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अवैध खनन की वजह से गई संत विजय दास की जान! पेट्रोल डालकर लगाई थी खुद को आग

राजस्थान के भरतपुर जिले में अवैध खनन के विरोध में आत्मदाह का प्रयास करने वाले संत बाबा विजय दास की मौत हो गई. दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था.

अवैध खनन की वजह से गई संत विजय दास की जान! पेट्रोल डालकर लगाई थी खुद को आग

संत बाबा विजय दास की मौत (फोटो-Social media)

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डीएनए हिंदी: राजस्थान के डीग में अवैध खनन के विरोध में आत्मदाह का प्रयास करने वाले संत बाबा विजय दास (Sadhu Vijay Das की शनिवार को मौत हो गई. वह दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भर्ती थे. संत विजय दास ने भरतपुर जिले के पसोपा गांव में अवैध खनन के विरोध में खुद को आग लगा ली थी. पुलिसकर्मियों ने कंबल डालकर आग बुझाने की कोशिश की लेकिन तब तक संत 80 प्रतिशत जल चुके थे.

पुलिस ने बताया कि बुधवार को साधु विजय दास ने अचानक पेट्रोल छिड़ककर खुद को आग लगा ली थी. उन्होंने कहा कि पुलिस वाले उसे बचाने दौड़े और आग बुझाकर उसे जिला अस्पताल में भर्ती करवाया गया, जहां से साधु को सफदरजंग अस्पताल रेफर किया गया था. डॉक्टरों ने बताया कि साधु करीब 80 प्रतिशत तक झुलस गया था. साधु नारायण दास इलाके में खनन पर प्रतिबंध लगाने की मांग को लेकर पिछले कुछ दिनों से डीग में धरना दे रहे थे, उनके साथ कुछ और संत भी धरने पर थे. उन्होंने बताया कि साधु नारायण दास अपनी मांगों को लेकर प्रशासन पर दबाव बनाने के लिए मंगलवार सुबह मोबाइल टावर पर चढ़ गए थे. इसके बाद उन्होंने खुद को आग लगा ली थी.

सरकार ने मानी साधुओं की मांग
बता दें कि डीग क्षेत्र में खनन गतिविधियों को बंद करने की मांग को लेकर साधु संतों का आंदोलन पसोपा में पिछले डेढ़ साल से चल रहा था. राजस्थान सरकार के आश्वासन के बाद यह आंदोलन गुरुवार को समाप्त हो गया.  एक अधिकारी ने बताया कि जिला प्रशासन के अधिकारियों की संतों के प्रतिनिधिमंडल के साथ बातचीत चल रही थी. बुधवार रात हुई बातचीत सकारात्मक रही और दोनों पक्षों में कुछ बातों पर सहमति बन गई. सरकार ने जिस इलाके में खनन गतिविधियां चल रही है उसे 15 दिनों के भीतर वन क्षेत्र घोषित करने के लिए अधिसूचना जारी करने का फैसला किया है. 

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भरतपुर के जिलाधिकारी आलोक रंजन ने बताया कि आदि बद्री क्षेत्र में 34 और कनकाचल पर्वत क्षेत्र में 11 खदानें संचालित हैं. साल 2000 से 2018 तक खदानों का आवंटन किया गया था. उन्होंने कहा कि इन खदानों में लगभग 2500 लोग काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि इसके साथ ही पसोपा क्षेत्र में डेढ़ साल से चल रहा साधुओं का आंदोलन समाप्त हो गया है. उक्त क्षेत्र को पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने के लिए विस्तृत कार्य योजना तैयार की जाएगी.

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