धर्म
रावण दहन का असली मतलब जानना हो तो ये खबर जरूर पढ़ें, क्या है विजयादशमी का आध्यात्मिक महत्व और रावण असली में कौन है
डीएनए हिंदी: Ravan Dahan and Vijayadashmi Spiritual Significance- BK Yogesh- आज दशहरा है जिसे हम विजयादशमी भी कहते हैं और आज के दिन जगह जगह पर रावण दहन (Ravan Dahan) का त्योहार मनाया जाता है. नवरात्रि के आखिरी दिन दशमी का काफी महत्व है. हम बस रावण दहन करते हैं, दशमी मनाते हैं लेकिन इसका आध्यात्मिक रहस्य या फिर हमारे जीवन से कैसे ये त्योहार जुड़ा है इसपर कभी सोचते भी नहीं हैं. हर साल रावण दहन होता है और हम भूल जाते हैं रावण दहन का महत्व क्या है, कैसे हमें अपने जीवन में रावण जैसी बुराईयों को खत्म करना है. विजयादशमी पर क्या प्रतिज्ञा करनी चाहिए. ब्रह्माकुमारीज (Brahmakumaris) हमें लगातार नवरात्रि पर देवियों के शक्ति स्वरूपों का व्याख्यान करती आई है. आज हम जानेंगे विजयादशमी और रावण दहन का महत्व क्या है.
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क्या है विजयादशमी का महत्व
सोशल मीडिया और 5G के इस युग में त्योहारों में भी आधुनिकता और कृत्रिमता ज़्यादा देखने को मिलती है.जहां कुछ दशक पहले त्योहार पारिवारिक और सामाजिक ख़ुशी को दोगुना कर देते थे, वहीं आजकल त्योहारों में वो भावना,सौहार्द आदि दिखाई ही नहीं देता, इसे भी हमने फैशन का एक माध्यम बना लिया है. हर साल विजयादशमी अथवा दशहरा का उतसव बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. कई दिन पहले से ही रामलीला शुरू हो जाती है, बच्चे-बूढ़े बड़े उत्साह के साथ रावण के मरने तथा जलने का इंतज़ार करते रहते हैं. जब दशहरे का दिन आता है तो खूब खुशियां मनाते हैं. रावण हमारा शत्रु है,बचपन से ही हमने रावण को एक राक्षस और विकारों के प्रतीक के रूप में देखा है, लेकिन कभी सोचा नहीं कि रावण हमें क्या सिखाकर जाता है.
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रावण है कौन
अब प्रश्न उठता है कि यह रावण कौन है और इसे हर वर्ष क्यों जलाते हैं? साधारण रीति से यदि किसी से पूछा जाए कि रावण कौन था तो यही उत्तर मिलता है कि वह लंका का राजा था जो इतना शक्तिशाली था कि उसने जल,अग्नि,वायु तथा काल को अपने पलंग के पांवों से बांध रखा था.उसे दशानन अर्थात दस सिर वाला कहते हैं.परन्तु क्या यह बात सत्य हो सकती है कि किसी व्यक्ति के दस सिर हों? ऐसा व्यक्ति भला सोता कैसे होगा? यदि रावण सचमुच दस सिर वाला था तब तो आज भी उसके वंश का कोई व्यक्ति दस सिर ना सही कम से कम चार सिर वाला होना चाहिए था.वास्तव में रावण किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं है, ना ही दस सिर वाला कोई मनुष्य होता है.रावण माया का प्रतीक है और इसके दस सिर माया के काम,क्रोध जैसे पांच विकार जो नर और नारी दोनों में हैं उसका प्रतीक है.यदि रावण कोई सचमुच का राजा विशेष होता तो उसे एक बार जलाने से ही काम पूरा हो जाता परन्तु यह माया का ही अलंकारिक प्रतीक है, इसलिए इसे हर वर्ष जलाते रहते हैं और वो बार बार वापस आ जाता है. जब तक कि यह रावण सचमुच ना जल जाए तब तक दशहरे का मतलब नहीं है.
दशहरा अथवा 'देश-हरा' का अर्थ है नर-नारी के दस विकारों को हारना. सच्चा दशहरा तभी होता है जब रामेश्वर परमात्मा पतित मनुष्यात्माओं को पुनः पावन अर्थात निर्विकारी बनाकर सच्चे राम राज्य की पुनर्स्थापना करते हैं. दशहरा को विजयादशमी भी कहते हैं. विजयादशमी का भी भावार्थ है दस पर विजय पाना. मनुष्य पांच ज्ञानेन्द्रियों और पांच कर्मेन्द्रियों अर्थात इन दस इन्द्रियों के द्वारा विकारों के वशीभूत होकर ही विकर्म करता है.अतः विकारों पर विजय पाना ही विजयादशमी है. रावण ने कौन सी सीता को चुराया? हमें रावण के साथ साथ अपनी बुराई और कमजोरियों को जला देना है.
