विपक्ष की गैरमौजूदगी में पारित हुआ चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में बदलाव वाला वो कानून, जिस पर चल रहा है विवाद

कुलदीप पंवार | Updated:Dec 21, 2023, 04:55 PM IST

Election Commission Of India (File Photo)

Latest Parliament News: सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को पारदर्शी बनाने के लिए जिस तरह की तीन सदस्यीय कमेटी बनाने का सुझाव दिया था, सरकार का बिल उससे थोड़ा अलग है.

डीएनए हिंदी: Chief Election Commissioner Appointment Bill 2023- विपक्षी सांसदों के निलंबन के विवाद के बीच केंद्र सरकार संसद में एक के बाद एक कानून पारित कराती जा रही है. गुरुवार को देश के टॉप-3 निर्वाचन अधिकारियों की नियुक्ति की नई प्रक्रिया को मंजूरी देने वाला बिल भी लोकसभा में पारित हो गया, जबकि इस बिल को लेकर पहले ही विवाद की स्थिति बनी हुई है. इस बिल को राज्य सभा में पहले ही पेश करके पारित कराया जा चुका है, जहां विपक्षी सांसदों ने इस कानून से इन पदों पर केंद्र सरकार की मनचाही नियुक्ति का रास्ता साफ होने की बात कहते हुए आपत्ति जताई थी. अब लोकसभा में भी Chief Election Commissioner and Other Election Commissioners (Appointment, Conditions of Service and Term of Office) Bill 2023 पारित होते ही नई नियुक्ति प्रक्रिया को कानूनी दर्जा मिल गया है. अब इस बिल को कानून बनने के लिए महज राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने की औपचारिकता ही बाकी रह गई है.

1991 के नियुक्ति कानून को बताया कमजोर

लोकसभा में नया बिल पेश करते समय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने साल 1991 के कानून का जिक्र किया, जिसके जरिये फिलहाल चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की जाती है. उन्होंने उस कानून को आधा-अधूरा और कमजोर बताया. साथ ही दावा किया कि नया बिल पुराने कानून में छूट गए पहलुओं को भी कवर करेगा. इसके बाद बिल पेश किया गया, जिसे सदन ने ध्वनिमत से पारित कर दिया. विपक्ष ने इस कानून की आलोचना करते हुए कहा है कि यह चुनाव आयोग की स्वतंत्रता को प्रभावित करने वाला कानून है. इससे चुनाव आयुक्त की नियुक्ति सरकारी मेहरबानी पर निर्भर हो जाएगी. हालांकि सरकार का दावा है कि तमाम आपत्तियों को ध्यान में रखते हुए कानून में महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने दिया था CJI की मौजूदगी वाला पैनल बनाने का आदेश

इस साल की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश पारित किया था. इस आदेश में कहा गया था कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रधानमंत्री की मौजूदगी वाले एक पैनल की सिफारिश पर ही की जाए. इस पैनल में पीएम के अलावा नेता विपक्ष और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) भी शामिल हों. इसे लैंडमार्क फैसला माना गया था, जिसका मकसद निर्वाचन आयोग में राजनीतिक हस्तक्षेप को कम करना था. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस निर्णय को उस समय होल्ड पर करते हुए केंद्र सरकार को इसके लिए कानून बनाने का मौका दिया था. 

सरकार ने CJI की गैरमौजूदगी वाले पैनल का बिल किया था पेश

केंद्र सरकार ने राज्यसभा में जो बिल पेश किया था, उसमें पैनल में पीएम और नेता विपक्ष को शामिल किया गया था, लेकिन CJI की जगह पीएम द्वारा नामित केंद्रीय मंत्री को जगह दे दी गई थी. इस पर विपक्ष ने ऐतराज जताते हुए कहा था कि इससे पैनल में केंद्र सरकार की मनमर्जी ही चलेगी, क्योंकि नेता विपक्ष की आपत्ति को पीएम और केंद्रीय मंत्री का वोट खारिज कर देगा. इससे निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता प्रभावित होगी. 

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