भारत
अमेठी से गांधी परिवार के रिश्ते की शुरुआत इमरजेंसी के दौरान हुई. संजय गांधी ने 1977 में अमेठी से पहली बार चुनाव लड़ा था. उसके बाद से ये रिश्ता बदस्तूर बना हुआ है.
उत्तर प्रदेश के अमेठी लोकसभा क्षेत्र की चर्चा होते ही सबसे पहले गांधी परिवार का नाम याद आता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि अमेठी से गांधी परिवार का रिश्ता क्या है. इस रिश्ते की शुरुआत कब हुई और गांधी परिवार का कौन सा व्यक्ति सबसे पहले अमेठी से चुनावी मैदान में उतरा था... क्या अमेठी ने गांधी परिवार को हाथोंहाथ लिया था या देश को तीन प्रधानमंत्री देने वाले इस परिवार को इसके लिए मेहनत करनी पड़ी थी. सवाल कई हैं क्योंकि चुनाव हो या नहीं, लेकिन अमेठी हमेशा सुर्खियों में रहती है.
अमेठी से गांधी परिवार के जुड़ाव की शुरुआत आपातकाल के दौरान हुई. 1975 से 1977 तक का वो दौर जब देश में इमरजेंसी लागू था. विपक्षी नेता जेल की सीखचों में कैद थे. नागरिक अधिकार खत्म हो गए थे और मीडिया पर पाबंदी थी. लोकतंत्र के इस अंधियारे के दौर में अमेठी के खैरौना गांव में एक नई सुबह ने अंगराई ली थी. तब एक नायक ने खैरौना की धरती पर अपने कदम रखे थे. नायक तो खैर क्या, तब उसकी छवि किसी खलनायक जैसी ही थी. इमरजेंसी के दौरान हुई ज्यादतियों के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार वही शख्स था. उस समय प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी 1976 के नवंबर महीने में अपने कुछ युवा साथियों के साथ खैरौना गांव पहुंचे थे. उन्होंने सड़क निर्माण के लिए श्रमदान शिविर शुरू किया और अगले डेढ़ महीने तक खैरौना में किसी उत्सव जैसा माहौल बना रहा. देशभर से जुटे कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ खुद संजय गांधी दिन भर कुदाल और फावड़ा लेकर श्रमदान करते. फिर रोज शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रम होते. इसमें खैरौना गांव के लोग भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते. पुरुष तो पुरुष, घूंघट ओढ़कर महिलाएं भी इसमें शामिल होतीं. श्रमदान के जरिए तीन सड़कें बनाई गईं. अब ये सड़कें डामर की हो गई हैं और संजय गांधी के श्रमदान शिविर का कोई निशान इन सड़कों पर नहीं दिखता, लेकिन गांधी परिवार और अमेठी के रिश्तों के लिहाज से ये सड़कें स्थायी निशान छोड़ गईं.
सवाल ये है कि संजय गांधी आखिर खैरौना पहुंचे क्यों थे. दरअसल, ये वो दौर था जब संजय सियासी फलक पर तो नजर आने लगे थे, लेकिन राजनीति में उनकी औपचारिक एंट्री नहीं हुई थी. उनके लिए राजनीतिक जमीन की तलाश हो रही थी. यह बात जब अमेठी के तत्कालीन सांसद विद्याधर वाजपेयी को पता चली तो उन्होंने अपनी सीट संजय के लिए छोड़ने का ऐलान कर दिया. विद्याधर वाजपेयी यहां से दो बार सांसद चुने जा चुके थे और गांधी परिवार के बेहद करीब थे. उनकी घोषणा के बाद जब यह निश्चित हो गया कि अमेठी ही संजय गांधी का लॉन्चिंग पैड बनेगी तो उन्होंने तय किया कि पहले इस इलाके का विकास करेंगे. लोगों को ये बताएंगे कि वे अमेठी के लिए क्या कर सकते हैं. श्रमदान शिविर उसी का नतीजा था.
