Twitter
Advertisement
  • LATEST
  • WEBSTORY
  • TRENDING
  • PHOTOS
  • ENTERTAINMENT

Bhagat Singh की फांसी पर डीयू स्टूडेंट्स का रिसर्च, जानें कौन से तथ्य आए सामने 

अंग्रेजों ने महात्मा गांधी की बात नहीं मानी  और  भगत सिंह को फांसी दी गई. ये बातें राजधानी कॉलेज में आयोजित शोध परिचर्चा में निष्कर्ष के रूप में बताईं

Bhagat Singh की फांसी पर डीयू स्टूडेंट्स का रिसर्च, जानें कौन से तथ्य आए सामने 
FacebookTwitterWhatsappLinkedin

डीएनए हिंदी: कॉलेज के 6 स्टूडेंट्स रक्षिता, यश शर्मा, सपना गुप्ता, हेमंत , सचिन और आराधना ने शहीद ए आजम भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव की फांसी को लेकर अध्ययन किया था. इन्होंने बताया कि हमारे समाज में इस फांसी को लेकर काफी भ्रम हैं. लोग उस दौर के सत्य और तथ्य की बजाय झूठ और अफवाह को सच मान बैठे हैं. उस दौर के दस्तावेजों को खंगालने पर पता चलता है कि अंग्रेजी सत्ता ने इन्हें फांसी देने के लिए न्याय प्रक्रिया की धज्जियां उड़ा दी थी. महज दिखावे के लिए सारे नियमों का पालन हुआ था, झूठे गवाह लाए गए थे. महात्मा गांधी ने इरविन से बार बार प्रयास किया कि इन्हें फांसी न दी जाए. अगर अंग्रेज सजा देना ही चाहते हैं तो आजीवन कारावास की सजा दे दें. हालांकि, गांधीजी इन लोगों की हिंसक कार्रवाई को भी सही नहीं मानते थे. वे इन्हें सच्चा देशभक्त मानते हुए भी इनके मार्ग से असहमत थे.

आज के दौर में भगत सिंह और क्रांतिकारियों को गांधी जी के विरोध में खड़ा किया जा रहा है. जबकि सच्चाई यह है कि क्रांतिकारी दल में सक्रिय लोग गांधी जी का बहुत सम्मान करते थे. भगत सिंह ने कहा भी था कि गांधीजी ने अपने असहयोग आंदोलन से देश को बड़े पैमाने पर जगाने का काम किया था. यह बहुत बड़ी बात थी और जिसके लिए उनके आगे सर न झुकाना कृतज्ञहीनता होगी. 
 

भगत सिंह और गांधी पर छात्रों ने किया गहन शोध

     
अपने शोध के बारे में बताते हुए इस समूह ने बताया कि हमने उस दौर के ऐतिहासिक साक्ष्यों, दस्तावेजों, इतिहास की पुस्तकों के जरिए इसकी जांच पड़ताल की है. हमें यह महसूस हुआ है कि जनमानस में इस फांसी को लेकर शहीदों को लेकर गहरा आदर का भाव है साथ ही उससे जुड़े तथ्यों को लेकर मिथ्या धारणा भी है. 

राजधानी महाविद्यालय ,  गांधी स्वाध्याय मंडल द्वारा रचनात्मक संवाद विषय "शहीद - ए- आज़म को फांसी : मिथक और सत्य " का आरंभ करते हुए प्रिंसिपल प्रोफेसर राजेश गिरि ने इसे हमारे दौर की बड़ी जरूरत बताया है. उन्होंने कहा कि नौजवान लोग ही सच्चाई को खोज कर उसे समाज के सामने ला सकते हैं. यह उनका दायित्व भी है. उन्होंने यह भी कहा कि इससे हमारे छात्र-छात्राओं में शोध और तर्क के जरिए सत्य तक पहुंचने  का गुण भी विकसित होगा. कार्यक्रम में  प्रोफेसर डॉक्टर सुशील दत्त , गांधी स्वाध्याय मंडल के संयोजक डॉ राजीव रंजन गिरि, विशाल मिश्र भी शामिल थे.

कार्यक्रम की शुरुआत मंच संचालक आरती तिवारी द्वारा विषय के परिचय एवं स्वागत वक्तव्य से किया गया. कार्यक्रम में छात्रों द्वारा गांधी स्वाध्याय मंडल की परंपरा अनुसार रघुपति राघव गीत, कविता एवं ऐ वतन गीत की प्रस्तुति की गई. इस कार्यक्रम की संकल्पना में अध्यक्ष अजीत परमार, कैप्टन रविकांत, सचिव प्रकांत ने भूमिका अदा की थी. शोध पत्रों की प्रस्तुति के बाद करीब डेढ़ दर्जन सवाल श्रोताओं की तरफ से आए. इन सवालों के आलोक में गांधी स्वाध्याय मंडल के संयोजक डॉ राजीव रंजन गिरि ने उस दौर पर एक व्याख्यान दिया जिसमें इनका जवाब शामिल था. इन्होंने भगत सिंह की फांसी से जुड़े प्रसंगों में गांधी जी के प्रयासों को समझने के लिए नेताजी सुभाषचंद्र बोस की पुस्तक " इंडियन स्ट्रगल " का हवाला दिया और बताया कि नेताजी ने भी यह रेखांकित किया है कि महात्मा गांधी ने पुरजोर प्रयास किया पर अंग्रेज नहीं माने.

Advertisement

Live tv

Advertisement

पसंदीदा वीडियो

Advertisement