डीएनए एक्सप्लेनर
Global Crisis 2022: जल, जंगल और जमीन इंसान की मूलभूत ज़रूरते हैं लेकिन पिछले कुछ समय में पानी के संकट और जलवायु परिवर्तन ने चिंता बढ़ा दी है.
डीएनए हिंदी: दुनियाभर में पानी की समस्या, अनाज की कमी, पेट्रोल-डीजल के कम होते स्टॉक और बिजली की समस्या ने आम लोगों के जीवन पर संकट खड़ा कर दिया है. ग्लोबल वॉर्मिंग, प्राकृतिक संसाधनों के बेतहाशा दोहन और पर्यावरण के प्रति लापरवाह नजरिए की वजह से हर रोज नई समस्याएं खड़ी हो रही हैं. बीच-बीच में कोरोना जैसी महामारी ने इस सवाल को और महत्वपूर्ण बना दिया है कि क्या आने वाले समय में लोगों के सामने जिंदा रह पाने की चुनौती ही सबसे बड़ी हो जाएगी? कई देशों के ताजा हालात को देखते हुए कहा जा सकता है कि आने वाला समय दुनिया के लिए बहुत मुश्किल होने वाला है.
वर्तमान में कई देशों में खराब अर्थव्यवस्था और दूसरे देशों पर निर्भरता के चलते पेट्रोलियम पदार्थों की भारी कमी हो गई है. भीषण गर्मी के चलते बढ़ती बिजली की मांग और कोयले पर निर्भरता की वजह से भारत जैसे देशों को कोयले की कमी का सामना करना पड़ रहा है. खराब मौसम से फसलों का उत्पादन कम होने की वजह से दुनिया में खाद्यान पदार्थों की कमी हो रही है और खाना-पीना भी बेहद महंगा होता जा रहा है. पेयजल का संकट भी दुनिया के तमाम महानगरों के लिए अब आम होता जा रहा है. आइए समझते हैं कि क्यों ये समस्याएं मानव सभ्यता के लिए खतरा साबित हो सकती हैं...
पेट्रोल-डीजल की भारी कमी
दुनिया के कई देशों में पेट्रोल और डीजल का उत्पादन शून्य है. भारत जैसे बड़े देश भी पेट्रोलियम संबंधी ज़रूरतों के लिए दूसरे देशों पर निर्भर हैं. गाड़ियां, फैक्ट्रियां, रेलगाड़ियां चलाने, बिजली बनाने और कई अन्य कामों में हर दिन डीजल-पेट्रोल की ज़रूरत होती है. हाल ही में आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका के नए प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने स्वीकार किया है कि उनके देश में सिर्फ़ एक दिन का डीजल-पेट्रोल बचा है. श्रीलंका और भारत जैसे कई देश पेट्रोल-डीजल का ज्यादातर आयात अरब देशों से करते हैं.
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लगातार पेट्रोलियम के दोहन की वजह से पेट्रोलियम का भंडार भी अब दुनिया में कम होता जा रहा है. भारत जैसे देश तो फिर भी डीजल-पेट्रोल खरीदने में सक्षम हैं, लेकिन आर्थिक संकट से जूझने वाले श्रीलंका जैसे देशों के लिए यह भी असंभव होता जा रहा है. आने वाले समय में और बुरा हाल होने की आशंका है. कहा जा रहा है कि कुछ ही सालों में पेट्रोलियम पर प्रतियोगिता बढ़ जाएगी और आम लोगों के लिए इसे खरीद पाना भी संभव नहीं होगा.
कोयले के संकट से जूझ रही दुनिया
भारत में बिजली बनाने का काफी कोयले से होता है. इसके लिए कई उद्योगों में भी ऊर्जा का उत्पादन कोयले से ही होता है. पिछले कुछ महीनों में भारत को कोयले की कमी से जूझना पड़ा है. यह हाल तब है कि जब भारत की कोयले के लिए दूसरे देशों पर निर्भरता काफी कम है. कोयला भी तेजी से खत्म हो रहा है.
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भारत में कई बार ऐसे हालात आए कि सिर्फ़ कुछ ही दिनों का कोयला बचा और कई राज्यों में बिजली की सप्लाई भी प्रभावित हुई. बिजली पर हद से ज्यादा निर्भरता और बिजली बनाने के लिए कोयले पर निर्भरता पूरी दुनिया के लिए चिंता का सबब है.
गहराता जा रहा है पानी का संकट
दुनिया और भारत के कई शहर पानी की समस्या से जूझ रहे हैं. ग्राउंड वाटर का बेतहाशा दोहन, नदियों में प्रदूषण और अतिक्रमण और पानी का खराब मैनेजमेंट बड़े-बड़े महानगरों के सामने बड़े सवाल खड़े कर रहा है. भारत की राजधानी दिल्ली के अलावा चेन्नई, राजस्थान और कई अन्य राज्यों को हर साल पीने के पानी के लिए तरसना पड़ जाता है. इन शहरों में पानी का मैनेजमेंट बेहद खराब माना जाता है. यहां पानी की सप्लाई जितनी होती है उसका काफी हिस्सा खराब हो जाता है.
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पूरी दुनिया के सामने पानी की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है. यूरोप और अमेरिका के कई शहरों में पीने के पानी का संकट खड़ा हो रहा है. यही वजह है कि कई देश समुद्र के पानी को ट्रीट करके पीने की ओर कदम बढ़ा रहे हैं. भारत में लगातार गिरता भूजल स्तर हर साल नई समस्याएं खड़ी करता है. ग्लोबल वॉर्मिंग भी पानी के संकट का एक अहम कारण है. दुनियाभर में चर्चा के बावजूद इसमें कोई खास कमी नहीं जा सकी है.
अब अनाज संकट से भी जूझेगी दुनिया?
यूक्रेन और रूस के बीच जारी युद्ध और खराब मौसम के चलते इस साल पूरी दुनिया में अनाज के उत्पादन में कमी हुई है. उत्पादन में कमी और मांग ज्यादा होने की वजह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खाद्य पदार्थों की कीमतें आसमान छू रही हैं. भारत में इस साल भीषण गर्मी के चलते गेहूं की फसल बुरी तरह प्रभावित हुई है. यही कारण है कि भारत ने तत्काल प्रभाव से गेहूं के निर्यात पर रोक लगा दी है.
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फूड ऐंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन के एक अनुमान के अनुसार, अभी दुनिया में करीब 814 मिलियन लोग कुपोषण का शिकार हैं. रूस और यूक्रेन के युद्ध की वजह से खाद्य पदार्थों की कीमत बढ़ने पर यह संख्या 7.6 मिलियन और बढ़ जाएगी. हालात अगर लंबे समय तक नहीं सुधरे तो कुपोषित आबादी की संख्या 13.1 मिलियन बढ़कर 827 मिलियन तक पहुंच सकती है. इसका सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव एशिया पैसेफिक क्षेत्र, सब सहारा अफ्रीका और उत्तरी अफ्रीका में देखने को मिलेगा.
कुल मिलाकर ये ऐसी समस्याएं हैं जो आम लोगों के दैनिक जन-जीवन को प्रभावित करते हैं. अगर इंसान के लिए खाने को खाना और पीने को पानी नहीं बचेगा तो उसका जिंदा रहना ही संभव नहीं होगा. दूसरी तरफ, भीषण महंगाई, युद्ध, महामारी और आर्थिक समस्याओं की वजह से पूरी दुनिया में नए-नए संकट सामने आ रहे हैं. इन हालात में आर्थिक रूप से गरीब लोगों के लिए सर्वाइव कर पानी भी बेहद कठिन हो जाएगा.
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