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Opinion: चरखी दादरी का वह दर्दनाक हादसा जिसकी टीस आज भी जिंदा है 

1996 Charkhi Dadri Mid-Air Collision: 1996 में चरखी दादरी में हुए हादसे की यादें आज भी लोगों की जेहन में जिंदा है. इस हादसे में 349 लोगों की अकाल मौत हो गई थी. रविन्द्र सिंह श्योराण की खास रिपोर्ट.

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Charkhi Dadri Plane Crash

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डीएनए हिंदी: चरखी दादरी देश की राजधानी से करीब सौ किलोमीटर दूर हरियाणा का एक छोटा सा शहर. गौधुली का वक्त और दिवाली की खुशियां मना कर लोग आराम कर रहे थे. शाम के समय रौशनी और अंधेरे के मिलने का वक्त. घरों की खिड़की और रोशनदानों से बिजली के बल्ब की रोशनी बाहर झांकने लगी तभी शांत पड़ी घरों की खिड़कियों में तेज कंपन और गड़गड़ाहट की आवाज आई. आसमान से बहुत तेज धमाके की आवाज ने इस छोटे से शहर का ध्यान अपनी तरफ बड़े डरावने अंदाज में खींचा. जब लोगों की नजर आसमान पर पड़ी तो डर के मारे आसमान में लगी आग के गोलों को एकटक देखते ही रह गए. पूरा शहर एक साथ करीब 10 सेकंड्स आसमान को देखता रहा. आग और काले धुएं के कारण पूरा आसमान लाल था और दो बड़े बड़े लोहे के टुकड़े तेजी से धरती की तरह बढ़ रहे थे. लोगों को कुछ भी समझ नही आ रहा था कि ये आसमानी आफत आखिर है क्या. उन चंद लम्हों में जैसे पूरे शहर की सांसे थम गई हों.

एक साथ शहर के अलग अलग हिस्सों से आवाज आने लगी की जहाज गिर गया... जहाज गिर गया. लोग इसकी सच्चाई जानने के लिए एक दूसरे को लैंडलाइन पर फ़ोन करने लगे. यह घटना ठीक 25 साल पहले 12  नवम्बर 1996 की है. आसमान में दो विमानों की टक्कर से बिजली कौंधी और पलभर में 349 लोग अकाल मौत के शिकार हो गए. सऊदी अरब एयरलाइंस और कजाकिस्तन के कज़ाक एयरवेज के दो विमान इस शहर के हिस्से के आसमान में टकरा कर जमींदोज हो गए थे. यह इस तरह की इतिहास के पहली दुर्घटना थी. शाम को करीब साढ़े छह बजे सऊदी अरब एयरलाइंस के पायलट खालिद अल सुबैली ने साफ मौसम और शांत हवा की जानकारी के साथ ,यात्री विमान बोईंग 747 की उड़ान भरी . विमान में 23 क्रू मेंबर और 289 यात्री सवार थे.

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दो विमानों की हुई थी आसमान में जोरदार टक्कर
क़रीब 500 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से उड़ते हुए बोइंग 747 कुछ ही मिनटों में 10000 फीट से ऊपर पहुंच गया था. ऊपर उड़ने की इजाज़त नहीं मिलने के बाद ये जहाज़ 14000 फीट की ऊंचाई पर ही उड़ान भर रहा था . ठीक उसी वक़्त क़ज़ाकिस्तान एयरवेज़ का मालवाहक विमान 1907 को पायलेट गेन्नादी चेरेपानोव को 12 क्रू मेंबर व 25 अन्य सदस्यों के साथ दिल्ली की तरफ़ तेज़ रफ़्तार से बढ़ रहा था. विपरीत दिशा से दिल्ली की ज़मीन को चूमने की तैयारी कर रहे को इस विमान को  दिल्ली एटीसी ने उसे 'एफ़एल 150' यानी 15 हज़ार फ़ीट, पर बने रहने का निर्देश दिया. एटीसी ने कजाकिस्तान के विमान को सऊदी विमान के विपरीत दिशा में  केवल 10 मील दूर होने के बारे में बताते हुए उसको देखे जाने पर 'रिपोर्ट, इफ़ इन साइट' यानी अगर ये विमान दिखाई दे तो एटीसी को इसकी सूचना दिए जाने भी निर्देश दिया.

