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हर साल मानसून में मुंबई बेहाल हो जाती है. शहर ठहर जाता है. उद्योग और बिजनेस को भारी नुकसान झेलना पड़ता है. आइए जानते हैं मुंबई के इस बाढ़ के क्या कारण हैं...
डीएनए हिन्दी: अपनी भौगोलिक बसावट और प्रशासनिक लापरवाही की वजह से बाढ़ और मुंबई (Mumbai Floods) एक-दूसरे के पर्यायवाची बनते जा रहे हैं. हर वर्ष मानसून में मुंबई में भारी बारिश होती है. बारिश का पानी शहर में जमा हो जाता है. बड़ी आबादी वाला यह शहर ठहर सा जाता है. खासकर शहर के निचले इलाकों के लोगों को काफी परेशानी होती है. ट्रेनें, गाड़ियां सब ठप हो जाती हैं. उद्योग और बिजनस जगत को भारी नुकसान झेलना पड़ता है. मुंबई के इस बाढ़ के क्या कारण हैं? क्या इसका कोई ठोस समाधान है, आइए इस पर एक नजर डालते हैं...
मुंबई के लिए बाढ़ कोई नया नहीं है. हालांकि, मुंबई की बाढ़ को हम जलजमाव कहें तो ज्यादा बेहतर होगा. वास्तव में हमने अपनी लालच की वजह से जल निकासी के ज्यादातर नेचुरल रास्ते बंद कर दिए हैं, जिसकी वजह से हर मानसून में भारी जलजमाव देखने को मिलता है. 2016 और 2005 में मुंबई भारी बारिश हुई थी. पूरा शहर झील बन गया था. इसके तीन दशक पहले भी 1974 में आसमान से ताबड़तोड़ पानी बरसा था और ऐसा नजारा था कि यह कोई महानगर न होकर झील हो. भले ही हम कहें कि यह कुदरत का कहर है, लेकिन वास्तव में हमने लचर जल प्रबंधन व्यवस्था और कमजोर प्राशासनिक वजह से हर साल बाढ़ की विभीषिका झेल रहे हैं.
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अंग्रेजों ने डेवेलप की थी शहर की जल निकासी व्यवस्था
मु्ंबई में जब-जब भारी बारिश (Mumbai Rains) होती है तो पूरा शहर पानी में डूब जाता है. हम उसे कुदरती कहर बता कर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं. लेकिन ऐसा नहीं है. हम जरा पीछे नजर डालते हैं. सन 1860 में मुंबई की जल निकासी प्रणाली पर काम हुआ था. उस वक्त देश में अंग्रेजी हुकूमत थी. उस वक्त मुंबई कैसा था यह अंदाजा लगाना भी आसान होगा. शहर सीमित दायरे में था. आबादी आज की तुलना में बेहद कम थी. इसलिए जरूरत भी कम थी. उस वक्त जो जल निकासी प्रणाली डिवेलप की गई वह करीब 150 सालों तक कारगर रही. 150 सालों तक मुंबई में जलजमाव कम होते थे. ऐसा नहीं कि उस वक्त भारी बारिश नहीं होती थी. बारिश होती थी, पानी खूब बरसता था लेकिन जल्द ही वह अपने रास्ते समुद्र में निकल जाता था. बारिश खत्म होते ही शहरवासी अपने दिनचर्या में लग जाते थे.
वास्तव में हमने 1860 के बाद मुंबई में समग्र रूप से हमने कोई जल निकासी प्रणाली विकसित करने की कोशिश की ही नहीं. हालांकि, इस बीच में शहर की आबादी बेतहाशा बढ़ी. एक तरफ गगनचुंबी इमारतें तो दूसरी तरफ बेतरतीब झुग्गियां भी बढ़ीं.
तटीय शहर का खामियाजा भी भुगत रहा मुंबई
मानसून की शुरुआत में मुंबई में हर साल 250 मिलीमीटर बारिश होती है. यह औसत से काफी ज्यादा है. मुबई तटीय शहर है, इसलिए इसके आसपास के समुद्र के ऊपर कम दबाव की वजह से बारिश कुछ ज्यादा होती है. कुछ वैज्ञानिक असामान्य बारिश के लिए ग्लोबल वॉर्मिंग को भी जिम्मेदार ठहराते हैं.
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मुंबई एक तटीय शहर है. यह समुद्र तल से थोड़ा ही ऊंचा है. समुद्रतल से मुंबई की औसत ऊंचाई 10 मीटर (33 फीट) से 15 मीटर(49 फीट) के बीच है. उत्तरी मुंबई का क्षेत्र पहाड़ी है, जिसका सबसे ऊंचा स्थान 450 मीटर (1,476 फीट) पर है. हालांकि, मानसून सीजन में उच्च ज्वार की वजह से भी मुबंई में बाढ़ आती है. लेकिन हर साल जो बाढ़ आती है उसके लिए कुछ और ही कारण हैं.
