Oct 24, 2023, 07:38 PM IST

कहां है पांडवों की स्वर्ग की सीढ़ी

Kuldeep Panwar

महाभारत में पांडवों ने धर्म की राह पर चलते हुए कौरवों को हराया था, लेकिन युधिष्ठिर को हमेशा अपने ही परिजनों की हत्या करने का पछतावा होता रहा था.

महाभारत  17वें अध्याय महाप्रस्थानिका पर्व में लिखा है कुरुक्षेत्र में महाभारत युद्ध खत्म होने पर स्वजनों की हत्या का पाप मिटाने के लिए पांडव तप करने चले गए थे.

युधिष्ठर समेत पांचों पांडवों ने पत्नी द्रौपदी के साथ संन्यास ले लिया था और हिमालय में घूमकर तपस्या करने लगे थे. इसी दौरान उन्होंने सशरीर स्वर्ग जाने की कोशिश की थी.

स्वर्ग जाने के लिए पांडव मौजूदा उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित बदरीनाथ धाम पहुंचे थे. यहां से माणा गांव होते हुए उन्होंने स्वर्ग की यात्रा शुरू की थी.

स्वर्ग की सीढ़ी के इस सफर के बीच में ही बाकी चारों पांडव भाइयों भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव और द्रौपदी की अपने-अपने कर्मों के फल के अनुसार एक-एक कर मृत्यु हुई थी.

सबसे पहले द्रौपदी की मृत्यु ही थी. इसके बाद आने वाले लक्ष्मी वन में नकुल के प्राण निकले थे. भीम ने युधिष्ठिर से पूछा तो उन्होंने कहा, नकुल को अपने रूप पर घमंड था, इसलिए उनकी यह गति हुई है.

इसके बाद ग्लेशियरों के बीच बहुत सारे झरनों वाली सहस्त्रधारा आती है. यहां सहदेव ने अपने प्राण त्यागे थे. भीम के पूछने पर युधिष्ठिर ने कहा, सहदेव के अपनी बुद्धि पर अभिमान करने से ऐसा हुआ है.

मान्यता है कि सहस्त्रधारा के बाद घास का मैदान चक्रतीर्थ आता है, जिसमें अर्जुन का शरीर अपनी वीरता और शौर्य पर घमंड करने के कारण गल गया था. (Representational Image)

चक्रतीर्थ के बाद दीवार जैसी पहाड़ी को पार कर हरे रंग के पानी की सतोपंथ झील पर पहुंचते हैं, जो तिकोनी है. मान्यता है कि एकादशी के दिन ब्रह्मा, विष्णु व शिव अलग-अलग कोने पर खड़े होकर स्नान करते हैं.

सतोपंथ झील पर ही महाबली भीम का निधन अपनी ताकत पर घमंड करने के कारण हुआ था. यहां से दो किलोमीटर आगे हैं स्वर्गरोहिणी में स्वर्ग की सीढ़ियां.

हिमालय के ग्लेशियरों के बीच स्वर्गारोहिणी नाम की जगह पर पांडवों में सबसे बड़े भाई युधिष्ठिर और उनके साथ सफर करने वाला कुत्ता ही पहुंचे थे और यहां से स्वर्ग की सीढ़ी चढ़े थे. 

बताया जाता है कि स्वर्गरोहिणी में आज भी सीढ़ियों जैसी 3-4 चट्टान दिखाई देती हैं. इससे आगे जाना स्थानीय मान्यताओं के हिसाब से और खतरनाक परिस्थितियों के कारण निषेध माना जाता है.

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में पौंग बांध (महाराणा प्रताप सागर) के बीच में बना बाथू की लड़ी मंदिर 8 महीने पानी में डूबा रहता है. मान्यता है सबसे पहले पांडवों ने इस मंदिर में ही स्वर्ग की सीढ़ी बनाने की कोशिश की थी.

ऋषिकेश के पास लोयल गांव में भी स्थानीय लोग एक प्राचीन गुफा के अंदर पांडवों की स्वर्ग की सीढ़ी तक पहुंचने का रास्ता मानते हैं. इस गुफा में पांडवों का बनाया हजारों साल पुराना शिवलिंग भी मौजूद है.

मान्यता है कि इस गुफा का आखिरी छोर हिमालय के उस पर्वत यानी स्वर्गरोहिणी पर खुलता है, जहां स्वर्ग की सीढ़ी मौजूद है. हालांकि यह सफर आज तक कोई नहीं नाप सका है. (Representational Image)