Feb 21, 2024, 09:45 AM IST

अघोरी और नागा बाबा में क्या अंतर हैं?

Ritu Singh

 अगर आप नागा साधुओं (Naga Sadhu) और अघोरियों (Aghori) को एक ही समझते हैं तो बता दें कि दोनों में कुछ समानता जरूर नजर आती है लेकिन दोनों में मूलभूत अंतर है.

दोनों सनातन धर्म के अभिन्‍न अंग हैं. दोनों ही भगवान शिव को अपना आराध्‍य मानते हैं. दोनों देखने में एक से और उग्र लगते हैं. लेकिन इन समानताओं के बाद भी दोनों में कई अंतर हैं.

आदिगुरु शंकराचार्य ने 5वीं शताब्‍दी ईसापूर्व में साधुओं के एक ऐसे वर्ग का गठन किया जो शस्‍त्र धारण करके धर्म की रक्षा करें और जिसे शास्‍त्रों का ज्ञान भी हो. 

इस आधार पर नागा साधुओं की उत्पत्ति हुई और ये अखाड़ों में बांटें. नागाओं ने कई युद्धों में हिस्‍सा भी लिया था. 

 अहमद शाह अब्दाली ने जब मथुरा-वृन्दावन के बाद गोकुल पर आक्रमण किया उस समय साधुओं ने उसकी सेना का मुकाबला करके गोकुल की रक्षा की थी.

नागा कभी वस्‍त्र धारण नहीं करते हैं. उनकी पहचान, त्रिशूल, तलवार, शंख से है. ये दीक्षा से पहले पिंडदान कर लेते हैं.

अघोरपंथ शिव साधक होते हैं. इन्‍हें शिव का स्‍वरूप भी कहा जाता है. ये अपने आराध्‍य की तरह अड़भंगियों का जीवन जीते हैं. अघोरी श्‍मशान में रहते हैं.

ये तंत्र साधना करते हैं और श्मशान में ये नग्न रूप में लेकिन समाजिक रूप से ये काला चोला पहने नजर आते हैं. इनके गले में नरमुंड की माला होती है, राख की धुनि ये भी रमाते हैं लेकिन नरमुंड की माला इनकी पहचान है.

अघोरियों के भी गुरु होते हैं जिनसे ये दीक्षाहैं. लेकिन इनके अखाडे़ या आश्रम नहीं होते. ये अपनी चेतना को ऊपर उठाकर परमचेतना में विलीन करने के लिए वाम मार्गी तंत्र का सहारा लेते हैं

अघोरी वाम मार्गी तंत्र में पंच मकार का महत्‍व देते हैं. पंच मकार यानी मद्य, मांस, मीन, मुद्रा और मैथुन शामिल होता है.

नागा साधुओं के विपरीत ब्रह्मचर्य इनकी कोई शर्त नहीं होती. सामान्‍यत: ये श्‍मशान के अलावा बाहर नहीं पाए जाते इसलिए संगम तट पर या कुंभ मेले में ये पहुंचें यह जरूरी नहीं.