देश के उत्तरी पहाड़ी राज्य उत्तराखंड को सांस्कृतिक रूप से बेहद समृद्ध माना जाता है, जहां बहुत सारी अनूठी परंपराएं हैं.
उत्तराखंड के हर शहर की अपनी संस्कृति और कल्चर है, जो आपको मंत्रमुग्ध करने के साथ ही रोमांचित भी कर सकता है.
हम आपको उत्तराखंड के उन 7 शहरों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्हें घूम लेने पर आप उत्तराखंड की संस्कृति और परंपराओं से परिचित हो जाएंगे.
भगवान शिव की ससुराल हरिद्वार में सागर मंथन की अमृत बूंदें गिरी थीं. इस कारण यहां किए जाने वाले धार्मिक अनुष्ठान मोक्षदायक माने जाते हैं.
हरिद्वार को बद्रीनाथ धाम का प्रवेश द्वार भी माना जाता है. यहां हर की पौड़ी यानी नारायण के चरण से छू रही गंगा नदी में स्नान मात्र से ही व्यक्ति को जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलने की मान्यता है.
टिहरी में ब्रह्मांड रचना से पहले भगवान ब्रह्मा के तपस्या करने की मान्यता है. यहां के लागंवीर, भोटिया नृत्य बेहद मशहूर हैं.
टिहरी की नथ को गढ़वाल ही नहीं पूरे विश्व में पसंद किया जाता है. यहां जौनसारी, बोक्सा, थारू, भोटिया और राजी जैसे प्राचीन जातीय समूहों की अनूठी मिश्रित संस्कृति दिखती है.
उत्तराखंड के सबसे पुराने शहर अल्मोड़ा को लोक विधाओं से समृद्ध माना जाता है, जहां की रामलीला, दशहरा, नंदा यात्रा दुनिया भर में मशहूर है.
पहले कत्यूरी और फिर चंद राजाओं की सांस्कृतिक राजधानी रहने के कारण अल्मोड़ा के हस्त शिल्प और भोजन की परंपराएं भी बेहद अनूठी हैं.
जोशीमठ को आदि शंकराचार्य ने बसाया था. उन्होंने यहीं पर शहतूत के वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया था. इसे भगवान विष्णु का घर भी मानते हैं.
मान्यता है जोशीमठ में रात बिताए बिना बदरीनाथ दर्शन पूरे नहीं होते हैं. शीतकाल में धाम के कपाट बंद होने पर भगवान बद्रीनारायण यहीं विराजते हैं.
मिनी स्विट्जरलैंड पिथौरागढ़ का पौरोणिक नाम सोरघाटी यानी सात सरोवरों की घाटी था. चार किलों से घिरे पिथौरागढ़ की ऐपण आर्ट, हिलजात्रा मुखौटे, शौका डेन्स लोक कलाएं बेहद अनूठी हैं.
पिथौरागढ़ में भगवान गणेश के हाथी मुख से जुड़ी रहस्यमयी पाताल भुवनेश्वर गुफा है. उल्कापिंड से जुड़ा उल्कादेवी मंदिर, बेरीनाग मंदिर, गंगोलीहाट महाकाली मंदिर के साथ ही ग्लेशियर भी खास हैं.
पौड़ी शहर को अंग्रेजों ने बसाया था, पर सांस्कृतिक रूप से यह इलाका पहले से ही बेहद समृद्ध है. पौड़ी गढ़वाल की रामलीला बेहद मशहूर रही है.
पौड़ी को लोकसंगीत के लिए भी जाना जाता है. ढोल-दमन, दौर, तुर्री, रणसिंघा, ढोलकी, मसक बाजा और भंकोरा जैसे पारंपरिक वाद्ययंत्रों से सजा स्थानीय लोकसंगीत अनूठा है.
नैनीताल वैसे तो आधुनिक शहर है, लेकिन माता सती के चक्षुओं के कारण बसे इस शहर में आपको पूरे कुमाऊं की स्थानीय पहाड़ी परंपराओं के दर्शन भी हो सकते हैं.
आपको नैनीताल में कुमाऊंनी शादी देखने को मिले तो क्या बात. यहां का छोलिया नृत्य भी बेहद मशहूर है, जिसमें नगाड़ा, ढोल, दमुआ, हुड़का जैसे पारंपरिक वाद्ययंत्रों का इस्तेमाल होता है.