अनियंत्रित विकास बाढ़ का बड़ा कारण
वास्तव में मुंबई 7 द्वीपों का एक समूह है. हमने इस द्वीपों को एक-दूसरे से जोड़ने के लिए अनियंत्रित विकास किए . इसकी वजह से जल निकासी के कई नेचुरल रास्ते बंद हो गए. साथ ही शहर में पीने की पानी की व्यवस्था के लिए हमने कई डैम बना डाले. इन डैम की वजह से धीरे-धीरे छोटी नदियां सूख गईं. फिर इन नदियों पर लोग खेती करने लगे. कालांतार में धीरे-धीरे इसे ऊंचा कर लोगों ने यहां अपने आशियाने बना लिए.
आज कई छोटी नदियों का वजूद ही नहीं हैं. इन्हीं में से एक प्रमुख नदी है मीठी नदी. इस नदी के रास्ते शहर के बड़े हिस्से का पानी समुद्र में चला जाता था. इस नदी के आसपास कई उद्योग लगे. उद्योग का कचरा नदी में जाने लगा. नदी का नेचुरल बहाव ठहर गया. मुंबई में महंगी जमीन होने की वजह से नदी के बहाव क्षेत्र और जलग्रहण क्षेत्र में जाकर कई लोगों ने अपने घर बना लिए. अब यह नदी लगभग ठहर गई है. 2005 और 2016 की बाढ़ के बाद इसे इसके उद्धार की बातें खूब हुईं, लेकिन अभी तक कोई ठोस उपाय नहीं हो पाया है.
मुंबई के की सड़कों के नीचे 2000 किमी लंबा ड्रेन सिस्टम है. इससे जुड़ती हैं 440 किमी लंबी छोटे-छोटे द्वीपों के ड्रेनेज, 200 किमी बड़े और 87 किमी छोटी नहरें और 180 मुहाने (नदी, नालों के). इन सबका पानी अरब सागर में गिरता है.
अरब सागर में इनका मिलान होता है तीन जगहों से - पहला माहिम की खाड़ी, दूसरा माहुल की खाड़ी और तीसरा ठाणे की खाड़ी. इसके अलावा मुंबई की मीठी नदी जो सिर्फ बारिश में ही दिखाई पड़ती है यह माहिम की खाड़ी में मिलती है. यह नदी भी उफान पर आने के बाद कहर बरपाती है.
मुंबई का ड्रेनज सिस्टम प्लास्टिक और कचरे की वजह से चोक हो गया है. यही कारण है कि बारिश में ड्रेनेज का पानी सड़कों पर आ जाता है और उसे निकलने में काफी समय लगता है.
पर्यावरण से खिलवाड़ का खामियाजा
पर्यावरण के साथ खिलवाड़ का भी असर मुंबई झेल रहा है. एक रिपोर्ट के मुताबिक 100 सालों में मुंबई का औसत तापमान में 2.5 डिग्री का इजाफा हुआ है. इसका कारण क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वॉर्मिंग है. इसकी वजह से मानसून में मुंबई में भारी बारिश का समय बढ़कर 10 से 12 दिन हो गया है. करीब 20 साल पहले तक यह समय 9 दिन हुआ करता था.
जलजमाव और बाढ़ से कैसे मिले छुटकारा
मुंबई एक बड़ा शहर है. इसके लिए पीने की पानी की भी बड़ी जरूरत है. मुंबई में 6 प्रमुख झीलों से शहर की जलापूर्ति होती है. ये झीलें हैं विहार झील, वैतर्णा, अपर वैतर्णा, तुलसी, तंस और पवई. बारिश का पानी बड़े पैमाने पर इकट्ठा करने के लिए हमें और बड़े जलाशय बनाने की जरूरत है. इसके लिए हजारों हेक्टेयर जमीन की जरूरत होगी. यह तो नए जलाशय बनाने की बात है.
इसके अलावा मुंबई में बड़ी संख्या में झील और तालाब थे. सरकार को चाहिए कि उनका पता लगाए. अगर वहां गलत तरीके इमारत बना दिए गए हैं तो उनका जिर्णोद्धार करे. पुरानी झीलों और तालाब में बारिश का पानी इकट्ठा किया जा सकता है. अगर ज्यादा पानी बरस गया तो हम उसे अन्य नदियों के माध्यम से अरब सागर में पहुंचा सकते हैं.
साथ ही नदियों को अतिक्रमण से मुक्त कराया जाए. इनका जलग्रहण क्षेत्र भी अतिक्रमण मुक्त हो. इन सब प्रयासों के अलावा सरकार को आबादी के हिसाब से नए नहरों का निर्माण करना चाहिए. जिससे कि शहर का पानी आसानी से अरब सागर में चला जाए. इन्हीं सब प्रयासों से हम पर्यावरण और मुंबई दोनों की रक्षा कर पाएंगे.
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