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VIJAY DIWAS 2022: 1971 के भारत-पाक युद्ध में शहीद हुए भारतीय सैनिकों को श्रृद्धांजलि देने के लिए हर साल 16 दिसंबर को विजय दिवस मनाया जाता है.
डीएनए हिंदी: आज से करीब 51 साल पहले पश्चिमी पाकिस्तान (वर्तमान पाकिस्तान) के लगातार (Vijay Diwas) अत्याचारों से मुक्ति पाने के लिए 26 मार्च 1971 को पूर्वी पाकिस्तान(वर्तमान बांग्लादेश) ने आधिकारिक तौर पर अपने आजाद होने की घोषणा की. उस समय बांग्लादेश (Indo-Pak War 1971) को इस बात का अंदाजा बिल्कुल भी नहीं था कि इस घोषणा से पाकिस्तान कैसे बौखला उठेगा? पाकिस्तान जोकि आजादी के बाद से ही बांग्लादेश पर दबाव और तानाशाही करते हुए आ रहा था उसने इस घोषणा के बाद अपनी तानाशाही को और अधिक बढ़ा दिया. पड़ोसी देश के साथ हो रहे इन अत्याचारों को रोकने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (PM Indira Gandhi) ने बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम (Bangladesh Liberation War) में पूर्ण समर्थन देने का वादा किया. भारत ने अपनी सेनाओं को आदेश दिया कि वे पाकिस्तानी सेनाओं को बांग्लादेश से खदेड़ दें. इसके बाद 1971 में एक बड़ा युद्ध लड़ा गया. इस युद्ध में पाकिस्तान पर भारतीय सशस्त्र बलों की जीत हुई.
16 दिसंबर 1971 को पूर्वी पाकिस्तान की आजादी और बांग्लादेश (Bangladesh) का नए राष्ट्र के रूप में निर्माण हुआ. इस युद्ध में इस युद्ध में करीब 8,000 पाकिस्तानी सैनिकों की मौत हुई थी. जिसके बाद भारतीय सेनाओं के आगे घुटने टेकते हुए साल 1971 में पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल नियाजी ने अपने 93,000 सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया था. इस युद्ध (VIJAY DIWAS 16 December 2022) में लगभग 2,908 भारतीय सैनिक अपने शौर्य का परिचय देते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे. इन भारतीय वीर जवानों की शहादत को श्रद्धांजलि देने के लिए ही 16 दिसंबर को विजय दिवस (Vijay Diwas Significance) के रूप में मनाया जाता है.
बांग्लादेश में विजय दिवस को‘Bijoy Dibosh’ या बांग्लादेश मुक्ति दिवस (Bangladesh Liberation Day) के रूप में भी मनाया जाता है, जो पाकिस्तान से लड़कर जीती गई बांग्लादेश की आधिकारिक स्वतंत्रता का प्रतीक भी है. क्या आप जानते हैं कि बांग्लादेश में आजादी की लौ कैसे जली, भारत (VIJAY DIWAS 1971) की उसमें भूमिका, पाकिस्तान की काली करतूतें, ऐसी बातें हैं जो अतीत के पन्नों में दबी रह गई पर आज उन्हीं सब बातों को हम आप सबके लिए लेकर आए हैं. इन्हें जानना आप सभी के लिए बेहद जरूरी है.
1. 25 मार्च 1971 को एक पूर्वी पाकिस्तानी राजनीतिक दल (अवामी लीग) द्वारा जीते गए चुनाव के बाद पश्चिम पाकिस्तानी ने इसको नजरअंदाज किया. इसके बाद पश्चिमी सत्ताधारियों के आदेशों पर पाकिस्तानी सेना ने हिंसक कार्रवाई करना शुरु कर दिया. हिंसक कार्रवाई के चलते पाकिस्तानी सेना द्वारा नरसंहार किए गए जिसमें हजारों-लाखों लोगों की हत्याएं हुई. इससे नाराज अवामी लीग के नेता शेख मुजीबुर रहमान ने 26 मार्च 1971 को बांग्लादेश के रूप में पूर्वी पाकिस्तान की स्वतंत्रता की घोषणा की. ज्यादातर बंगालियों ने इस कदम का समर्थन किया पर इस्लामिक और बिहारी लोगों ने इसका विरोध किया और पाकिस्तानी सेना का पक्ष लिया.
2. 1971 के समय पाकिस्तान में जनरल याह्या खान(Vijay Diwas Top Story) राष्ट्रपति थे और उन्होंने पूर्वी हिस्से में फैली नाराजगी को दूर करने के लिए जनरल टिक्का खान को जिम्मेदारी दी पर उन्होंने दबाव से मामले को हल करने के प्रयास किये जिससे गृह युद्ध शुरू हो गया. युद्ध के कारण लगभग 1 करोड़ शरणार्थी भारत (VIJAY DIWAS 16 December 2022) के पूर्वी प्रांतों में आकर रहने लग गए. भारत ने इस बढ़ते मानवीय और आर्थिक संकट का सामना करने वाले बांग्लादेशी लोगों की सहायता (Indo-Pak War 1971) की साथ ही उन सबको एकजुट करके मुक्ति बाहिनी सेना बनाई जो पाकिस्तानी आक्रमणकारियों को जवाब देने और अपने लोगों की मदद करने में सक्षम हो सके.
