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दुनिया
कई पाकिस्तानी कार्यकर्ताओं और लेखकों ने सोशल मीडिया पर पाकिस्तान की आलोचना की और सरकार को गाजा में 'नरसंहारकारी युद्ध' और इजरायल द्वारा ईरान पर बमबारी को डोनाल्ड ट्रंप के समर्थन की याद दिलाई.
2026 के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को नामित करने का पाकिस्तान का कदम न केवल भू-राजनीतिक विशेषज्ञों के लिए, बल्कि पाकिस्तानियों और देश के नेताओं के लिए भी एक बड़ा झटका है. ट्रंप द्वारा गाजा में 'नरसंहार युद्ध' और ईरान पर इजरायल की बमबारी का समर्थन करने की सरकार को याद दिलाते हुए, कई पाकिस्तानी कार्यकर्ताओं और लेखकों ने सोशल मीडिया पर पाकिस्तान की आलोचना की.
ध्यान रहे एक्स पर पाकिस्तान की आलोचना का दौर तब शुरू हुआ जब पाकिस्तान ने औपचारिक रूप से घोषणा की कि उसने नोबेल पुरस्कार के लिए ट्रंप के नाम का प्रस्ताव रखा है, जिसमें भारत और पाकिस्तान के बीच शत्रुता के दौरान उनके 'निर्णायक कूटनीतिक हस्तक्षेप' को श्रेय दिया गया.
यह तब हुआ जब भारत ने कई मौकों पर यह स्पष्ट किया कि ऑपरेशन सिंदूर के चरम पर पाकिस्तान के आग्रह पर दोनों देशों के बीच युद्ध विराम सीधे बातचीत से तय हुआ था. पाकिस्तानी पत्रकार और लेखक जाहिद हुसैन ने कहा कि यह दयनीय है कि सरकार ने ऐसे व्यक्ति के लिए नोबेल की सिफारिश की है जिसने 'गाजा में नरसंहार युद्ध'का समर्थन किया था और ईरान पर आक्रमण करने की योजना बना रहा था.
हुसैन ने ट्वीट किया कि, 'ट्रंप ने ईरान पर इजरायल के हमले को 'उत्कृष्ट' कहा है. और पाकिस्तानी सरकार ने उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के लिए अनुशंसित किया है...पाकिस्तान सरकार की ओर से यह बहुत दयनीय है. एक व्यक्ति जिसने गाजा में नरसंहार युद्ध का समर्थन किया है और ईरान पर आक्रमण करने की योजना बना रहा है.'
मलीला लोधी, जिन्होंने पहले संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान की राजदूत के रूप में काम किया था, ने कहा कि 'अनुग्रह' नीति के रूप में काम नहीं कर सकता और सरकार के कदम को दुर्भाग्यपूर्ण बताया.
लोधी ने ट्वीट किया कि,यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार नोबेल शांति पुरस्कार के लिए ट्रम्प की सिफारिश कर रही है. एक व्यक्ति जिसने गाजा में इजरायल के नरसंहार युद्ध का समर्थन किया है...यह कदम पाकिस्तान के लोगों के विचारों को नहीं दर्शाता है.'
Ingratiation cannot serve as policy. It is unfortunate that the govt is recommending Trump for a Nobel peace prize. A man who has backed Israel's genocidal war in Gaza & called Israel's attack on Iran as "excellent". This move does not reflect the views of the people of Pakistan.
— Maleeha Lodhi (@LodhiMaleeha) June 21, 2025
बताते चलें कि पाकिस्तान की यह घोषणा ट्रंप द्वारा व्हाइट हाउस में पाकिस्तानी सेना प्रमुख फील्ड मार्शल असीम मुनीर की मेजबानी के कुछ दिनों बाद आई है. व्हाइट हाउस की प्रवक्ता एना केली ने पहले कहा था कि ट्रंप ने मुनीर को दोपहर के भोजन के लिए आमंत्रित किया था, क्योंकि सेना प्रमुख ने भारत और पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध को रोकने के लिए उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित करने का वादा किया था.
कई पाकिस्तानी कार्यकर्ताओं ने भी सरकार की निंदा की और 'कठपुतली शासन' की निंदा करते हुए कहा कि उसमें'कोई गरिमा नहीं है'.
रिदा रशीद ने ट्वीट किया कि, 'गाजा में नरसंहार अभी भी हो रहा है क्योंकि ट्रम्प ऐसा चाहते हैं. मध्य पूर्व में एक और युद्ध चल रहा है क्योंकि ट्रम्प ने इसका आह्वान किया है.और फिर भी, साम्राज्य को खुश करने के लिए उत्सुक पाकिस्तान की कठपुतली सरकार ने नोबेल शांति पुरस्कार के लिए उनकी सिफारिश की है। कोई गरिमा नहीं.'
The nomination of President Donald Trump for the 2026 Nobel Peace Prize by the Government of Pakistan is a deeply misguided and ethically hollow decision.
— Senator Allama Raja Nasir (@AllamaRajaNasir) June 21, 2025
Citing his mediation in the India-Pakistan ceasefire, this move ignores his troubling record of supporting genocidal…
एक अन्य कार्यकर्ता नूर-ए-मरियम कंवर ने कहा कि पाकिस्तान ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वह 'किराए पर रहने वाला राज्य बना रहेगा. वहीं आलोचना सीनेटर अल्लामा राजा नासिर ने पाकिस्तान की तीखी आलोचना करते हुए कहा कि, इस तरह का नामांकन शांति और न्याय के उन सिद्धांतों को कमजोर करता है, जिन्हें यह पुरस्कार बनाए रखने का दावा करता है. इसके अलावा, यह इशारा बहुत मायने नहीं रखता, क्योंकि नोबेल शांति पुरस्कार लंबे समय से पश्चिमी देशों के अपने लोगों को सम्मानित करने और अपने भू-राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए एक उपकरण के रूप में काम करता रहा है.
ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान के इस कदम की आलोचना सिर्फ पाकिस्तानी ही कर रहे हैं. वैश्विक विदेश नीति विशेषज्ञों ने भी इस मामले में अपनी राय दी है. राष्ट्रीय सुरक्षा विशेषज्ञ डेरेक जे ग्रॉसमैन ने कहा, 'पाकिस्तान के पास जो भी सम्मान बचा था, और वह भी बहुत कुछ नहीं था, वह अब खत्म हो चुका है'।
कम्युनिटी अलायंस फॉर पीस एंड जस्टिस की निदेशक मेहलका समदानी ने इसे 'घृणास्पद चापलूसी' का खुला प्रदर्शन बताया।उन्होंने ट्वीट किया, 'यह अविश्वसनीय रूप से शर्मनाक है. पाकिस्तान सरकार द्वारा नोबेल शांति पुरस्कार के लिए ट्रम्प की सिफारिश करना गुलामी और उपनिवेशवादी मानसिकता को दर्शाता है.'