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भारत
सुप्रीम कोर्ट बेंच ने शुक्रवार को साफतौर पर कहा कि नामों को बेवजह लटकाए रखना स्वीकार नहीं किया जा सकता.
डीएनए हिंदी: हायर ज्युडिशियरी में जजों की नियुक्ति में देरी को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) और केंद्र सरकार में एक बार फिर टकराव वाली स्थिति बन रही है. सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए केंद्र सरकार की कॉलेजियम (Supreme Court Collegium) की तरफ से भेजे गए नामों को बेवजह लटकाए रखने को जिम्मेदार बताया है. साथ ही कहा है कि यह मंजूर नहीं किया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने साफतौर पर कहा कि पहले ही ये स्पष्ट किया जा चुका है कि यदि नॉमिनेशन लिस्ट में किसी नाम पर सरकार आपत्ति जताकर वापस भेजती है और कॉलेजियम दोबारा उस नाम की सिफारिश भेजता है तो उसे नियुक्त किया जाना चाहिए. टॉप कोर्ट ने इन कमेंट्स के साथ ही केंद्रीय विधि व न्याय मंत्रालय के सचिव (न्याय) को नोटिस जारी करते हुए जवाब मांगा है. अगली सुनवाई 28 नवंबर को होगी.
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नामों को बेवजह लटकाए रखना बनता जा रहा परंपरा
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय एस. ओका की बेंच शुक्रवार को एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी. इस याचिका में नियुक्तियों की जानबूझकर अनदेखी करने और इसके चलते नियुक्ति में 'असाधारण देरी' का आरोप केंद्र सरकार पर लगाया गया है. इसके लिए याचिकाकर्ता एडवोकेट्स एसोसिएशन (बेंगलुरु) ने सुप्रीम कोर्ट की तरफ से 20 अप्रैल, 2021 को दिए फैसले में नियुक्तियों के लिए तय डेडलाइन का हवाला दिया गया है.
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बेंच ने कहा, नामों को बेवजह लटकाए रखना स्वीकार नहीं किया जा सकता. यह ऐसा तरीका बनता जा रहा है, जिसके जरिये कॉलेजियम की तरफ से हायर ज्युडिशियरी में जज के तौर पर नॉमिनेट लोगों को अपनी सहमति वापस लेने को मजबूर किया जाता है. बेंच ने कहा, इस तरह नाम रोककर रखने के तरीके का इस्तेमाल लोगों को अपना नाम वापस लेने के लिए मजबूर करने में यूज किया भी गया है. बेंच ने कहा कि जब तक किसी न्यायिक पीठ में सक्षम वकील शामिल नहीं होते, तब तक कानून व न्याय के शासन की अवधारणा प्रभावित होती है.
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सरकार की देरी ने ही पिछले साल डेडलाइन तय कराई थी
बेंच ने कहा कि हाई कोर्ट्स में जजों के खाली पड़े पदों की 'गंभीर स्थिति' हैं. साथ ही जजों की नियुक्तियों में केंद्र देरी करता है. इसी कारण सुप्रीम कोर्ट की 3 जजों की बेंच को पिछले साल नियुक्ति की व्यापक डेडलाइन तय करने के लिए आदेश देना पड़ा था. इसी के तहत नियुक्ति प्रक्रिया पूरी होनी है. इसमें केंद्र को नामों पर विचार करने के लिए पर्याप्त समय देने के लिए ही जजों के नाम छह महीने पहले भेजने की व्यवस्था बनाई गई थी. बेंच ने कहा, ऐसा लगता है कि इस आदेश की कई मौकों पर अवहेलना हो रही है.
11 नाम लंबित हैं, एक नाम 14 महीने से लटका
बेंच ने कहा कि सरकार के पास कॉलेजियम से मंजूर किए गए 11 नाम लंबित हैं, जिनकी नियुक्तियों की अब तक प्रतीक्षा चल रही है. सबसे पुरानी सिफारिश 4 सितंबर, 2021 की है, जबकि 2 सिफारिशें गत 13 सितंबर की हैं. इससे लग रहा है कि सरकार न तो कॉलेजियम की सिफारिशों पर नियुक्ति कर रही है और न ही अपनी आपत्ति बताती है. बेंच ने कहा, 10 लंबित नाम ऐसे हैं, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 4 सितंबर, 2021 से 18 जुलाई, 2022 के बीच दोबारा सरकार को भेजा है. इन्हें मंजूरी देने में सरकार की देरी के कारण कई लोगों ने अपना नाम वापस ले लिया. इससे जस्टिस सिस्टम में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति को शामिल करने का अवसर गंवा दिया गया. एक व्यक्ति का नाम दोबारा भेजे जाने के बावजूद लंबित रहने के दौरान ही उनका निधन हो चुका है. बेंच ने कहा कि हम असल में इस स्थिति का मूल्यांकन नहीं कर पा रहे हैं.
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