Opinion: गोधन न्याय योजना: किसानों और गोवंशों के चहुमुंखी कल्याण का वैज्ञानिक मॉडल

Written By डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated: Nov 02, 2023, 07:57 PM IST

Godhan Nyay Yojana 

Godhan Nyaya Yojana: बीते कुछ वर्षों में देश के अन्य हिस्सों की तुलना में उत्तर भारतीय राज्यों में आवारा पशुओं की मौजूदगी किसानों के लिए नई त्रासदी बन कर उभरी है. इस मुद्दे पर पढ़ें डॉक्टर गिरीश कुमार का लेख.

डीएनए हिंदी: पिछले कुछ सालों में आवारा पशुओं की समस्य काफी बढ़ी है. सवाल उठता है कि आखिर ये संकट क्यों है? जवाब आसान है, महंगाई से त्रस्त किसानों और पशुपालकों के पास इतना सामर्थ्य नहीं बचा है कि वो खेती और दूध के लिहाज से निष्प्रयोज्य हो चुके पशुओं को खूंटे पर बांधकर उन्हें खिला सकें. इसलिए वो ऐसे निष्प्रयोज्य पशुओं को छुट्टा छोड़ने पर मजबूर हैं. हालांकि, इससे सबसे अधिक नुकसान भी किसानों का ही हो रहा है. पशुपालकों की बदहाल स्थिति से वाकिफ और गाय के नाम पर वोट मांगने वाली पार्टी एवं उसके नेता गोवंशों और किसानों की बदहाल स्थिति पर मौन साधे हुए हैं. लेकिन इसी बीच कांग्रेस शासित प्रदेश छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने देश को नया रास्ता दिखाया है. 

छत्तीसगढ़ सरकार का महत्वपूर्ण कदम 
भूपेश सिंह बघेल के इस कदम से न केवल गोवंश की स्थिति सुधरी है बल्कि किसानों की भी आर्थिक प्रगति हुई है. छत्तीसगढ़ गोबर खरीदने वाला और गोबर खरीदी को लाभ में बदलने वाला पहला राज्य बन गया है. ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लक्ष्य के साथ किसी प्रदेश में ऐसा पहली बार हो रहा है, जब राज्य सरकार ऐसे पदार्थों की उपयोगिता आमजन को समझा रही है. अब तक लगभग इस मुद्दे को कचरे की श्रेणी में रखा जाता है. गोधन न्याय योजना का उद्देश्य यह है कि राज्य के किसान, पशुपालकों और पशुओं को लाभ मिल सके. लाभार्थियों की आय में वृद्धि हो सके और पशु की देख रेख भी अच्छे से हो पाए.

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बघेल सरकार किसानों से खरीद रही गोबर और गोमूत्र
इस योजना के तहत गोबर की खरीद का जिम्मा छत्तीसगढ़ राज्य नगरीय प्रशासन का है. हालांकि, अब छत्तीसगढ़ सरकार ने किसानों से गोमूत्र खरीदना भी शुरू कर दिया है. गोवंशों को अनादर से बचाने और किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए गोधन न्याय योजना बघेल द्वारा 20 जुलाई 2020 को शुरू की गयी. इस योजना के अंतर्गत राज्य सरकार द्वारा गाय पालने वाले पशुपालक किसानों से गाय का गोबर ख़रीदा जाता है और इस गोबर का उपयोग सरकार वर्मी कंपोस्ट खाद बनाने के लिए करती है. यह वर्मी कंपोस्ट ₹10 प्रति किलो की दर से बेचा जाएगा. कुछ जगहों पर गौठान में गोबर गैस तैयार कर घरों में गैस सप्लाई का काम भी प्रारंभ हुआ है. राज्य में गोबर से बिजली उत्पादन की संभावनाओं का अध्ययन भी किया जा रहा है. सबसे खास बात यह कि इन गौठानों को ग्रामीण औद्योगिक प्रतिष्ठान के रूप में विकसित किया जा रहा है. यानी कुल मिलाकर कहें तो यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने वाला एक वैज्ञानिक मॉडल है.