ऐसा भी नहीं है कि अमेठी के चुनाव के लिए विद्याधर वाजपेयी का ऐलान अकेला कारण था. दरअसल, बगल की रायबरेली लोकसभा सीट से 1952 और 1957 में संजय के पिता फिरोज गांधी निर्वाचित हुए थे. 1967 से इसी क्षेत्र की नुमाइंदगी मां इंदिरा गांधी कर रही थीं. इंदिरा के पिता और देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू फूलपुर से लोकसभा चुनाव लड़ते थे. फूलपुर भी अमेठी से ज्यादा दूर नहीं है. मतलब ये कि संजय के अमेठी आने से पहले भी यहां के लोग गांधी परिवार से अच्छी तरह वाकिफ थे. चुनाव लड़ने से पहले संजय ने यहां विकास कार्य भी इसलिए शुरू किए क्योंकि इसकी पहचान महज़ एक संसदीय क्षेत्र के ही रूप में थी, इससे ज़्यादा नहीं. यानी आज जिस तरह राजनीतिक तौर पर एक वीआईपी क्षेत्र के रूप में अमेठी को जाना जाता है, तब तक ऐसा कुछ भी नहीं था. विकास के नाम पर यहां कुछ नहीं था.
फिर 1977 का साल आया. इमरजेंसी खत्म होने के बाद लोकसभा चुनाव हो रहे थे और संजय गांधी अमेठी के चुनाव मैदान में थे. खैरौना के श्रमदान शिविर ने अमेठी से गांधी परिवार को जोड़ ही दिया था. संजय अपनी जीत के प्रति पूरी तरह आश्वस्त थे. देश के तमाम हिस्सों से अपने नेता की हर हाल में जीत पक्की करने के लिए समर्थकों का हुजूम अमेठी पहुंचा था. हथियारों से लैस बाहुबली थे. जीत की गारंटी देने वाला प्रशासन था. मुकाबले में आपातकाल की यातनाएं भुगत कर निकले तेजतर्रार रवीन्द्र प्रताप सिंह थे. वे 1967 में अमेठी से जनसंघ के विधायक रह चुके थे. जब नतीजा आया तो संजय गांधी करीब 76 हजार वोटों से हार गए थे. संजय हार जरूर गए थे, लेकिन ना तो वे अमेठी को भूले थे और ना ही यहां के लोग उन्हें भूले थे. अगले ढाई साल संजय और कांग्रेस पार्टी के लिए बेहद मुश्किल भरे रहे. जनता पार्टी शासन में संजय गांधी की सड़क से अदालतों तक की लड़ाई में अमेठी-सुल्तानपुर के युवकों की जबरदस्त भागीदारी थी. 1980 में जब फिर से लोकसभा चुनाव हुए तो संजय एक बार फिर अमेठी से मैदान में थे. हार के सबक और सत्ता से दूर संघर्षों के अनुभवों से परिपक्व. अब वे खुशामदियों और कार्यकर्ताओं में फर्क भी समझने लगे थे. इस बार जब नतीजे आए तो संजय को 1 लाख 86 हजार 990 वोट मिले थे. 58 हजार 445 वोटों के साथ रवीन्द्र प्रताप सिंह काफी पीछे रह गए थे. इस जीत ने अमेठी और गांधी परिवार के बीच रिश्तों की गांठ हमेशा के लिए मजबूत कर दी. बीच में एकाध बार यह गांठ कमजोर भी हुई, लेकिन रिश्ता बरकरार रहा.
ये भी पढ़ें-Maharashtra: देवेंद्र फडणवीस के एक आदेश पर 40,000 बांग्लादेशियों की जाएगी नागरिकता, समझें पूरा मामला
अमेठी में संजय की जीत के साथ केंद्र में भी इंदिरा गांधी की वापसी हो चुकी थी. यूपी में भी कांग्रेस की सरकार बन गई थी. संजय ने अमेठी के विकास का खाका खींचना शुरू कर दिया. अपने स्वभाव के मुताबिक वह जल्दी नतीजे चाहते थे, लेकिन संजय एक साल भी अमेठी के सांसद नहीं रह सके. 23 जून 1980 को विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई. कहते हैं अमेठी के कई घरों में उस दिन चूल्हा नहीं जला था. अमेठी के बुजुर्ग आज भी उस दिन को याद कर रो पड़ते हैं. अमेठी को लगा कि एक साल के अंदर ही वीआईपी संसदीय क्षेत्र का तमगा उससे छिन जाएगा, लेकिन उनके गम का दौर ज्यादा लंबा नहीं चला. 1981 में अमेठी में उपचुनाव हुए और संजय के बड़े भाई राजीव गांधी यहां से खड़े हुए. इससे पहले तक राजीव राजनीति से कमोबेश दूर ही रहे थे. वे पायलट थे और प्लेन उड़ाना उनका पैशन था. बहरहाल, छोटे बेटे की असामयिक मौत के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को एक सपोर्ट सिस्टम की जरूरत थी और नहीं चाहते हुए भी राजीव को सियासत में आना पड़ा. इसके साथ ही अमेठी, गांधी परिवार के एक और शख्स के लिए लॉन्च पैड बन गया. अमेठी ने राजीव को हाथोंहाथ लिया. 82 प्रतिशत से ज्यादा वोटों के साथ वे चुनाव जीते.