3. आजादी के बाद से ही जब भारत और पाकिस्तान (Indo-Pak War 1971) का निर्माण हुआ तभी से मोहम्मद अली जिन्ना ने पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली सभ्यता, संस्कृति, भाषा सभी को खत्म करने और बांग्लादेश को पूर्ण इस्लामिक देश बनाने के लिए कई साजिश रची. जिसने बंगाल के लोगों में धीरे-धीरे आक्रोश पैदा कर दिया और यहां से शुरुआत हुई एक अलग देश के रूप में बंगाल को स्थापित करने की.
4. बंगालियों का सबसे पहले प्रतिरोध सहज और असंगठित था जिसकी लंबे समय तक चलने की उम्मीद भी नहीं थी. हालांकि जब पाकिस्तानी सेना ने पूर्वी पाकिस्तान (Vijay Diwas 16 December 2022) की आबादी पर अपनी नकेल कसना शुरू किया तो प्रतिरोध अचानक बढ़ गया. मुक्ति बाहिनी सेना तेजी से सक्रिय हो गई. पाकिस्तानी सेना ने उन्हें कुचलने की कोशिश की पर बंगाली सैनिकों की बढ़ती संख्या "बांग्लादेशी सेना" में में शामिल हो गई और धीरे-धीरे मुक्ति बाहिनी (mukti bahini) में विलीन हो गई. इसके बाद मुक्त बाहिनी ने भारत की मदद से खुदको सशस्त्र किया. वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान ने 2 इन्फैन्ट्री डिवीजनों को एयरलिफ्ट करके बंगाल भेजा और अपनी सेना को पुनर्गठित करके क्रांतिकारियों को पर हमला किया. पाकिस्तान ने अपनी पैरामिलिट्री फोर्स 'रजाकार' , 'अल-बदर' और 'अल-शम्स' के साथ-साथ स्वतंत्रता का विरोध करने वाले अन्य बंगालियों और बिहारी मुसलमानों को युद्ध में क्रांतिकारियों के सामने खड़ा कर दिया.
5. 1971 के युद्ध में भारत की भूमिका
भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने निष्कर्ष निकाला कि लाखों शरणार्थियों शरण देने की बजाए अगर भारत पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध (Indo-Pak War 1971) में में बांग्लादेश का साथ दे तो भारत के लिए यह आर्थिक रूप से बेहतर होगा निर्णय होगा. 28 अप्रैल 1971 (VIJAY DIWAS 2022) की शुरुआत में भारतीय मंत्रिमंडल ने जनरल मानेकशॉ को "पूर्वी पाकिस्तान में जाने" के लिए कहा था. भारत और पाकिस्तान के बीच पहले के शत्रुतापूर्ण संबंधों ने पाकिस्तान के गृहयुद्ध में हस्तक्षेप करने के भारत (Vijay Diwas Significance) के निर्णय को मजबूती भी दी. परिणामस्वरूप भारत सरकार ने मुक्ति बाहिनी (bijoy dibosh) का समर्थन करके जातीय बंगालियों के लिए एक अलग राज्य के निर्माण का समर्थन करने का निर्णय लिया. भारत की अन्तर्राष्ट्रीय गुप्तचर संस्था रॉ (RAW) ने इन बंगाल की आजादी के लिए लड़ रहे क्रांतिकारियों को संगठित करने, प्रशिक्षित करने और हथियारों से लैस करने में मदद की. इससे मुक्ति बाहिनी पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना को कड़ी टक्कर देने में सफल रही. देखते ही देखते दिसंबर की शुरुआत में पूर्ण पैमाने पर भारतीय सैन्य हस्तक्षेप (Indo-Pak War 1971) के लिए तैयार हो चुकी थी.
दूसरी ओर 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी वायुसेना (PAF) ने भारतीय वायुसेना की चौकियों पर 6 दिन तक प्री एम्टिव स्ट्राइक की. ये सभी हमले इजरायली एयरफोर्स के ऑपरेशन 'फोकस' पर प्रेरित थी और इसका उद्देश्य भारतीय वायुसेना के विमानों को बेअसर करना था. पाकिस्तानी वायुसेना के हमले को भारत और पाकिस्तान दोनों ने औपचारिक रूप से "दोनों देशों के बीच युद्ध की स्थिति के अस्तित्व" को स्वीकार किया. हालांकि किसी भी सरकार ने औपचारिक रूप से युद्ध की घोषणा जारी नहीं की थी.
