क्या आपको पता है हिंदू धर्म में एक दाल को वेज नहीं नॉनवेज का दर्जा दिया गया है और इसी कारण साधु-संत इसे न खाते हैं न दान में लेते हैं.
साधु-संत, ऋषि-मुनि, ब्राह्मण इस तामसिक गुण वाले भोजन का सेवन नहीं करते हैं और यही कारण है इस दाल से भी वे परहेज करते हैं
हिंदू धर्म को मानने वाले और वेजिटेरियन लोग भी इस दाल को खाने से बचते हैं.
ये दाल है मसूर की और हिंदू धर्म में इस दाल को वेज नहीं, नॉनवेज की कैटेगरी में रखा गया है.
वैष्णव पद्धति को मानने वाले साधु, ब्राह्मण और संत इस अनाज को नहीं खाते हैं. दाल को मांस के समकक्ष भोजन माना जाता है. आइये जानते हैं ब्राह्मण दाल क्यों नहीं खाते.
समुद्र मंथन के दौरान, जब विष्णु मोहिनी अवतार में देवी-देवताओं को अमृत बांट रहे थे, तब स्वर्भानु नाम का एक राक्षस, राक्षस देवता का भेष बनाकर अमृत पीने के लिए उनके बीच में आकर बैठ गया.
जब भगवान विष्णु को इस बात का पता चला तो उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र से राक्षस स्वर्भानु का सिर काट दिया. उसकी मृत्यु नहीं हुई क्योंकि अमृत उसके कंठ तक पहुँच चुका था.
उसका सिर और धड़ अलग हो गये थे. उसके सिर को राहु और धड़ को केतु कहा जाता है. ऐसा माना जाता है कि मसूर की उत्पत्ति उनके खून की बूंदों से हुई थी जो उनका सिर कटने पर जमीन पर गिरी थीं.
सी कारण से वैष्णव संत और अनुयायी दाल को मांसाहार मानते हैं और इसे नहीं खाते हैं.
दाल में तामसिक गुण होते हैं और इसका सेवन करने से व्यक्ति के मन में आक्रामक गुण बढ़ जाते हैं. इससे उसमें क्रोध, हिंसा, वासना, इच्छा जैसे बुरे गुण भी पनपने लगते हैं.
(Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है. ये जानकारी समान्य रीतियों और मान्यताओं पर आधारित है.)