ये भी पढ़ेंः Maharashtra News: देवेंद्र फडणवीस के एक आदेश पर 40,000 बांग्लादेशियों की जाएगी नागरिकता, समझें पूरा मामला
1981 के बाद राजीव गांधी 1984 में भी यहां से जीते और प्रधानमंत्री बने. 1989 में भी उनकी जीत हुई, लेकिन प्रधानमंत्री का पद उनके हाथों से निकल गया. फिर, 1991 का लोकसभा चुनाव हुआ और नतीजा आने से पहले ही एक बम विस्फोट में राजीव गांधी की मौत हो गई. अमेठी पर फिर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. उस दिन यहां की गलियां सुनसान थीं. सारी दुकानें बंद थीं. यहां के लोगों ने मानो अपना बेटा,अपना भाई खो दिया था. 1991 में ही अमेठी में फिर से चुनाव हुए और राजीव गांधी के दोस्त कैप्टन सतीश शर्मा यहां से कांग्रेस के टिकट पर चुने गए. वे 1996 में भी यहां से सांसद बने. 1998 के लोकसभा चुनाव में पहली बार लगा कि अमेठी और गांधी परिवार के रिश्तों की डोर कमजोर होने लगी है. सतीश शर्मा यहां से हार गए, लेकिन डेढ़ साल बाद जब फिर से लोकसभा चुनाव हुए तो अमेठी गांधी परिवार के एक और शख्स के लिए सियासी लॉन्च पैड बन गया. राजीव की पत्नी सोनिया गांधी ने सियासत में एंट्री ली और लोकसभा पहुंचने के लिए अपने पति के संसदीय क्षेत्र को चुना. इटली से भारत आई सोनिया से यहां के लोग अच्छी तरह वाकिफ थे. उन्हें वे अपनी बहू की तरह मानते थे. चुनाव के नतीजे आए तो सोनिया करीब तीन लाख वोटों से जीत गईं। पांच साल बाद 2004 के लोकसभा चुनाव में सोनिया और राजीव के बेटे राहुल गांधी ने भी सियासत में अपनी एंट्री के लिए अमेठी को ही चुना. उन्हें भी यहां के लोगों ने शानदार जीत दिलाकर लोकसभा में पहुंचाया. 2009 और 2014 में जीत हासिल कर राहुल ने अमेठी से हैट्रिक लगाई.
ये भी पढ़ेंः Chhaava के असर से भड़का औरंगजेब की कब्र का मुद्दा, भावनाओं से खेलकर अपनी गोटी लाल कर रहीं सियासी पार्टियां?
