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America दुनिया को देता है मानवाधिकार की नसीहत, खुद उड़ा रहा है नियमों की धज्जियां

अमेरिका में नस्लभेद से लेकर महिला सुरक्षा तक के मुद्दों पर मानवाधिकार हनन हो रहा है जिसको लेकर एक अहम रिपोर्ट सामने आई है.

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डीएनए हिंदी: पूरी दुनिया को मानवाधिकार का पाठ पढ़ाने वाले और मानवाधिकार के हनन के नाम पर दुनिया के कई देशों पर प्रतिबंध और हमला तक करने वाले अमेरिका को आज उसके देश में हो रहे मानवाधिकारों का हनन पर मानवधिकारों के लिए काम करने वाली भारतीय संस्था Centre फ़ॉर Democracy, Pluralism and Human Rights (CDPHR) ने आईना दिखाते हुए अमेरिका में मानवाधिकार हनन पर रिपोर्ट जारी की है.

अमेरिका को लेकर आई विस्तृत रिपोर्ट

CDPHR ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि अमेरिका का संविधान किस तरह आज भी दास-प्रथा (Slavery) के समर्थन में खड़ा हुआ है और दास-प्रथा के समर्थन में बने संविधान के भागों को न ही आज तक हटाया गया और न ही इनमें किसी भी प्रकार का परिवर्तन किया गया. CDPHR की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिकी संविधान के चौथे आर्टिकल का तीसरा क्लॉज़ (Clause) गुलाम बनाने वाले व्यक्ति को गुलाम को साथ रखने के लिए अधिकृत करता है और गुलाम के भागने पर कड़ी सजा तक का प्रवधान है.

CDPHR की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका के कैलिफ़ोर्निया और न्यूयॉर्क प्रान्त के संविधान में ऐसे प्रावधान हैं जो अमेरिका के मूल निवासी यानी रेड इंडियंस को रहने के लिए घर तक मुहैया नहीं करवाते हैं. अमेरिका खुद के विश्व का सबसे पुराना लोकतंत्र होने का दावा करता है लेकिन CDPHR की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिकी कानून और वहाँ की अदालते जिन पर इंसाफ देने की जिम्मेदारी है वो तो नस्लभेद का गढ़ हैं. 

अदालतों तक में हैं नस्लभेद

CDPHR के मुताबिक अमेरिका में वर्ष 1994 में एक ऐसा कानून बनाया गया था जिसकी वजह से अमेरिका में एक ही तरह का अपराध करने पर अश्वेतों को श्वेतों के मुकाबले ज्यादा कड़ी सज़ा होती है. वहीं अमेरिका की अदालतें तो नस्लभेद का इतना बड़ा अड्डा हैं कि वहां ज्यादातर बड़े पद पर श्वेत ही बैठे हैं और अश्वेत को क्लर्क तक की नौकरी ढूंढने में मुश्किल आती है. 

CDPHR की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका पूरी दुनिया को भेदभाव न करने की सलाह देता है लेकिन वहां के मीडिया संस्थानों से लेकर शिक्षण संस्थानों में पढ़े-लिखे होने के बावजूद अश्वेतों की भागीदारी न के बराबर है और इन जगहों पर सिर्फ उन्हीं अश्वेतों को नौकरी मिलती है जो श्वेतों के एजेंडे को आगे बढ़ाते हैं. ऐसा ही हाल अमेरिका की चर्चो का भी है वहां भी अगर चर्च का पादरी अश्वेत होगा तो भी चर्च को चलाने वाला श्वेत ही होगा.

अमेरिका में किस कदर अश्वेतों की जनसंख्या कम करने के लिए अभियान चलाया जा रहा है इस बात का भी CDPHR ने अपनी रिपोर्ट में प्रमाण दिया है और CDPHR के मुताबिक अमेरिका में प्लांड पैरेंटहुड नाम का एनजीओ जिसे श्वेत कंट्रोल करते हैं वो अश्वेतों की आबादी को कम करने के उद्देश्य से वहां अश्वेतों को बहला फुसला कर उनका एबॉर्शन तक करवाता है ताकि अश्वेत जनसंख्या अमेरिका में और कम हो सके.

धार्मिक स्तर पर भी है भेदभाव

CDPHR के मुताबिक दुनिया को धार्मिक स्वतंत्रता का ज्ञान देने वाला अमेरिका खुद धार्मिक स्वतंत्रता का हनन करता है और वहां के जोनिंग कानून हिंदुओं, बौद्धों को धार्मिक स्थान बनाने से रोकते हैं जिसके उलट अमेरिका के कैलिफ़ोर्निया में 7वीं और 8वीं क्लास के बच्चों को बाइबिल के चमत्कार इतिहास का हिस्सा बता कर पढाये जाते हैं. 