असली राम और सीता कौन हैं?
वास्तव में वह सीता कौन थी, जिसे रावण ने चुराया था, इस बात का स्पष्टीकरण परमपिता परमात्मा शिव वर्तमान पुरुषोत्तम संगमयुग में अपने साकार रथ प्रजापिता ब्रह्मा के माध्यम से किया है. परमात्मा का ही गीता में वायदा है कि जब धर्म की अति ग्लानि होती है, मैं इस धरती पर अवतरित होता हूं तो हमें अज्ञान से ज्ञान की ओर ले जाने के लिए, परमपिता परमात्मा शिव ने ब्रह्मा के साकार रथ द्वारा ज्ञान मुरलियों से हमें बताया है कि जिस सीता के बारे में बताया गया है कि वो चोरी हुई थी, वह और कोई नहीं, वह आत्मा रूपी सीता की बात है. और हम सर्वात्माओं के सच्चे सच्चे राम त्रेता वाले दरशरथ पुत्र राम नहीं, बल्कि निराकार परमपिता परमात्मा शिव हैं. उन्होंने अपने महावाक्यों में यह स्पष्ट किया है कि अभी जो वो हमें राजयोग की पढाई पढ़ा रहे हैं जिसके द्वारा हम मनुष्य से देवता बन रहे हैं, उसके द्वारा सतयुग और त्रेतायुग की स्थापना हो रही है.
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वास्तव में शिव परमात्मा तीन धर्मों की स्थापना करते हैं. पुरुषोत्तम संगमयुग में हम आत्माओं को ब्रह्मा के माध्यम से ब्रह्मा मुखवंशावली की रचना करते हैं और हम ब्राह्मण ही पुरुषार्थ के द्वारा सतयुग और त्रेतायुग में देवता पद प्राप्त करते हैं. वही हमें पावन बनाते हैं. सतयुग त्रेतायुग में सुख ही सुख होता है. सतयुग में श्री लक्ष्मी श्री नारायण का राज्य और त्रेतायुग में श्री राम और श्री सीता का राज्य। लेकिन इन युगों में हम परमात्मा को याद नहीं करते, जिस कारण यह पुरुषार्थ की प्रालब्ध त्रेतायुग में समाप्त हो जाती है और द्वापर युग में हम साधारण मनुष्य बन जाते हैं. और परमात्मा को पुकारने लगते हैं, भक्ति-जप-तप करते हैं. यही वो समय होता है जब रावण राज्य आरम्भ होता है और आत्मा रूपी सीता मर्यादा की रेखा को पार कर लेती है, अर्थात देह अभिमान में आने के कारण काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार आदि विकारों के वशीभूत हो जाती है, तो वह पांच विकारों रूपी रावण की शोक वाटिका में पहुंच जाती है. अर्थात हम आत्मा रूपी सीताओं को रावण चुरा लेता है और हम दुखी होने लगते हैं.
कलयुग के आते आते हम और ज़्यादा दुखी हो जाते हैं. जब कलयुग का अंत आ जाता है, तब परमपिता परमात्मा शिव को इस धरती पर अवतरित होना पड़ता है, हम आत्मा रूपी सीताओं को रावण की कैद से छुड़ाने के लिए. वो हम आत्माओं को आत्मा, परमात्मा, सृष्टि के आदि-मध्य-अंत का ज्ञान देते हैं और हमें पावन बनने का रास्ता बताते हैं, जो कि उनकी याद की यात्रा ही है. उन्हें याद करके हमारे जन्म जन्मांतर के पाप कर्म विनाश हो जाते हैं और हम सतयुग और त्रेता युग के लायक बन जाते हैं.
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अभी चारों ओर रावण राज्य है. पांच विकार सभी मनुष्यों के अंदर कब्ज़ा जमाये बैठे हैं. इसीलिए रावण को वर्ष-वर्ष हम पुतला बनाकर तो जलाते हैं, लेकिन भीतर के रावण का पता ही नहीं है. इस रावण राज्य को समाप्त करने परमात्मा शिव हम वानर जैसे कर्म करने वाले मनुष्यों को बन्दर से मंदिर लायक बना रहे हैं. रामायण में राम और रावण का स्थूल युद्ध दिखाया है लेकिन परमात्मा तो सबके परमपिता हैं, वह स्थूल युद्ध नहीं, हमारे भीतर के रावण को मारते हैं. असली रावण को पहचानकर उसे ईश्वरीय ज्ञान व योग द्वारा इस दस (दस विकारों) को हराना या ख़त्म करना ही सच्चा दशहरा मनाना है. आइये परमात्मा शिव को पहचानें और उनके मार्ग दर्शन में अब इस असली रावण को समाप्त कर सच्चा दशहरा मनाएं
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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