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Bharat Bandh : जानें कब शुरू हुई देश में बंद और हड़ताल की परंपरा, पढ़ें पूरा इतिहास

Bharat Bandh History : भारत में प्रदर्शनों, विरोधों और बंद की परंपरा डेढ़ सौ सालों से अधिक पुरानी है. आइए जानते हैं कब हुआ था पहली बार बंद का ऐलान.

Bharat Bandh : जानें कब शुरू हुई देश में बंद और हड़ताल की परंपरा, पढ़ें पूरा इतिहास
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डीएनए हिंदी :  अग्निपथ योजना के विरोध में आज देशव्यापी बंद (Bharat Bandh) का आह्वान किया गया है. हर जगह बड़े विरोध प्रदर्शन और आंदोलन हो रहे हैं. सुरक्षा व्यवस्था को लेकर देश भर में अलर्ट ज़ारी है. दिल्ली एनसीआर से जाम की ख़बरें आ रही हैं. गौरतलब है कि भारत में प्रदर्शनों, विरोधों और बंद की लम्बी परंपरा रही है. अनुमानतः भारत में हर साल 2 से 3 प्रदर्शन होते हैं. अब तक देश में 50 से अधिक बड़े और ऐतिहासिक प्रदर्शन हो चुके हैं. आइए जानते हैं क्या रहा है इस भारत बंद का इतिहास… 

देश में हड़ताल और  Bharat Bandh का इतिहास 
माना जाता है कि भारत में बंद(Bharat Bandh) और हड़ताल की परंपरा डेढ़ सौ साल से अधिक पुरानी है.  इसकी शुरुआत 1862 में हुई थी. हालांकि इसके बारे में दस्तावेजी जानकारी की उपलब्धता का अभाव है. जानकारी के अनुसार 1862 में फैक्ट्रियों में काम करने वाले मज़दूरों ने काम बंद कर हड़ताल कर दिया था फिर 9 सालों बाद हावड़ा स्टेशन के 1200 कर्मचारियों ने हड़ताल की घोषणा की थी. उनकी मांग थी कि उनके काम करने के समय को घटा कर 8 घंटे किया जाए. 

राजनैतिक कारणों से पहला बंद 
सूचनाओं के मुताबिक राजनैतिक कारणों से देश में पहला बंद(Bandh) 1908 में हुआ था. यह मुंबई में किया गया था. इस बंद में ब्रिटिश सरकार ने 24 जून 1908 को बाल गंगाधर तिलक को अरेस्ट किया गया था.  इसके विरोध में मुंबई भर में बंद का ऐलान कर दिया गया और सैकड़ों कर्मचारी काम छोड़कर चले गए. 6 दिन तक चले इस विरोध प्रदर्शन में सैकड़ों लोगों की जान गई थी.  

महात्मा गांधी का असहयोग आंदोलन 
1920 में गांधी जी के द्वारा शुरू किया गया असहयोग आंदोलन भी भारत बंद(Bharat Bandh) का ही एक स्वरूप था. यह एक बड़ा जनआंदोलन था जिसमें भारतीय मज़दूरों ने अंग्रेज़ों की ख़िलाफ़त के लिए उनके साथ काम करना बंद कर दिया था. यह बड़े स्तर पर किया गया बंद सरीखा आंदोलन था. 

1942 का भारत छोड़ो आंदोलन
आज़ादी से पहले भारत के बड़े बंद(Bharat Bandh) में 1942 का अंग्रेज़ों भारत छोड़ो आंदोलन काफ़ी महत्व रखता है. यह काफ़ी बड़े स्तर का आंदोलन था  जिसमें न केवल छात्रों ने हिस्सा लिया था बल्कि कई सरकारी कर्मचारियों ने भी अंग्रेजी सरकार का विरोध करने के लिए अपनी नौकरियां छोड़ दी थी. 

महात्मा गांधी के अहिंसक उपाय के रूप में मशहूर हड़ताल या बंद कालांतर में भारत में जन-अधिकार की मांग का सबसे कारगर तरीक़ा बन गया. शुरुआत के कई सालों तक अहिसंक और केवल असहयोगपूर्ण रहने वाला बंद बाद के दशकों में हिंसक होने लगा. समझा जाता है कि 1975 के छात्र आन्दोलनों के वक़्त अहिंसक हड़तालों ने भीषण रूप से झड़पों और उग्र विरोध प्रदर्शनों का रूप ले लिया. 

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