CDPHR के मुताबिक अमेरिका में वहां के मूल निवासी रेड इंडियंस को इस तरह प्रताड़ित करते हैं  और गरीबी में रखते हैं कि 68% रेड इंडियंस की सालाना आय अमेरिका की औसत आय से कम है और 20% रेड इंडियंस की सालाना आय तो महज 5 हज़ार डॉलर ही है. अमेरिका के मूल निवासी रेड इंडियंस पर अत्यचार के अध्याय में रेड इंडियंस औरंतो के बलात्कार की दर अमेरिका के औसत बलात्कार की दर से ढाई गुना ज्यादा है और बच्चों का शोषण दो गुना है.

महिला सुरक्षा पर समझौता

अमेरिका में महिला सुरक्षा पर भी CDPHR ने अपनी रिपोर्ट में सवाल उठाए हैं और CDPHR के मुताबिक 5 से 1 अमेरिकी महिला से बलात्कार या बलात्कार का प्रयास हुआ है. जबकि बच्चों के यौन शोषण की बात करें तो वर्ष 2014 तक अमेरिका में 4 करोड़ से ज्यादा बच्चों थे जिनका यौन उत्पीड़न हुआ था. CDPHR ने अमेरिका में रेप के मामलों पर सवाल उठाते हुए अपनी रिपोर्ट में बताया कि अमेरिका में जिन महिलाओं का रेप हुआ था उसमें आधी महिलाओं का बलात्कार उनके साथी या जानने वाले ने किया था.

अमेरिका के लोकतंत्र और चुनावी प्रणाली पर सवाल उठाते हुए CDPHR ने कहा कि अमेरिका में आज भी कई अश्वेतों के वोटर आईडी कार्ड नहीं बने हैं. कई मौकों पर तो अश्वेतों के वोट तक कि गिनती नहीं की गई ताकि श्वेत जनता जिसे जिताना चाहती है वो जीत जाए. वर्ष 2000 में अमेरिका में वोटिंग फ्रॉड के 1,300 मामले सामने आए थे जिसमें अश्वेतों के बाहुल्य पोलिंग स्टेशन के वोटों वाले बैलट बॉक्स को गायब कर दिया गया था. CDPHR के मुताबिक अमेरिका का लोकतंत्र तो ऐसा है कि वहां सिर्फ दो पार्टी डेमोक्रेट और रिपब्लिकन मौजूद हैं. तीसरी विचारधारा वाले को तो चरमपंथी करार दिया जाता है.

स्वास्थ्य सेवाओं में भी दिखता है पक्षपात

अमेरिका की स्वास्थ्य सेवाओं में भी उसकी नस्लभेदी नीति की झलकी दिखती है. CDPHR के मुताबिक अमेरिका में हिस्पैनिक आबादी कुल आबादी का 18% लेकिन कोरोना से होने वाली मौतों मर 24% . इसी तरह  अश्वेत कुल आबादी में 13% हैं लेकिन कोरोना की मौतों में 14%. CDPHR के मुताबिक अमेरिका की नस्लभेदी स्वास्थ्य प्रणाली का ही नतीजा है कि 4% की वैश्विक आबादी वाले अमेरिका में विश्व के 25% वैश्विक कोरोना के मामले थे.

CDPHR के मुताबिक अमेरिका की सरकारें मानवाधिकार का हनन सिर्फ अमेरिका में नहीं करती बल्कि पूरे विश्व में अमेरिका का मानवाधिकार हनन जग जाहिर है. CDPHR के मुताबिक अमेरिका की वजह से इराक युद्ध मे 9 करोड़ से ज्यादा, सीरिया में 7 करोड से ज्यादा , अफ़ग़ानिस्तान, सोमालिया और यमन में 4 करोड़ से ज्यादा लोग बेघर हो चुके हैं. CDPHR के मुताबिक NATO अमेरिका का प्यादा है जिसका प्रयोग अमेरिका दुनिया के देशों को अस्थिर करने के करती है. इसी अस्थिरता की कोशिश ने अफगानिस्तान में लगभग ढाई लाख, युगोस्लाविया में 1 लाख 30 हज़ार, सीरिया में साढ़े 3 लाख लोगों की जान ले ली. 

सरकार की गलतियां छिपाती है तंत्र

CDPHR के मुताबिक अमेरिकी मीडिया और वहां की कथित मानवाधिकार संरक्षण का दावा करने वाली संस्थाएं अमेरिका के मानवाधिकार हनन को न सिर्फ छुपाती हैं बल्कि दुनिया के वो देश जिन्हें अमेरिका पसन्द नहीं करता वहां की गलत रिपोर्ट दिखा कर दुनिया को उस देश के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश करती हैं.

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CDPHR की प्रमुख प्रेरणा मल्होत्रा ने बताया कि अमेरिका और उसकी मीडिया दुनिया के सामने अमेरिका के पापों को छुपाती हैं और दूसरे देशों के खिलाफ रिपोर्ट देती हैं ताकि दुनिया की नज़र अमेरिका के मानवाधिकार हनन पर ना पड़े. आज इसीलिए CDPHR ने अमेरिका के पापों पर विस्तृत रिपोर्ट जारी की है ताकि भारत समेत पूरे विश्व जान सके कि दुनिया भर में मानवाधिकार का ढिंढोरा पीटने वाला अमेरिका खुद मानवाधिकार का कितना बड़ा भक्षक है.

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