10,000 गांवों में बनाए गए हैं गौठान
पिछले साल लोकसभा में कृषि की स्थायी समिति ने केंद्र सरकार को छत्तीसगढ़ की 'गोधन न्याय योजना' की तरह गोबर खरीदने की कोई योजना बनाने का सुझाव दिया था. इसके अतिरिक्त पड़ोसी राज्य झारखंड ने इसी पर आधारित झारखण्ड गौधन न्याय योजना की घोषणा की वहीं मध्य प्रदेश समेत आठ राज्यों ने छत्तीसगढ़ की देखा-देखी गोबर खरीद योजना पर काम भी शुरू कर दिया. ऐतिहासिक रूप से अब तक इस योजना के तहत 15 करोड़ लाभार्थियों को लगभग 581 करोड़  रुपए का भुगतान किया जा चुका है. इसमें 18 करोड़ रुपए की बोनस राशि भी शामिल है. किसानों के कल्याण हेतु प्रतिबद्ध भूपेश सरकार द्वारा छत्तीसगढ़ गोधन न्याय योजना 2022 के तहत अब तक 10 हजार से अधिक गांवों में गौठानो के निर्माण की स्वीकृति दी जा चुकी है, इनमें से अधिकर बन चुके हैं. ज्ञातव्य हो कि 10000 से ज्यादा गौठानो में 6000 से ज्यादा गौठान आत्मनिर्भर हैं.

2.5 लाख से ज्यादा पशुपालक जुड़े 
जहां एक तरफ अन्य राज्यों में गोवंशों को चारा के अभाव है, देश के सबसे बड़े सूबे यूपी और मध्य प्रदेश की गौशालाओं में गोवंश मर रहे हैं. छत्तीसगढ़ के  गौठान चारा उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर बनने के करीब है. राज्य के गौठानों से 14 हजार के करीब महिला स्व-सहायता समूह सीधे जुड़े चुके हैं. राज्य के लगभग ढाई लाख से अधिक ग्रामीण पशुपालक किसान और डेढ लाख से अधिक भूमिहीन परिवार लाभ की प्राप्ति कर रहे हैं. गोबर बेचकर कमाई करने वालो में लगभग आधी संख्या महिलाओं की है. निम्न आय वर्ग वाले पशुपालकों और आर्थिक रूप से अनाथ महिलाओं को केंद्र में रखकर भूपेश बघेल ने बीते हरेला उत्सव के दौरान गौमूत्र खरीदने संबंधी योजना की भी शुरुआत की है. अब कुल मिलाकर गोवंशों के गोबर और गोमूत्र दोनों उपयोगी होंगे.

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सरकार पशुपालकों से खरीद रही गोमूत्र
सरकार पशुपालकों से चार रुपये प्रति लीटर में गोमूत्र खरीद रही है. इस योजना के तहत बघेल पहले गोमूत्र विक्रेता बने. पहले ही दिन उन्होंने पांच लीटर गोमूत्र बेचा. समूह द्वारा उन्हें 20 रुपये का भुगतान भी किया गया. गोबर से जिस तरह जैविक खाद बनाकर बेचा जा रहा है. उसी तरह से गोमूत्र से जैविक कीटनाशक बनाकर गोठान समितियों और महिला स्वसहायता समूहों के माध्यम से बेचा जाएगा. पहले राज्य सरकार ने बाकायदा कामधेनु विश्वविद्यालय और इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय से गोमूत्र और गोबर पर एक महत्वपूर्ण अध्ययन कराया. इसके बाद इसकी चरणबद्ध तरीके से शुरुआत की गई है. सरकार इस योजना के जरिए पशु पालन से जुड़े लोगों की कमाई के स्रोत बढ़ाने और जैविक खेती को बढ़ावा दे रही है। सबसे बड़ी बात सरकार को इसमें उम्मीद से अधिक सफलता मिल रही है. 

अंतर्राष्ट्रीय मॉडल बन सकती है यह योजना
छत्तीसगढ़ में 20वीं पशु गणना के अनुसार, 99.84 लाख गोवंशीय पशु और 11.75 लाख भैंस हैं. ऐसे में महिलाओं से लेकर भूमिहीन मजदूरों और किसानों से लेकर निम्नआय वाले सभी वर्गों के लिए बघेल की यह योजना किसी वरदान से कम नहीं. पिछले दो सालों में यानी जब से यह योजना शुरू हुई है, दूध नहीं देने वाली गायों को लावारिस छोड़ने की प्रवृत्ति पर रोक लगी है. इसके अलावा राज्य में जैविक खेती को भी ऐतिहासिक बढ़ावा मिला है. गोबर बेचने वाली 47 फ़ीसदी महिलाएं हैं. यानी अब महिलाओं को भी आर्थिक संबल मिल रहा है. गोधन न्याय योजना ने गांव की अर्थव्यवस्था के लिए एक संजीवनी का काम किया है. जिस नजरिए और तल्लीनता के साथ छत्तीसगढ़ की सरकार पशुपालकों और गोवंशों के सामूहिक कल्याण के लिए कार्य कर रही है, भविष्य में यह नजरिया एक अंतर्राष्ट्रीय मॉडल बन सकता है.

लेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं. 
(डॉक्टर गिरीश कुमार जनसंचार और सार्वजनिक नीतियों के विशेषज्ञ हैं. गांधीवादी विचारधारा सर्वोदय पर काम कर रहे हैं.)

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