भारत
रूस और यूक्रेन के बीच जारी संघर्ष ने वैश्विक परिदृश्य में कई नए सवाल खड़े कर दिए हैं. भारत को भी अपनी दोतरफा चुनौतियों पर विचार करना होगा.
जब दुनिया बड़े युद्धों की बात भूलने लगी थी, तब रूस ने यूक्रेन पर हमला कर बहुत से लोगों के इस मुगालते के दूर कर दिया कि अब एक मुल्क का दूसरे मुल्क पर कब्जा कर लेना बीते जमाने की बात हो गई है. लिहाजा, हमें भी चेत जाने की जरूरत है. इस सोच से बाहर निकलने की बात है कि आधुनिक दुनिया में अब 71 या 62 जैसे युद्ध नहीं हो सकते. हमारे दोनों तरफ दो ऐसे मुल्क हैं जिनसे हमारे मधुर संबंध नहीं हैं. ऐसे में यूक्रेन के युद्ध को बहुत गौर से देखने की समझने की जरूरत है और यह जानना अच्छा होगा कि इसके भारत के लिए क्या सबक हैं.
इस युद्ध से भारत के लिए तीन सबक बिल्कुल साफ हैं. पहला सैन्य सबक. दूसरा रूसी सैन्य साजो सामान पर भारत की निर्भरता पर असर? तीसरा रूस के इस कदम से भारत-चीन रिश्ते और ताइवान को मुख्य भूमि से मिला लेने की चीनी ख्वाहिशों की परिणति. भारत के नजरिए से देखें तो यूक्रेन पर रूसी हमले से ये तीन सीधे नजर आने वाले मुद्दे हैं.
सबसे पहले बात करते हैं सैन्य सबक की. रूस ने यूक्रेन पर तीन तरफ से हमला बोला. रूसी टैंक यूक्रेन के उत्तर-पूर्व में खार्किव शहर के पास से घुसे. पूर्व की दिशा में रूसी सेना बेलारूस की ओर से लुहान्स्क की तरफ आगे बढ़ी. तीसरा हमला दक्षिण दिशा में क्राइमिया की तरफ से किया गया जिसे 2014 में रूस ने यूक्रेन से अलग कर दिया था. तकरीबन एक साथ हुए इस तीन-तरफा हमले ने यूक्रेन की सेना के पास रूस को माकूल जवाब देने का बहुत विकल्प नहीं छोड़ा. यूक्रेन की प्रतिक्रिया में एक बौखलाहट नजर आई. हालांकि यूक्रेन के बहादुर जवानों ने टुकड़ों में मुकाबला किया लेकिन रूसी सेना को यूक्रेन के भीतर तक घुसने में बहुत कड़े संघर्ष का सामना नहीं करना पड़ा. इस हमले को लेकर जहां तक भारत के संदर्भ में सैन्य सबक की बात है तो मुद्दा एक साथ दो-तरफा युद्ध का सामना करने का है. एक लंबे अरसे से सैन्य जानकार इस पर बात करते आए हैं कि भारत को एक साथ दो मोर्चे पर यानी चीन और पाकिस्तान दोनों से लड़ना पड़ा हमारी सेनाएं किस तरह की प्रतिक्रिया दे पाएंगी?
पहला सबक : दो तरफा युद्ध की आशंका
चीन और पाकिस्तान के गठजोड़ को देखते हुए इस आशंका को निराधार नहीं माना जा सकता कि कभी किसी वक्त में भारत को दो मोर्चे पर युद्ध का सामना करना पड़ सकता है. बेशक भारत की सेना बहुत ताकतवर है लेकिन भूलने की बात नहीं है कि चीन और पाकिस्तान दुनिया की बड़ी सैन्य शक्तियां हैं. दोनों के ही पास पेशेवर सेना है और दोंनों के बीच सैन्य रिश्ते काफी मजबूत हैं. देश के सैन्य रणनीतिकार इस खतरे से अच्छी तरह वाकिफ हैं. इसीलिए पिछले करीब 20 वर्षों से सेना, वायुसेना और नौसेना तीनों ही खुद को आधुनिक, ताकतवर और फुर्तीली बनाने की कोशिश में जुटी हैं.
वायु सेना : नई ताकत कब तक?
