राज्य
पहलवानी के साथ लोकगायिकी का संगम बहुत कम देखने को मिलता है. जंग बहादुर सिंह सिंह गायकी ऐसी थी कि इससे ब्रिटिश हुकूमत भी डरती थी. रामायण, भैरवी व देशभक्ति गीतों के उस्ताद थे जंग बहादुर सिंह. आज उन्हें वह सम्मान नहीं मिल रहा जिसके वे हकदार हैं...
डीएनए हिन्दी: आजादी का अमृत महोत्सव चल रहा है और देशभक्तों में जोश भरने वाले अपने समय के भोजपुरी लोक गायक जंग बहादुर सिंह को कोई पूछने वाला नहीं हैं. बिहार में सिवान जिला के रघुनाथपुर प्रखण्ड के कौसड़ गांव के रहने वाले तथा रामायण, भैरवी व देशभक्ति गीतों के उस्ताद भोजपुरी लोक गायक जंग बहादुर सिंह 60 के दशक का ख्याति प्राप्त नाम था. लगभग दो दशकों तक अपने भोजपुरी गायन से बंगाल, झारखंड, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में बिहार का नाम रौशन करने वाले व्यास शैली के बेजोड़ लोकगायक जंगबहादुर सिंह आज 102 वर्ष की आयु में गुमनामी के अंधेरे में जीने को विवश हैं.
10 दिसंबर 1920 को सिवान, बिहार में जन्में जंगबहादुर पं. बंगाल के आसनसोल में सेनरेले साइकिल करखाने में नौकरी करते हुए भोजपुरी के व्यास शैली में गायन कर झरिया, धनबाद, दुर्गापुर, संबलपुर, रांची आदि क्षेत्रों में अपने गायन का परचम लहराते हुए अपने जिला व राज्य का मान बढ़ाया था. जंग बहादुर के गायन की विशेषता यह रही कि बिना माइक के ही कोसों दूर उनकी आवाज जाती थी. आधी रात के बाद उनके सामने कोई टिकता नहीं था मानो उनकी जुबां व गले में सरस्वती आकर बैठ जाती हों. खास कर भोर में गाये जाने वाले भैरवी गायन में उनका सानी नहीं था. प्रचार-प्रसार से कोसो दूर रहने वाले इस गायक को अपना ही भोजपुरिया समाज भुला दिया है.
पहले कुश्ती के दंगल के पहलवान थे जंग बहादुर
जंग बहादुर सिंह पहले पहलवान थे. बड़े-बड़े नामी पहलवानों से उनकी कुश्तियां होती थीं. छोटे कद के इस चीते-सी फुर्ती वाले व कुश्ती के दांव-पेंच में माहिर पहलवान की नौकरी ही लगी पहलवानी पर. 22-23 की उम्र में अपने छोटे भाई मजदूर नेता रामदेव सिंह के पास कोलफील्ड, शिवपुर कोइलरी, झरिया, धनबाद में आये थे जंग बहादुर. वहां कुश्ती के दंगल में बिहार का प्रतिनिधित्व करते हुए तीन कुंतल के एक बंगाल की ओर से लड़ने वाले पहलवान को पटक दिया. फिर तो शेर-ए-बिहार हो गए जंग बहादुर. तमाम दंगलों में कुश्ती लड़े लेकिन उन्हीं दिनों एक ऐसी घटना घटी कि वह संगीत के दंगल में उतरे और उस्ताद बन गए.
फिर संगीत के दंगल के योद्धा बने जंग बहादुर
दूगोला के एक कार्यक्रम में तब के तीन बड़े गायक मिलकर एक गायक को हरा रहे थे. दर्शक के रूप में बैठे पहलवान जंग बहादुर सिंह ने इसका विरोध किया और कालांतर में इन तीनों लोगों को गायिकी में हराया भी. उसी कार्यक्रम के बाद जंग बहादुर ने गायक बनने की जिद्द पकड़ ली. धुन के पक्के और बजरंग बली के भक्त जंग बहादुर का सरस्वती ने भी साथ दिया. रामायण-महाभारत के पात्रों भीष्म, कर्ण, कुंती, द्रौपदी, सीता, भरत, राम व देश-भक्तों आजाद, भगत, सुभाष, हमीद, गांधी आदि को गाकर भोजपुरिया जन-मानस में लोकप्रिय हो गए जंग बहादुर सिंह. तब ऐसा दौर था कि जिस कार्यक्रम में नहीं भी जाते थे जंग बहादुर, वहा के आयोजक भीड़ जुटाने के लिए पोस्टर-बैनर पर इनकी तस्वीर लगाते थे. पहलवानी का जोर पूरी तरह से संगीत में उतर गया था और कुश्ती का चैंपियन भोजपुरी लोक संगीत का चैंपियन बन गया था. अस्सी के दशक के सुप्रसिद्ध लोक गायक मुन्ना सिंह व्यास व उसके बाद के लोकप्रिय लोक गायक भरत शर्मा व्यास तब जवान थे, उसी इलाके में रहते थे और इन लोगों ने जंग बहादुर सिंह व्यास का जलवा देखा था.
देश और देशभक्तों के लिए गाते थे जंग बहादुर सिंह
चारों तरफ आजादी के लिए संघर्ष चल रहा था. युवा जंग बहादुर देशभक्तों में जोश जगाने के लिए घूम-घूमकर देशभक्ति के गीत गाने लगे. 1942-47 तक आजादी के तराने गाने के लिए ब्रिटिश प्रताड़ना के शिकार भी हुए और जेल भी गए, पर जंग बहादुर रुकने वाले कहां थे.
