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Operation Meghdoot में जवानों का शौर्य नहीं भूले लोग, आज ही के दिन शुरू हुई थी दुनिया की सबसे कठिन लड़ाई

आज भी सियाचिन भारतीय सेना के पूर्व कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल पीएन हून के उस साहस की गाथा चीख चीख कर बयान करता है. पढ़ें केटी अल्फी की विशेष रिपोर्ट

Operation Meghdoot में जवानों का शौर्य नहीं भूले लोग, आज ही के दिन शुरू हुई थी दुनिया की सबसे कठिन लड़ाई
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डीएनए हिंदीः भारतीय सेना के जवान अपने पराक्रम से कई बार दुश्मनों को करार जवाब दे चुके हैं. भारतीय सेना ने 13 अप्रैल 1984 को सियाचिन ग्लेशियर मे आपरेशन मेघदूत (Operation Meghdoot) लॉन्च किया. सेना के वीर जवान अपने प्राणों की परवाह किए बिना दुनिया के सबसे दुर्गम युद्धस्थल पर पराक्रम और शौर्य की वीर गाथा आज लिख रहे हैं.  

कैसे हुआ था ऑपरेशन मेघदूत?
लेफ्टिनेंट जनरल पीएन हून (PN Hoon) के नेतृत्व में सेना ने सियाचिन पर कब्ज़ा किया था. 1983 से पाकिस्तान (Pakistan) के नज़रें सियाचिन पर टिकी थी और वो इसे कब्ज़ा करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार था. सियाचिन को लेकर विवाद विभाजन के समय से चलता आ रहा है. आज भी सियाचिन भारतीय सेना के पूर्व कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल पीएन हून के उस साहस की गाथा चीख चीख कर बयान करता है. पीएन हून के नेतृत्व में भारतीय सेना ने सबसे ऊंची छोटी सियाचिन पर तिरंगा फहराया था और देश के दुश्मनों को नाक रगड़वा दी थी. 13 अप्रैल 1984 को पाकिस्तान के नापाक इरादों को मिट्टी में मिला दिया था. भारतीय सेना ने इस मिशन का कोड नेम ऑपरेशन मेघदूत रखा गया था.   

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क्या था सियाचिन विवाद ?
पाकिस्तान धोखे से सियाचिन ग्लेशियर पर कब्ज़ा जमाना चाहता था. पाकिस्तान ने कई बार भारतीय सेना को रोकने की कोशिश भी की. इस दौरान 1982 में जब लेफ्टिनेंट जनरल मनोरल छिब्बर नॉर्थेर्न कमांड के कमांडिंग अफसर थे तो पाकिस्तान की तरफ से एक विरोध पत्र आया. भारत ने इस पर आपत्ति जताई लेकिन पाकिस्तान फिर भी अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आया. वैसे तो सियाचिन को लेकर विवाद बटवारे के समय से चला आ रहा था और 1949 में दोनों देशों के बीच बॉर्डर के लेकर सीज़फायर भी हुआ और कराची समझौता भी हुआ. इसका आखिरी पॉइंट एक ऐसी दुर्गम जगह थी जहां किसी का पहुंचना आसान नहीं था. 1962 के युद्ध के बाद से पाकिस्तान की नीयत बदलने लगी और पाकिस्तान ने आखिरी पॉइंट पर बदलाव कर उस पर अपना हक़ जताने का दावा पेश करना शुरू कर दिया. पाकिस्तान ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी कि पर्वतारोहियों तक को सियाचिन जाने के लिए पाकिस्तान से परमिट लेना पड़ना पड़ता  था.   

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भारत के लिए सियाचिन की अहमियत
सियाचिन ग्लेशियर हिमालय की वादियों के पूर्वी काराकोरम रेंज में स्थित है और भारत - पाकिस्तान के नियंत्रण रेखा के पास है. सियाचिन का यह ग्लेशियर काराकोरम रेंज के 5 सबसे बड़े ग्लेशियर में सबसे बड़ा माना जाता है और विश्व का दूसरा सबसे बड़ा ग्लेशियर माना जाता है. पिछले 37 साल से भारत और पाकिस्तान के बीच इसको लेकर के जंग छिड़ी हुई. 2003 से यहां पर भारत और पाकिस्तान के बीच सीज़ फायर लागू हो चूका है और उसके बाद से यहां शांति बनी हुई है. इसके बावजूद दोनों देशों की सेना अपने अपने मोर्चे पर तैनात है. अगर इसकी भौगोलिक स्थिति को देखा जाए तो एक तरफ पाकिस्तान की सीमा है तो दूसरी तरफ चीन की. यही वजह है कि भारत के लिए सियाचिन बहुत अहम माना जाता है और अगर पाकिस्तान इस जगह पर कब्ज़ा कर लेता है तो आने वाले समय में चीन के साथ हाथ मिला सकती है जो भारत के खतरा बन सकती है. इसीलिए सियाचिन भारत के  लिए बहुत महत्वपूर्ण है.   

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ख़ुफ़िया एजेंसियों की मदद से शुरू हुआ ऑपरेशन मेघदूत
सियाचिन से पाकिस्तान को खदेड़ने के लिए ऑपरेशन मेघदूत की शुरुवात हुई लेकिन इसके पहले भी ख़ुफ़िया एजेंसियों ने अपनी जानकारी से सेना को अवगत करवाया. ख़ुफ़िया एजेंसियों को यह जानकारी थी कि 17  अप्रैल 1984  को पाकिस्तान सियाचिन पर कब्ज़ा कब्ज़ा करने की कोशिश करेगा लेकिन भारतीय सेना ने पहले ही यानि 13 अप्रैल 1984  को सियाचिन पर चढ़ने का फैसला किया. अगर पाकिस्तान सियाचिन पर पहले पहुंच जाता तो उनके कब्ज़े से छुड़ना मुश्किल हो जाता. ऐसा होने से पहले ही भारतीय सेना ने तिरंगा फहरा कर पाकिस्तान को धूल चटा दी.

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