आज के वक्त में युद्ध की स्थिति में पहला फैसला आसमान में होता है. इसमें वायुसेना की ताकत, अहम किरदार निभाती है. भारतीय वायुसेना ने फ्रांस से खरीदे गए राफेल और स्वदेशी तेजस विमानों को शामिल कर अपनी स्थिति में कुछ सुधार किया है. हालांकि भूलने की बात नहीं है कि वायुसेना के पास स्वीकृत 42 लड़ाकू स्क्वॉड्रन की पूरी संख्या नहीं है, फिलहाल वह करीब 30 से 32 स्क्वॉड्रन से ही काम चला रही है. उनमें भी मिग-21 विमानों के चार स्क्वॉड्रन और मिग-29 और जगुआर विमानों को अगले 4 से 10 साल में रिटायर करने की योजना भी है. उनकी जगह पर 83 स्वदेशी तेजस विमानों को शमिल किया जाना है, 114 मल्टी रोल फाइटर विमानों की प्रस्तावित खरीद भी लंबी और उबाऊ खरीद प्रक्रिया में उलझी हुई है.
इन चुनौतियों के बावजूद वायुसेना ने राफेल विमानों के एक स्क्वॉड्रन को पाकिस्तान से मुकाबले के लिए अंबाला और दूसरे स्क्वॉड्रन को चीन से मुकाबले के लिए हशिमारा एयरबेस पर तैनात किया है. इनके अलावा वायुसेना के पास सुखोई और मिराज-2000 विमानों के स्क्वॉड्रन भी हैं. इसमें कोई शक नहीं है कि कम विमानों के बावजूद वायुसेना के आधुनिक अस्त्रों से लैस है जो दो-तरफा युद्ध के लिए मानसिक और सामरिक नजरिए से पूरी तरह से तैयार दिखती है. चीन के मद्देनजर वायुसेना ने कई अग्रिम हवाई पट्टियों को फिर शुरू किया है. ग्लोबमास्टर और हरक्यूलिस जैसे भारी मालवाहक विमानों और चिनूक जैसे हेलीकॉप्टरों के जरिए उसने अग्रिम मोर्चे पर फौरन सैनिक उतारने और साजो सामान पहुंचाने की अपनी क्षमता को भी कई गुना किया है. आज के वक्त में युद्ध की स्थिति में अपनी फौजों को सही जगह पर सही स्थान पर फुर्ती से पहुंचा पाने की क्षमता बहुत बड़ी है.
थलसेना: छरहरी और फुर्तीली होने को बेताब
जहां तक भारत की थलसेना का सवाल है तो वह एक क्षमतावान वॉर मशीन है, सेना ने इस बीच खुद को छरहरी और फुर्तिली बनाने पर ध्यान दिया है. फिलहाल करीब 12 लाख सैनिकों वाली भारतीय सेना में 14 कोर और 38 डिवीजन है. सेना को मिलने वाला ज्यादातर रक्षा बजट वेतन, भत्ते और पेंशन जैसे खर्चों पर चला जाता है. इस वजह से सेना के आधुनिकीकरण का बजट संकुचित हो जाता है. हालांकि भविष्य की योजना के तहत सेना बेवजह के विभागों को धीरे-धीरे खत्म कर रही है. मकसद सेना में सीधे लड़ाई में शामिल रहने वाली कोर पर ज्यादा ध्यान देना और उन्हें ताकतवर बनाना है. दो मोर्चे पर युद्ध की स्थिति को ध्यान में रखते हुए ही भारतीय थल सेना तेजी से आधुनिक बनने की कोशिश में जुटी है. पैदल सैनिकों के लिए मौजूदा INSAS (इंडियन स्मॉल आर्म्स सिस्टम) राइफल्स से बेहतर SIG-716 राइफलें , नजदीकी लड़ाई के लिए आधुनिक कार्बाइन जैसे आधुनिक हथियार सेना में शामिल किए गए. वहीं तोपखाने को भी मजबूत किया जा रहा है. 155 मिली मीटर की होवित्जर तोप, ऊंचाई पर तैनात की जा सकने वाली एम-777 होवित्जर तोपों के साथ अलग-अलग जरूरतों के मद्देनजर कई तरह की आधुनिक तोपें भारतीय तोपखाने में शामिल हो चुकीं हैं. सेना के बाकी विभाग भी तेजी से आधुनिक बनने की दिशा में बढ़ रहे हैं.
