भारत
इंदिरा गांधी कांग्रेस में सिंडिकेट शिकार हुई थी और फिर उन्हें ही पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था.
डीएनए हिंदी: देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस में लगभग ढाई दशक बाद अध्यक्ष पद चुनाव (Congress President Election) हो रहा है. पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने स्पष्ट कर दिया है कि इस बार पार्टी का अध्यक्ष गैर गांधी ही होगा. यह माना जा रहा है कि इससे पार्टी को परिवारवाद के आरोपों से मुक्ति मिलेगी लेकिन क्या आपको पता है कि पूर्व पीएम पंडित जवाहर लाल नेहरू के बाद जब यह अध्यक्ष का पद परिवार से बाहर गया था तो नेहरू की ही बेटी और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) को ही पार्टी से निकाल दिया गया था.
दरअसल, 12 नवंबर 1969 को उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी सिंडिकेट राज का शिकार हुई थी. पार्टी ने कांग्रेस के मजबूत सिंडिकेट ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पार्टी से निकाल दिया. उनके खिलाफ आरोप था कि उन्होंने पार्टी का अनुशासन भंग किया है. इसके बदले में इंदिरा ने न केवल नई कांग्रेस ही नहीं बनाई बल्कि आने वाले समय में इसे ही असली कांग्रेस साबित कर दिया था और सिंडिकेट के नेताओं की 'राजनीतिक हत्या' की पटकथा भी इंदिरा ने ही लिखी थी.
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आपको बता दें कि इसी सिंडिकेट ने साल 1966 में इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाया था और इन नेताओं ने सोचा था कि इंदिरा के पास राजनीतिक अनुभव नहीं है और वे मात्र एक रबर स्टैंप साबित होंगी. बुजुर्ग नेताओं की सोच से विपरीत इंदिरा ने स्वतंत्रता से फैसले लिए थे जिससे कांग्रेस के तत्कालीन आलाकमान को आपत्ति थी. वहीं इंदिरा पार्टी में अपने सहयोगी नेताओं को विशेष पद देने के प्रयास करती थीं लेकिन सिंडिकेट उन्हें सफल नहीं होने देता था जिससे पार्टी और पीएम के बीच टकराव बढ़ रहा था.
आपको बता दें कि 1968-69 के दौरान सिंडिकेट के सदस्य इंदिरा गांधी को गद्दी से उतारने की योजना बनाना शुरू कर चुके थे. साल 12 मार्च 1969 को निजलिंगप्पा ने इंदिरा गांधी को पीएम के तौर पर एक काबिल नेता बताया था लेकिन फिर अचानक ही उन्होंने थोड़े दिनों बाद मोरारजी देसाई ने उनसे प्रधानमंत्री को हटाए जाने की जरूरत पर बातचीत की थी. इसका नतीजा यह था कि धीरे-धीरे पार्टी में ये नेता इंदिरा के लिए नकारात्मक माहौल बनाने लगे थे.
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एक ध्यान देने वाली बात यह भी है कि इंदिरा सीधे टकराव करके पार्टी में गुटबाजी की समर्थक नहीं थीं लेकिन उन्हें सिंडिकेट लगातार शिकार बना रहा था. वहीं तत्कालीन राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की मृत्यु के चलते हुए राष्ट्रपति चुनाव इंदिरा के लिए अहम साबित हुए. सिंडिकेट के नेताओं ने कांग्रेस की तरफ से राष्ट्रपति के लिए नीलम संजीव रेड्डी को मनोनीत किया था लेकिन इंदिरा उनके नाम पर सहमत नहीं थी. ऐसे में उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार वीवी गिरि को समर्थन दे दिया. अहम बात यह है कि कांग्रेस के आधिकारिक उम्मीदवार को आरएसएस तक ने समर्थन दे दिया था जिससे इंदिरा को उनके खिलाफ बोलने का मौका भी दे दिया था.
वीवी गिरी को वामदलों, डीएमके, अकाली दल और मुस्लिम लीग ने समर्थन दिया था. वहीं जब आरएसएस ने नीलम संजीव रेड्डी का समर्थन कर दिया तो सेकुलरिज्म के बहाने से इंदिरा ने भी खुलकर सिंडिकेट से टकराव लेते हुए वीवी गिरी का समर्थन कर दिया था. उन्होंने कांग्रेस के नेताओं से कहा था कि वे अंतरात्मा के आधार पर वोट करें. वीवी गिरी 20 अगस्त को बहुत कम वोटों से देश के नए राष्ट्रपति चुने गए.
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राष्ट्रपति चुनावों में निर्दलीय उम्मीदवार वीवी गिरी की जीत में कांग्रेस के नेताओं की अहम भूमिका था और यह सिंडिकेट की तगड़ी हार थी. इसके चलते अब सिंडिकेट कांग्रेस के अध्यक्ष निजलिंगप्पा समेत सभी इंदिरा विरोधी नेताओं ने उन पर पार्टी के खिलाफ साजिश करने का आरोप लगाया है. वहीं इन्ही आरोपों के चलते उन्होंने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को कांग्रेस से बाहर का रास्ता दिखा दिया था.
इंदिरा गांधी ने इसका जवाब देते हुए तुरंत नई पार्टी बना ली. ऐसे में इंदिरा की गांधी की सरकार अल्पमत में आ गई थी लेकिन उन्होंने शक्ति प्रदर्शन कर अपनी ताकत दिखाई थी. अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के 705 सदस्यों में 446 ने इंदिरा गांधी खेमे यानि कांग्रेस (आऱ) के अधिवेशन में हिस्सा लिया जबकि दोनों सदनों के 429 कांग्रेसी सांसदों में 310 इंदिरा के गुट ही में शामिल हो गए थे. इंदिरा को लोकसभा में बहुमत साबित करने के लिए 45 सांसद कम पड़ रहे थे लेकिन इस मामले में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने उनका समर्थन कर दिया था और इंदिरा ने आसानी से अपनी सरकार बचा ली थी.
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अहम बात यह है कि इसे 1971 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी गरीबी हटाओ नारे के साथ आईं थी और उन्होंने जबरदस्त प्रचार किया था. उनकी पार्टी को गाय-बछड़े का चुनाव चिन्ह मिला. इंदिरा के खिलाफ सीधे तौर पर विरोधी इंदिरा हटाओ की बात कर रहे थे लेकिन बैंको के राष्ट्रीय करण से लेकर अनेकों कल्याणकारी योजनाओं के चलते इंदिरा द्वारा कराए गए मध्यावधि चुनावों के बावजूद उनकी जीत हुई थी. वहीं पाकिस्तान के साथ युद्ध और बांग्लादेश में इंदिरा की भूमिका ने उनकी छवि एक सबसे लोकप्रिय नेता वाली बना दी थी.
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