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Prithviraj Chauhan : कितनी सच्ची है संयोगिता और पृथ्वीराज की प्यार की कहानी, जानिए फैक्ट्स

Prithviraj तिलोत्तमा अप्सरा जैसी सुन्दर किसी लड़की से प्रेम करते थे. वह लड़की गंगा के तट पर बसे एक शहर में रहती थी. ऐसा कई विद्वानों का मानना है.

Prithviraj Chauhan : कितनी सच्ची है संयोगिता और पृथ्वीराज की प्यार की कहानी, जानिए फैक्ट्स
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डीएनए हिन्दी : वह सपनों सी कहानी थी. एक ख़ूबसूरत सजीला राजा और बेइंतहा ख़ूबसूरत राजकुमारी. युवा राजा की वीरता के चर्चे बेहद आम थे और राजकुमारी के सौन्दर्य पर इबारतें लिखी जाती थीं. यह कहानी किसी और की नहीं दिल्ली के आखिरी राजपूत राजा पृथ्वीराज(Prithviraj Chauhan) और उनकी प्रेमिका सह पत्नी संयोगिता की है. राय पिथौरा के नाम से भी मशहूर पृथ्वीराज चौहान दिल्ली और अजमेर के राजा थे, उनकी वीरता के क़िस्से उन दिनों आम थे. संयोगिता के पिता जयचंद कन्नौज के राजा थे.

कैसे हुआ Prithviraj और संयोगिता में प्यार

कहा जाता है कि सभी राजाओं पर अपना प्रभाव स्थापित करने के लिए जयचंद ने राजसूय यज्ञ किया पर दिल्ली के शासक पृथ्वीराज ने जयचंद की प्रभुता मानने से इंकार कर दी. यह उन दोनों के बीच दुश्मनी की शुरूआत थी.

इस दरमियान जयचंद की बेटी और कन्नौज की राजकुमारी संयोगिता को पृथ्वीराज की वीरता से प्यार हो गया. क़िस्सों के मुताबिक़ एक चित्रकार ने संयोगिता की तस्वीर पृथ्वी राज को दिखाई और संयोगिता को पृथ्वीराज के क़िस्से सुनाये. क़िस्से तो यह भी कहते हैं जब राजा जयचंद ने संयोगिता का स्वयंवर आयोजित किया तो पृथ्वीराज(Prithviraj) से अपनी दुश्मनी साबित करते हुए उसकी मूर्ती दरबान की तरह लगवाई, ताकि पृथ्वीराज का अपमान हो सके. संयोगिता ने उस मूर्ती को वरमाला पहना दी. वहां पृथ्वीराज भी छिपकर मौजूद थे. मूर्ती को माला पहनाने के बाद वे संयोगिता को साथ लेकर आ गये.

कितनी सच्ची है Prithviraj और संयोगिता की प्यार की कहानी

पृथ्वीराज और संयोगिता के बारे में विस्तृत वर्णन चंदवरदाई की लिखी हुई किताब पृथ्वीराज रासो में मिलता है. चंदवर दाई पृथ्वीराज के दरबारी कवि और मित्र थे.

कई ऐतिहासिक सूत्रों और दशरथ शर्मा जैसे विद्वानों के अनुसार पृथ्वीराज तिलोत्तमा अप्सरा जैसी सुन्दर किसी लड़की से प्रेम करते थे. वह लड़की गंगा के तट पर बसे एक शहर में रहती थी. यह मान्यता पृथ्वीराज के जीवनकाल में लिखी गयी संस्कृत काव्य कृति ‘पृथ्वीराज विजय’ पर आधारित है. इसमें  संयोगिता का नाम का नाम तो नहीं है पर स्थान और अन्य चीज़ें मिलती हैं. कहा जाता है कि यह काव्य कश्मीर के संस्कृत कवी जयनक का रचा हुआ था.

इतिहास संयोगिता से पृथ्वीराज के प्रेम के नाम पर भले ही एक मत न हो पर पृथ्वीराज के समय की दो महत्वपूर्ण रचनाएं पृथ्वीराज के गंगा किनारे की किसी राजकुमारी से प्रेम -प्रसंग की पुष्टि करती हैं.

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