नौसेना: कब तक रहेंगे समंदर के सिकंदर?
करीब डेढ़ दशक में भारतीय नौसेना भी डीप ब्लू नेवी यानी गहरे पानी की नौसेना में बदली है जो अपने तटों से दूर बीच महासागर में भी पेचीदा ऑपरेशन अंजाम दे सके. नौसेना ने कई नए विध्वंसक जोड़े हैं. भारत के पास एयरक्रॉफ्ट कैरियर्स के संचालन का पुराना तजुर्बा है. नौसेना के पास 18 डीजल पनडुब्बियां और एक बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी है. माना जाता है कि दो मोर्चे पर युद्ध की स्थित में पाकिस्तानी नौसेना से कहीं ताकतवर भारतीय नौसेना अरब सागर के इलाके में पूरा वर्चस्व बना सकती है, वह चीन की समंदर के रास्ते होने वाली तेल और रसद आपूर्ति को रोकने और उसकी तटीय वायु शक्ति पर अंकुश लगा कर युद्ध में बड़ा फर्क पैदा कर सकती है. हालांकि चीन की पनडुब्बी शक्ति उसके सामने बड़ी चुनौती बनेगी. चीन के पास करीब 50 डीजल पनडुब्बियां, 6 परमाणु पनडुब्बियां और 4 बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बियां हैं. भारत ने इसके मुकाबले के लिए अमेरिका से 12 अत्याधुनिक पनडुब्बी रोधी P-8I विमान हासिल किए हैं.
दो मोर्चे पर जंग: उलझाने वाले आंकड़ों का चक्रव्यूह
भारत की इन सैन्य तैयारियों के बरअक्स चीन काफी ताकतवर दुश्मन नजर आता है और पाकिस्तान भी पीछे नहीं है. हालांकि देश की रक्षा सेनाओं की तैयारियां आला दर्जे की हैं लेकिन एक अनुमान के मुताबिक दो मोर्चे पर युद्ध में जीत हासिल करने के लिए वायु सेना को कम से कम 50 स्क्वॉड्रनों की जरूरत होगी. थल सेना को भी जमीनी इलाकों में हमलों को रोकने के लिए 1: 3 और पहाड़ी हमलों को रोकने के लिए 1: 8 सैनिक संख्या हासिल करनी पड़ेगी, यानी एक हमलावर सैनिक को रोकने के लिए जरूरत के मुतबिक तीन या आठ सैनिकों का संख्या बल चाहिए. हालांकि पिछले कुछ वक्त से ऐसे युद्ध से बेहतर ढंग से निपटने के लिए 'थियेटर कमांड' बनाने की अवधारणा को मजबूत किया जा रहा है. 'थियेटर कमांड' के तहत तीनों सेनाओं और अन्य बलों को मिला कर एक कमांड के तहत लाने की योजना है ताकि सभी तालमेल के साथ दुश्मन को जवाब दे सकें.
जाहिर है, मौजूदा स्थिति में भारत की सेनाओं के लिए दो मोर्चे पर युद्ध करना और उसे जीतना काफी मुश्किल होगा. यूक्रेन पर तीन तरफा हमले से पैदा हुए हालात ने साफ कर दिया है कि कई दिशाओं में युद्ध में उलझना समझदारी की बात नहीं होगी.
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दूसरा सबक : रूस से ले पाएंगे S-400 सिस्टम?
अब दूसरा सवाल यह आता है कि यूक्रेन संकट का रूस से S-400 एयर डिफेंस सिस्टम हासिल करने की भारत की कोशिशों पर क्या असर पड़ेगा? यह वह एयर डिफेंस सिस्टम है जिसे फिलहाल, अपने आसमान को दुश्मन की मिसाइलों और विमानों से सुरक्षित बनाने के लिए पूरी दुनिया में सर्वश्रेष्ठ माना जा रहा है. परंपरागत रूप से भारत और रूस दोस्त रहे हैं. 71 की लड़ाई में जब अमेरिका ने अपना सातवां बेड़ा इधर भेजा था तब रूस ने उसके जवाब में अपने जंगी जहाजों को रवाना कर दिया था. बेशक, रूस हमारा दोस्त है लेकिन भूलने वाली बात नहीं है की जब चीन से लड़ाई हुई थी तब रूस की दलील थी कि एक तरफ हमारा दोस्त है और दूसरी तरफ हमारा भाई. चीन के संदर्भ में रूस के साथ हमारा ये रिश्ता रहा है. अब यूक्रेन संकट के वक्त भारत के सामने भी ठीक ऐसी ही समस्या है. S-400 को पाने की दिशा में यहां पर दो पहलू हैं. यूक्रेन पर भारत का रुख क्या होता है? कोशिश यही होगी कि भारत इस तरह की कोई रणनीति अपनाए जहां मध्यमार्ग निकले. भारत किसी भी पक्ष की तरफ खुलकर खड़ा हुआ तो उसके अपने नतीजे हैं.
