जब सीता को डोली में बैठाकर राम से मिलाने लाया था रावण, जानिए रामायण की अनसुनी कहानियां - धर्मयुग में

Written By सुशांत एस. मोहन | Updated: May 01, 2024, 04:48 PM IST

कार्यक्रम 'धर्मयुग' में सुशांत एस मोहन (बाएं) और पंडित अर्जुन शास्त्री.

Untold story of Ramayana: पुजारी बनना स्वीकार करने वाला रावण जानता था कि भारतीय परंपरा में शिव स्थापना जैसे अनुष्ठान में पति-पत्नी का साथ बैठना अनिवार्य होता है. इसलिए उसने माता सीता को सारी जानकारी दी और अनुचरों संग माता सीता को लेकर समुद्रतट पर पहुंचा, जहां प्रभु राम शिव-स्थापना करने वाले थे.

लंकापति रावण युद्ध शुरू होने से पहले माता सीता को डोली में बैठाकर प्रभु श्रीराम के पास लेकर आया था. यह जानकारी पंडित अर्जुन शास्त्री ने डीएनए हिंदी के कार्यक्रम 'धर्मयुग' में दी. उन्होंने बताया कि समुद्रतट पर जब रामसेतु बन चुका था, तब लंका पर चढ़ाई करने से पहले प्रभु श्रीराम ने भगवान शिव की स्थापना की थी. इस स्थापना के लिए जामवंत के सुझाव पर पुजारी के रूप में रावण को बुलाया गया. खुद जामवंत यह प्रस्ताव लेकर रावण के पास गए थे, जिसे रावण से स्वीकर कर लिया था. 

रावण ऐसे लाया माता सीता को

पंडित अर्जुन शास्त्री बताते हैं कि यह कथा बरवै रामायण और आनंद रामायण में है. पंडित जी के अनुसार, लंकापति रावण ने पूजन सामग्री को लेकर जामवंत को आश्वस्त किया था कि तय समय पर वह स्वयं ही सारी सामग्री लेकर वहां आ जाएगा. चूंकि रावण जानता था कि भारतीय परंपरा में इस तरह के किसी भी अनुष्ठान में पति-पत्नी का साथ बैठना अनिवार्य होता है. इसलिए उसने माता सीता को सारी जानकारी दी और अपने अनुचरों संग माता सीता को लेकर समुद्रतट पर पहुंचा, जहां प्रभु राम भगवान शिव की स्थापना करने वाले थे. 


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पंडित अर्जुन शास्त्री के अनुसार, समुद्रतट पर रावण ने पूरी विधि से शिव की स्थानपना करवाई. उसके बाद वह माता सीता को लेकर लंका लौट गया. पंडित जी ने कहा कि भगवान राम जानते थे कि सीता को रोक लेना धर्मविरुद्ध बात होगी, इसलिए उन्होंने रावण को जाने दिया. पंडित अर्जुन शास्त्री ने के अनुसार, यही उस समय की अच्छाई थी कि लोग युद्ध के दौरान भी धर्म का पालन करते थे, जबकि अब लोग धर्म के नाम पर लोग युद्ध करते हैं.

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