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'दोषी नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाना सही नहीं', केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में क्यों कही ये बात?

केंद्र सरकार ने हलफनामे में कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा संविधान के अनुच्छेद 102 और 191 का उल्लेख करना पूरी तरह से गलत है. आजीवन प्रतिबंध लगाना उपयुक्त नहीं होगा.

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'दोषी नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाना सही नहीं', केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में क्यों कही ये बात?

सुप्रीम कोर्ट.

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सुप्रीम कोर्ट दोषी करार दिए गए नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा है. बुधवार को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाखिल किया. सरकार ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि राजनीतिक नेता पर चुनाव लड़ने से आजीवन प्रतिबंध लगाना कठोर सजा होगी. वैसे भी इस तरह की अयोग्यता तय करना केवल संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है.

केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में कहा कि याचिका में जो अनुरोध किया गया है वह विधान को फिर से लिखने या संसद को एक विशेष तरीके से कानून बनाने का निर्देश देने के समान है, जो न्यायिक समीक्षा संबंधी सुप्रीम कोर्ट की शक्तियों से पूरी तरह से परे है. सरकार ने कहा कि यह सवाल कि आजीवन प्रतिबंध लगाना उपयुक्त होगा या नहीं, यह पूरी तरह से संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है.

केंद्र ने कहा कि यह कानून का स्थापित सिद्धांत है कि दंड या तो समय या मात्रा के अनुसार निर्धारित होते हैं. यह दलील दी गई है कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए मुद्दों के व्यापक प्रभाव हैं और वे स्पष्ट रूप से संसद की विधायी नीति के अंतर्गत आते हैं. इस संबंध में न्यायिक समीक्षा की रूपरेखा में उपयुक्त परिवर्तन करना पड़ेगा.

अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने सुप्रीम को्रट में याचिका दायर कर दोषी करार दिए गए राजनीतिक नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने के अलावा देश में सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के त्वरित निस्तारण का अनुरोध किया है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा था.

6 साल की सजा काफी
केंद्र ने अपने हलफनामे में काह कि शीर्ष अदालत ने निरंतर यह कहा है कि एक विकल्प या दूसरे पर विधायी विकल्प की प्रभावकारिता को लेकर अदालतों में सवाल नहीं उठाया जा सकता. जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 (1) के तहत, अयोग्यता की अवधि दोषसिद्धि की तारीख से 6 साल या कारावास के मामले में रिहाई की तारीख से 6 साल तक है.

मोदी सरकार ने कहा कि उक्त धाराओं के तहत घोषित की जाने वाली अयोग्यताएं संसदीय नीति का विषय हैं और आजीवन प्रतिबंध लगाना उपयुक्त नहीं होगा. केंद्र ने कहा कि न्यायिक समीक्षा के मामले में न्यायालय प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित कर सकता है, हालांकि, याचिकाकर्ता द्वारा मांगी गई राहत में अधिनियम की धारा 8 की सभी उप-धाराओं में 6 साल के प्रावधान को आजीवन पढ़े जाने का अनुरोध किया गया है.

केंद्र ने किया दिया तर्क
हलफनामे में कहा गया कि याचिकाकर्ता द्वारा संविधान के अनुच्छेद 102 और 191 का उल्लेख करना पूरी तरह से गलत है. संविधान के अनुच्छेद 102 और 191 संसद, विधानसभा या विधानपरिषद की सदस्यता के लिए अयोग्यता से संबंधित हैं. केंद्र ने कहा कि अनुच्छेद 102 और 191 के खंड (ई) संसद को अयोग्यता से संबंधित कानून बनाने की शक्ति प्रदान करते हैं और इसी शक्ति का प्रयोग करते हुए 1951 का (जन प्रतिनिधित्व) अधिनियम बनाया गया था.

(With PTI inputs)

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