फिर आया 2019 का लोकसभा चुनाव. इस बार राहुल के सामने स्मृति ईरानी थीं. काउंटिंग शुरू होने के साथ ही लगने लगा कि कोई बड़ा उलटफेर हो सकता है. दोपहर आते-आते जब स्मृति ईरानी की बढ़त 40 हजार से ज्यादा हो गई तो राहुल मतगणना केंद्र से बाहर निकल गए. अपनी हार स्वीकार कर ली. यह चुनाव काफी हद तक नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गांधी का था. अमेठी के लोगों ने इसमें नरेंद्र मोदी को चुना था. हालांकि, इसकी आशंका पहले से ही जताई जा रही थी. अमेठी के लोगों और गांधी परिवार के बीच की दूरियां बढ़ने लगी थीं. भावनाओं का ज्वार उतार पर था और रिश्ते कमजोर पड़ चुके थे. केंद्र में कांग्रेस की सत्ता नहीं थी। इसलिए इलाके में विकास के काम ठप पड़ गए थे. इधर, बीजेपी गांधी परिवार के किले को भेदने के लिए हरसंभव कोशिश कर रही थी. 2014 में हार के बाद से स्मृति इलाके में लगातार सक्रिय थीं। केंद्र सरकार की योजनाओं के जरिए वे यहां के लोगों को गांधी परिवार से इतर सोचने की गुजारिश कर रही थीं. रही-सही कसर राहुल और स्थानीय लोगों के बीच बढ़ती खाई ने पूरी कर दी. नतीजे आने के बाद राहुल के उतरे चेहरे ने यह संकेत दिया कि गांधी परिवार से अमेठी का रिश्ता अब खत्म हो चुका है. 2024 का लोकसभा चुनाव नजदीक आते-आते अमेठी फिर एक बार सुर्खियों में थी. चर्चा चली कि राहुल अमेठी से फिर चुनावी मैदान में उतर सकते हैं. प्रियंका गांधी के भी यहां से चुनाव लड़ने की चर्चा हुई, लेकिन कांग्रेस ने अंततः केएल शर्मा को टिकट दिया. वही केएल शर्मा जिन्हें राजीव गांधी पंजाब से अमेठी लेकर आए थे. केएल शर्मा तब से ही अमेठी की जनता और गांधी परिवार के बीच कड़ी बने हुए थे. शर्मा न केवल चुनाव लड़े, बल्कि स्मृति ईरानी को पराजित कर राहुल की हार का बदला भी ले लिया. साथ ही, यह साबित कर दिया कि अमेठी से गांधी परिवार का नाता खत्म नहीं हुआ है.
पढ़ें खबर: Gold Price Hike: आसमान छू रहे सोने के दाम, सारे रिकॉर्ड तोड़ इतना हुआ रेट, चांदी में भी उछाल
अपनी राय और अपने इलाके की खबर देने के लिए जुड़ें हमारे गूगल, फेसबुक, x, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और वॉट्सऐप कम्युनिटी से.
मुकेश अंबानी से शादी के बाद टीचर की नौकरी करती थीं नीता अंबानी, जानिए कितनी थी उनकी सैलरी
दिहाड़ी मजदूर था ये एक्टर, कर चुका है कारपेंटर का काम, लेकिन आज है हाईएस्ट पेड स्टार
Alia Bhatt के इन डिजाइनर ब्लाउज से सिंपल साड़ी या लहंगे को दें लाखों का लुक
VIT Result 2025: VITEEE रिजल्ट जारी होने की तारीख का ऐलान, जानें लेटेस्ट अपडेट
Housefull 5 Teaser: Akshay, Abhishek और Riteish मिलकर मचाएंगे धमाल, लेकिन एक किलर करेगा हाल बेहाल
नसों में जमा बैड कोलेस्ट्रॉल तुरंत होगा छूमंतर, बस दही के साथ मिलाकर खाएं ये एक खास चीज
Neha Kakkar के मेलबर्न कॉन्सर्ट का सच आया सामने, कम भीड़ देख सिंगर ने परफॉर्म करने से किया था इनकार?
Kolkata Hotel Fire: कोलकाता के होटल में लगी भीषण आग, 14 लोगों की मौत, रेस्क्यू ऑपरेशन जारी
IPL 2025: लाइव टीवी पर रिंकू सिंह को थप्पड़ मारते नजर आए कुलदीप यादव, Viral Video देख भड़के लोग
दोपहर के खाने में भूलकर भी न करें ये गलतियां, नहीं तो सेहत को पड़ जाएंगे लेने के देने
खरबूजा खाने से पहले हो जाएं सावधान! इन लोगों को हो सकता है भारी नुकसान
ATM से कैश निकालते समय अब होगा बदलाव! 100 और 200 रुपये के नोटों को लेकर RBI का बड़ा फैसला
Cholesterol Risk: ये 6 फूड्स नसों में भर देंगे गंदा कोलेस्ट्रॉल, वसा की परत पर परत चढ़ती जाएगी
Weather Forecast: दिल्ली-NCR से लेकर यूपी-बिहार तक बदलेगा मौसम का मिजाज, IMD ने जारी किया अलर्ट
Property News: टॉप शहरों में घट रही घर-दुकानों की बिक्री, क्या संकेत है एनसीआर मार्केट के लिए?
