सोने की लंका रावण की नहीं थी. इसे किसी और के लिए बनाया गया था और बाद में इसे उपहार स्वरूप दिया गया था.
रावण से पहले सोने की लंका किसकी थी इसे जानने के लिए एक कथा को जानना होगा.
एक बार विष्णु और लक्ष्मी जी ने शिव-पार्वती को अपने महल के गृहप्रवेश में बुलाया था.
पार्वती जी जब लक्ष्मी जी के महल गईं तो लक्ष्मी जी ने उनसे पूछा की आप कैलाश पर्वत पर इतने ठंड में कैसे रह लेती हैं.
महल से लौट कर पार्वती जी ने शिवजी से कहा कि उनको भी एक महल चाहिए तब शिवजी नें ब्रह्मा जी को महल बनाने का आग्रह किया.
तब ब्रह्मा जी ने सोने का महल बनाया और शिव-पार्वती ने महल के गृहप्रेश में सबको बुलाया. उसमें रावण के पिता ऋषि विश्रवा भी आए.
सोने का महल देखकर ऋषि विश्रवा ने शिवजी से उसे उपहार में मांगा और शिवजी ने उसे दे दिया. इससे पार्वती जी बेहद दुखी हुईं और सोने के महल को जलकर खाक होने श्राप दे दिया.
इसी श्राप के कारण हनुमान जी ने लंका को आग लगाई थी.
(Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है. ये जानकारी सामान्य रीतियों और मान्यताओं पर आधारित है.)