और आदेश दिया कि उन्हें बहाल कर दिया जाए.  इसके बाद केंद्र ने आदेश के खिलाफ जाकर  2019 में, सुप्रीम कोर्ट में अपील दर्ज की.

14 फरवरी के आदेश में पीठ ने कहा था कि न्यायाधिकरण के फैसले में किसी भी जिरह (बहस) की  कोई गुंजाइश नहीं है इसलिए इसमें दखलअंदाजी न की जाए. अदालत ने केंद्र के 1977 के उस नियम को भी खारिज करते हुए कहा कि जिस नियम की केंद्र दुहाई दे रही है जिसमें शादी के आधार पर सैन्य नर्सिंग सेवा से बर्खास्तगी की अनुमति दी गई है उसे 1995 में वापस ले लिया गया था. पीठ ने अपने आदेश में आगे कहा, "ऐसा नियम सिर्फ मनमाना था, क्योंकि महिला की शादी हो जाने के कारण रोजगार समाप्त करना लैंगिक भेदभाव और असमानता का एक बड़ा मामला है."

Supreme court ने कहा कि इस तरह के नियम पितृसत्तात्मक को बढ़ावा देते हैं जिसे स्वीकार करना मानवीय गरिमा को ठेस तो पहुंचाता ही है साथ ही  भेदभाव को भी बढ़ावा देने के साथ साथ निष्पक्ष व्यवहार को कमजोर करता है. कोर्ट ने यह भी कहा, "कानून में किसी भी तरह के लिंग आधारित पूर्वाग्रह को सही नहीं ठहराया जा सकता, यह संवैधानिक रूप से भी अस्वीकार्य है."  महिला कर्मचारियों की शादी और उनकी घरेलू भागीदारी को पात्रता से वंचित करने वाले नियम असंवैधानिक हैं.

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