दिल्ली एयरपोर्ट था वनवे
उन दिनों दिल्ली हवाई अड्डे का रनवे वनवे था. यानी प्रस्थान और आगमन दोनों रनवे के एक ही तरफ़ से होता था. कजाकिस्तान के इस विमान में अरब देशों के सूत व ऊन के व्यापारी भारत आ रहे थे. शाम 6 बजकर 30 मिनट पर सऊदी अरब का विमान 14 हजार फीट की ऊंचाई पर था जबकि कजाकिस्तान का विमान 15 हजार फीट की ऊंचाई से नीचे उतर रहा था. इस दौरान अचानक दोनों विमान तेज गति से एक दूसरे से आमने-सामने टकरा गए थे.जिसमें यात्री विमान चरखी दादरी से केवल 4 किलोमीटर दूर गांव ढाणी टिकान कलां के खेतों व मालवाहक विमान गांव बिरोहड़ की ख़ाली ज़मीन में जा गिरा था. इस घटना का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है लगभग 10 किलोमीटर तक मलबा गिराया था.

हादसे के बाद स्थानीय लोगों ने की थी मदद
चरखी दादरी जैसे छोटे से शहर में इतने बड़े हादसे से निपटने के लिए कोई संसाधन मौजूद नहीं थे.केवल एक सरकारी अस्पताल था .जिसके अंदर एक या दो एम्बुलेंस थीं.कुछेक छोटे-मोटे निजी अस्पताल थे. एक साथ इतने सारे  शवों को प्रशासन ने तुरंत प्रभाव से दादरी के सरकारी अस्पताल में भिजवाना शुरू कर दिया था. ट्रैक्टर-ट्रालियों, निजी गाड़ियों में भरकर क्षत-विक्षत शव, मांस के लोथड़े अस्पताल में भेजे गए. ऐसे में इतने सारे शवों को को रखने के लिए सरकारी अस्पताल का परिसर छोटा भी था और सुविधाएं भी नहीं थी. इस दुर्घटना में सबसे ज्यादा 231 भारतीय, सऊदी अरब के 18, नेपाली 9, पाकिस्तानी 3, अमेरिकन 2, ब्रिटिश 1 नागरिक की मौत हुई थी और 84 की पहचान नहीं हो पाई थी. सबका अंतिम संस्कार उनके धर्म के अनुसार यहीं पर किया गया था.

पायलट की गलती की वजह से हुआ हादसा
भारत के मुख्य न्यायाधीश रहे रमेश चंद्र लाहौटी की जांच रिपोर्ट के अनुसार दुर्घटना का मुख्य कारण कजाकिस्तान विमान के पायलट द्वारा एटीसी के नियमों का पालन नहीं करना था. हो सकता है बादलों के कारण या संचार व्यवस्था के कारण पायलेट अपने जहाज की वास्तविक ऊंचाई का भान नहीं कर सका था, इसके अलावा भाषा की दिक्कत भी हादसे का कारण बनी. उस हादसे को याद करके आज भी लोग सिहर उठते हैं. हादसे के बाद उनके खेतों की जमीन बंजर हो गई और दस किलोमीटर के दायरे में दोनों विमानों के अवशेष व लाशों बिखर गई थी. बाद में किसानों ने कड़ी मेहनत करके कई साल के संघर्ष के बाद बंजर जमीन को खेती लायक बनाया है.आयोग की जांच रिपोर्ट के मुताबिक़ कजाकिस्तान विमान की दुर्घटना की एक वजह  कज़ाक पायलट को अंग्रेज़ी भाषा का कम ज्ञान था. जिसके कारण वो  एटीसी के निर्देशों को ठीक से नहीं समझ पाया. आयोग ने हवाई अड्ड प्रबंधन या एटीसी की तरफ़ से दुर्घटना में किसी भी भूमिका से साफ़ इनकार किया.

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दुर्घटना के बाद रडार सिस्टम किया गया आधुनिक
इस दुर्घटना के बाद दिल्ली के रडार सिस्टम को आधुनिक कर दिया गया. नागरिक उड्डयन महानिदेशालय ने भारत के अंदर और बाहर जाने वाले सभी विमानों में हवाई टकराव से बचने वाले सिस्टम को लगाना ज़रूरी क़रार दिया. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसका असर यह हुआ कि पायलटों के लिए अंग्रेज़ी का एक मानक अनिवार्य कर दिया गया था. भारत सरकार की तरफ़ से किसी को कोई मुआवज़ा नहीं दिया गया .सऊदी अरब सरकार ने प्रत्येक मृतक व्यक्ति के परिवार को 12,000 पाउंड का भुगतान किया. दुर्घटना के वर्षों बाद भी, विमानों का इस तरह हवा में टक्कर अविश्वसनीय घटना लगती है, लेकिन 349 लोगों की मौत अंतिम सच है और एक सच ये भी है की यह  भयानक हादसा चरखी दादरी के इतिहास के साथ हमेशा के लिए चस्पा हो गया है .

रविन्द्र सिंह श्योराण
(लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं.)

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