आज भी भारत 60 से 70 फीसद सैन्य साजो सामान के लिए रूस पर निर्भर है. अगर वह पश्चिमी देशों की चक्र में उलझा या उनके चक्रव्यूह में शामिल होता है तो इसमें कोई शक की बात नहीं कि वो एक अपना पुराना दोस्त खोएगा. इसलिए, देखना होगा कि भारत का अगला कदम क्या होगा. बड़ी बात यह भी है कि अब भारत, S-400 सिस्टम रूस से ले पाएगा या नहीं ले पाएगा. हालांकि यह इस पर भी निर्भर करता है कि इस मामले में अमेरिका का रुख क्या होगा? कुछ वक्त पहले अमेरिका ने एक कानून बनाया, CAATSA: Countering America's Adversaries Through Sanctions Act. अमेरिका यह कहता है कि हमारे जो एडवर्सरीज यानी विरोधी और शत्रु हैं उनको किसी भी तरह का फायदा पहुंचने से रोकने लिए हमने यह कानून बनाया है. इसके तहत जो भी अमेरिका के विरोधियों से कोई मदद लेगा या सैन्य साजो सामान खरीदेगा तो वह उनके खिलाफ प्रतिबंध लगाएगा. तुर्की पर वह इसका इस्तेमाल कर भी चुका है लेकिन भारत के संदर्भ में अमेरिका अभी तक नरम रहा है. दरअसल भारत, अमेरिका की चीन को रोकने की रणनीति में एक अहम किरदार है. यह स्थिति, अब यूक्रेन पर रूस के हमले से बदल गई है. अब CAATSA पर अमेरिका का रुख क्या होता है यह देखने वाली बात होगी. भारत को रस्सी पर संतुलन बनाते हुए चलना है. इसलिए दुनिया की नजर इस पर है कि इस जंग पर भारत अपनी कूटनीति और डिप्लोमेसी को कैसे आगे बढ़ाता है?
तीसरा सबक: चीन, ताइवान का पेच और हम
अब तीसरा और आखिरी बड़ा मुद्दा यह है कि जैसे रूस ने यूक्रेन पर हमला किया. अगर वह यूक्रेन को तोड़ देता है. किसी नए देश की स्थापना करता है, उस पर कब्जा कर लेता है तो इसमें चीन के लिए क्या स्थिती बनती है. माना जा रहा है कि चीन को फायदा होगा. उसे ताइवान को कब्जा करने के लिए एक दलील मिल जाएगी. अब ताइवान पर उसका कब्जा होगा तो दक्षिण चीन सागर में भी वह मजबूत हो जाएगा. हालांकि फिलहाल चीन का रुख यह है कि यूक्रेन से हम पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा. यूक्रेन जैसी स्थिती ताइवान की नहीं है. चीन का मानना है कि ताइवान कभी भी उससे अलग नहीं रहा जबकि ताइवान खुद को एक आजाद मुल्क कहता है. ताइवान को अमेरिका का साथ मिला हुआ है जो चीन को उसे खुद में मिलाने से रोकता है. यह मानने वालों की कमी नहीं कि यूक्रेन के बाद कभी-ना-कभी ताइवान वाला संकट भी खड़ा हो सकता है. तब भारत की स्थिति क्या रहेगी और क्या रुख होगा, इस पर भी भारत को अभी से सोचना होगा. चीन का यह विस्तारवादी रुख ताइवान ही नहीं LAC पर भी दिखता है. कुल मिला कर इसमें शक की बात नहीं है कि यूक्रेन संकट से भारत के लिए कई सबक हैं. इस संकट पर हमें नजर रखनी पड़ेगी और उसके मुताबिक रणनीति बनानी पड़ेगी.
(यहां प्रकाशित विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)
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