May 27, 2024, 06:16 PM IST

कौन थीं लखनऊ की 'महक परी', जिसने अंग्रेजों के छुड़ाए थे छक्के 

Rahish Khan

आजादी से पहले अंग्रेजों को नाकों चने चबवाने वाली बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal) का नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज है.

बेगम हजरत महल का जन्म 1820 में फैजाबाद में एक गरीब परिवार में हुआ था. उनका असली नाम मुहम्मदी खानम था. 

मुहम्मदी 12 साल की थी जब उनके पिता गुजर गए थे. इसके बाद मुहम्मदी के पालन-पोषण की जिम्मेदारी चाचा पर आ गई थी.

लेकिन उनकी माली हालत ठीक नहीं थी. एक दिन बुर्का पहने दो महिलाएं उनके घर आई और चाची के हाथ में रुपये की गड्डी थमा दीं.

इससे पहले मुहम्मदी कुछ समझ पाती, उसको जबरन पालकी में बैठा लिया गया और इसके बाद जहां उन्हें ले जाया गया वह लखनऊ का तवायफ मोहल्ला था. 

जो महिलाएं मुहम्मदी को लेकर गईं वो तवायफ थीं और संगीत से लेकर तमाम तालीम दिया करती थीं. मुहम्मदी को भी संगीत की ट्रेनिंग दी गई.

मुहम्मदी खानम जब 23 साल की थीं, तो उनकी एंट्री लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह के हरम में हुई.वहां वो नोकरानी बनकर गईं.

लेकिन उनके संगीत और अन्य हुनर देख वाजिद अली शाह गदगद हो गए और मुता विवाह (कांट्रेक्ट मैरिज) कर लिया.

इसके बाद उन्होंने मुहम्मदी खानम का नाम ‘महक परी’ रख दिया. बाद में उन्हें बेगम हजरत महल के नाम से जाना गया.

साल 1856 में नवाब वाजिद अली शाह को अंग्रेजों ने अवध की गद्दी से उतार दिया और कलकत्ता भेज दिया.

लखनऊ छोड़ते समय अली शाह ने अपनी 9 बीवियों को तलाक दिया, इनमें बेगम हजरत महल भी शामिल थीं.

नवाब के जाने के बाद हजरत महल लखनऊ में रुक गईं. साल 1857 में आजादी की चिंगारी भड़की तो इसकी आग लखनऊ तक पहुंची.

इस दौरान हजरत महल (Begum Hazrat Mahal) ने मोर्चा संभाला और उनके नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों को खदेड़ दिया था.