जंग में भारत की जीत हुई. भारत आजाद हुआ. आजादी के बाद भी जंग बहादुर गांधी, सुभाष, आजाद, कुंवर सिंह, महाराणा प्रताप की वीर गाथा ही ज्यादा गाते थे और धीरे-धीरे वह लोक धुन पर देशभक्ति गीत गाने के लिए जाने जाने लगे. साठ के दशक में जंग बहादुर का सितारा बुलंदी पर था. भोजपुरी देश भक्तिगीत माने जंग बहादुर. भैरवी माने जंग बहादुर. रामायण और महाभारत के पात्रों की गाथा माने जंग बहादुर.
पर अब उस शोहरत पर समय के धूल की परत चढ़ गई है. आज हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं पर जंग बहादुर किसी को याद नहीं हैं. देशभक्ति के तराने गाने वाले इस क्रांतिकारी गायक को नौकरशाही ने आज तक स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा नहीं दिया. हांलाकि, इस बात का उल्लेख उनके समकालीन गायक समय-समय पर करते रहे कि जंग बहादुर को उनके क्रांतिकारी गायन की वजह से अंग्रेजी शासन ने गिरफ्तार कर जेल भेजा फिर भी उन्हें जेल भेजे जाने का रिकॉर्ड आजाद हिंदुस्तान की नौकरशाही को नहीं मिल पाया. मस्तमौला जंग बहादुर कभी इस चक्कर में भी नहीं रहे.
पारिवारिक जीवन
1970 में टूट गये जंग बहादुर जब उनके बेटे और बेटी की आकस्मिक मृत्यु हो गई. धीरे-धीरे उनका मंचों पर जाना और गाना कम होने लगा. पत्नी महेशा देवी एक दिन खाना बनाते समय बुरी तरह जल गईं. जंग बहादुर को उन्हें भी संभालना था. वह समझ नहीं पा रहे थे, राग-सुर को संभाले या परिवार को. उनके सुर बिखरने लगे. जिंदगी बेलय होने लगी. 1980 के आस-पास एक और बेटे की कैंसर से मौत हो गई. फिर तो अंदर से बिल्कुल टूट गये जंग बहादुर और गायन लगभग छूट गया. अभी दो बेटे हैं. बड़ा बेटा मानसिक और शारीरिक रूप से अस्वस्थ है. बूढ़े बाप के सामने दिन भर बिस्तर पर पड़ा रहता है. छोटे बेटे राजू ने परिवार संभाल रखा है. वह विदेश में रहता है.
मंचीय गायन छोड़ने के बाद भी गांव के मंदिर-शिवालों व मठिया में शिव चर्चा व भजन गाते रहते हैं जंग बहादुर.
अपनी गाय को निहारते हुए अक्सर गुनगुनाते हैं जंग बहादुर सिंह...
हमनी का हईं भोजपुरिया ए भाई जी
गइया चराइले, दही-दूध खाइले
कान्हवा प धई के लउरिया ए भाई जी ..
आखड़ा में जाइले, मेहनत बनाइले
कान्हवा प मली-मली धुरिया ए भाई जी ..
लुप्त होती स्मृति में तन्हा जंग बहादुर सिंह
लुप्त होती स्मृति में तन्हा जंग बहादुर सिंह अब भटभटाने लगे हैं. अपने छोटे भाई हिंडाल्को के मजदूर नेता रामदेव सिंह की मृत्यु ( 14 अप्रैल 2022 ) के बाद और अकेले पड़ गए हैं जंग बहादुर. वह अकेले में कुछ खोजते रहते हैं. कुछ सोचते रहते हैं. फिर अचानक संगीतमय हो जाते हैं. देशभक्ति गीत गाते-गाते निर्गुण गाने लगते हैं.
लोक गायक जंग बहादुर सिंह को पद्मश्री मिलना चाहिए: मुन्ना सिंह व्यास
एक समय था, जब बाबू जंग बहादुर सिंह की तूती बोलती थी. उनके सामने कोई गायक नहीं था. वह एक साथ तीन-तीन गायकों से दूगोला की प्रतियोगिता रखते थे. झारखंड-बंगाल-बिहार में उनका नाम था और पंद्रह-बीस वर्षों तक एक क्षत्र राज्य था. उन के साथ के करीब-करीब सभी गायक दुनिया छोड़कर चले गये. खुशी की बात है कि वह 102 वर्ष की उम्र में भी टाइट हैं. भोजपुरी की संस्थाएं तो खुद चमकने-चमकाने में लगी हैं. सरकार का भी ध्यान नहीं है.
लोक गायक जंग बहादुर सिंह को सरकारी स्तर पर सम्मान मिलना चाहिए: भरत शर्मा व्यास
जंग बहादुर सिंह का उस जमाने में नाम लिया जाता था, गायको में. मुझसे बहुत सीनियर हैं. मैं कलकता से उनकी गायिकी सुनने आसनसोल, झरिया, धनबाद आ जाता था. कई बार उनके साथ बैठकी भी हुई है. भैरवी गायन में तो उनका जबाब नहीं है. इतनी ऊंची तान, अलाप और स्वर की मृदुलता के साथ बुलंद आवाज वाला दूसरा गायक भोजपुरी में नहीं हुआ. उनके समय के सभी गायक चले गये. वह आशीर्वाद देने के लिए अभी भी मौजूद हैं. भोजपुरी भाषा की सेवा करने वाले व्यास शैली के इस महान गायक को सरकारी स्तर पर सम्मानित किया जाना चाहिए.
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