Success Story: 'मोदी ब्रांड' ने इस युवक को बनाया करोड़पति, सैकड़ों लोगों को दिया रोजगार
Milk Price Hike: अब Mother Dairy ने बढ़ाए दूध के दाम, 30 अप्रैल से देने होंगे इतने दाम
Bridge Collapsed: सहारनपुर रेलवे स्टेशन पर बड़ा हादसा, ट्रैक पर गिरा 100 साल पुराना फुटओवर ब्रिज
कौन हैं Pratika Rawal जिन्होंने केवल 8 वनडे पारियों में तोड़ दिया 500 रन का रिकॉर्ड?
गुरुग्राम की नई-नवेली मेयर ने तो गजब ही कर दिया, पति को ही बना लिया अपना सलाहकार, कांग्रेस हुई 'लाल'
CSK vs PBKS Weather Report: चेपॉक में बारिश करेगी फैंस का मजा किरकिरा? जानें कैसा है मौसम का हाल
'एक ही दिल है, कितनी बार जीतोगे...' शाहरुख खान को देख महिला फैन नहीं रोक पाईं आंसू, SRK ने लगाया गले
UP News: यूपी में एक और सास दामाद लव स्टोरी, फोन पर होती थी घंटों बात और दोनों एक साथ हो गए फुर्र
शरीर में कोलेजन बढ़ाते हैं ये 5 Summer Drinks, मिलेगी नेचुरल ग्लोइंग स्किन
6 महीने बाद जेल से रिहा हुईं एजाज खान की वाइफ, ड्रग्स मामले में हुईं थी गिरफ्तार
India-Pakistan Tension: भारत को आंखे दिखा रहा Pakistan ने अब IMF से मांगी भीख, 11,000 करोड़ मांगे
पैसों के लिए अपने भाई के साथ किया रोमांस, लोगों ने मचाया बवाल, देश छोड़कर भाग थी गई ये एक्ट्रेस
MP Board Result 2025: कब जारी होगा mpbse.nic.in पर मध्य प्रदेश बोर्ड का रिजल्ट? जानें लेटेस्ट अपडेट
White Hair Remedies: सिर या दाढ़ी के बाल हो गए हैं सफेद? इन घरेलू उपायों से पाएं घने और काले बाल
इस स्कूल में एकसाथ पढ़ती थीं अनुष्का शर्मा और साक्षी धोनी, तस्वीरें देख याद आ जाएगा बचपन
Fawad Khan की Abir Gulaal को भारत के बाद पाकिस्तान में भी मिला रेड सिग्नल, अब कैसे हटेगा ये ग्रहण?
Joint Pain Superfoods: जोड़ों के दर्द ने कर दिया है हाल बेहाल, इन सुपरफूड्स से मिलेगा तुरंत आराम
Dilip Kumar से लेकर अमरीश पुरी तक, पाकिस्तान में जन्म हैं ये 8 फिल्मी दिग्गज, रखते हैं गहरा ताल्लुक
Pahalgam Attack: कौन हैं गुजरात के ऋषि भट्ट? जिनका जिपलाइन Video हो रहा है वायरल, नीचे गोली-ऊपर...
Vastu Tips: घर की इस दिशा में भूलकर भी न रखें ये 5 चीजें, कंगाल होने में नहीं लगेगी देर
नेत्रहीन बेटे की आंखें बनकर मां ने क्रैक करा दी UPSC, इस IAS की कहानी जानकर भर आएगा दिल
रोज सुबह खाली पेट चबाएं ये पत्ते, डायबिटीज और कोलेस्ट्रॉल जैसी समस्याओं से पाएं तुरंत राहत
Padma Bhushan Award 2025: फिल्म इंडस्ट्री के इन दिग्गजों को मिला सम्मान, यहां देखें तस्वीरें