भारतीय सेना के 3 सैन्य दल पूर्वी पाकिस्तान की आजादी (VIJAY DIWAS 1971) की लड़ाई में शामिल थे. मुक्ति बाहिनी के तीन ब्रिगेडों ने भारतीय सैन्य दलों को अपना सहयोग दिया जो उनके साथ लड़ रहे थे. ये सैन्य दल पाकिस्तानी सेना से कहीं ज्यादा बेहतर और मजबूत थे. भारतीय सेनाओं ने अपने अदम्य साहस और शौर्य के दम पर बंगलादेश पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया था.
वहीं पाकिस्तानी सेना भारतीय वीर जवानों के आगे ज्यादा देर तक टिक नहीं पाई और 16 दिसंबर 1971 को जनरल आमिर अब्दुल्ला खान नियाजी (General Amir Abdullah Khan Niazi) के नेतृत्व में लगभग 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने
आत्मसमर्पण कर दिया. इस लड़ाई में पाकिस्तान के 8000 सैनिक मारे गए और 25,000 घायल हुए. भारतीय सेना के अनुसार भारत के 2,908 सैनिक शहीद और 12,000 से अधिक घायल हुए थे. भारत ने 16 दिसंबर को युद्ध के अंत तक 93,000 युद्धबंदियों को भी रखा था. युद्ध के 8 महीने बाद अगस्त 1972 में भारत और पाकिस्तान ने शिमला समझौता (Shimla Agreement 1972) किया. इसके तहत पाकिस्तानी सैनिकों को वापस पाकिस्तान भेज दिया गया था.
6. 1971 युद्ध में भारतीय वायुसेना और नेवी का कमाल
भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के खिलाफ इस युद्ध (Indo-Pak War 1971) में कई उड़ानें भरीं और एक हफ्ते के अंदर भारतीय वायु सेना के विमानों ने पूर्वी पाकिस्तान के आसमान पर अपना दबदबा बना लिया था. भारत-पाक युद्ध 1971 के पहले सप्ताह के अंत तक भारतीय वायुसेना ने लगभग पूरी तरह से हवाई वर्चस्व हासिल कर लिया था. इसका एक कारण ये भी था कि पूर्व में पूरी पाकिस्तानी वायु टुकड़ी, PAF नंबर 14 स्क्वाड्रन, तेजगाँव, कुर्मीटोला, लालमोनिरहाट और शमशेर नगर में भारतीय और बांग्लादेश के हवाई हमलों के कारण जमींदोज हो गई थी.
भारतीय नौसेना के युद्धपोत आईएनएस विक्रांत के 'सी हॉक्स फाइटर जेट' ने चटगाँव, बरिसाल और कॉक्स बाजार पर भी हमला किया जिससे पाकिस्तान नेवी का ईस्ट विंग तबाह हो गया और पूर्वी पाकिस्तान के बंदरगाहों को प्रभावी ढंग से ब्लॉ़क कर दिया. इससे फंसे हुए पाकिस्तानी सैनिकों के बचने के सभी रास्ते भी बंद हो गए थे.
7. युद्ध के दौरान बड़े पैमाने पर हुए अत्याचार
मानवाधिकारों का व्यापक उल्लंघन 25 मार्च 1971 को ऑपरेशन 'सर्चलाइट' की शुरुआत (Vijay Diwas Significance) के साथ शुरू हुआ. पाकिस्तानी सेना के सदस्य और समर्थक अर्धसैनिक बलों ने करीब 30 लाख लोगों को मार डाला और 2 से 4 लाख बांग्लादेशी महिलाओं का बलात्कार भी किया
पश्चिमी पाकिस्तान के धार्मिक नेताओं ने खुले तौर पर बंगाली स्वतंत्रता सेनानियों को "हिंदू" बताया जबकि उस समय 80% बंगाली लोग मुसलमान थे. इतना ही नहीं उन्होंने बंग्लादेश की आजादी की लड़ाई को कमजोर करने के लिए बंगाली महिलाओं को "युद्ध की लूट" के रूप में लेबल करके बालात्कार जैसे अपराध का समर्थन भी किया. इससे पाकिस्तानी सेना ने ही नहीं बल्कि पाकिस्तानी सेना के समर्थकों ने भी बड़े पैमाने पर महिला क्रांतिकारियों का रेप किया.
पाकिस्तानी सेना के आदेश पर बांग्लादेश के बौद्धिक समुदाय के एक बड़े वर्ग की हत्या कर दी गई थी. इतना ही नहीं आत्मसमर्पण के ठीक दो दिन पहले 14 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना ने 100 चिकित्सकों, प्रोफेसरों, लेखकों और इंजीनियरों को उठा लिया और उनकी हत्या कर शवों को एक सामूहिक कब्र में छोड़ दिया.
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