Marital Rape: क्या है मैरिटल रेप, क्या कहता है देश का कानून, क्यों चर्चा में है Delhi High Court का फैसला?

अभिषेक शुक्ल | Updated:May 12, 2022, 05:24 PM IST

भारत में अपराध नहीं है मैरिटल रेप. (सांकेतिक तस्वीर)

Marital Rape: भारत में मैरिटल रेप अभी तक अपराध की श्रेणी में नहीं आया है. अलग-अलग अदालतों ने मैरिटल रेप को लेकर फैसले जरूर किए हैं.

डीएनए हिंदी: दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) के एक फैसले के बाद देश में मैरिटल रेप (Marital Rape) पर एक नई बहस छिड़ गई है. केस की सुनवाई कर रहे जज (Judge) भी मैरिटल रेप के मुद्दे पर एकमत नहीं हैं. एक तरफ देश में जहां इस पर कानून बनाने की मांग हो रही है वहीं दूसरी ओर एक तबका ऐसा भी है जो चाहता है मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी से बाहर रखा जाए.

भारत में मैरिटल रेप अपराध नहीं है. मैरिटल रेप को अपराध के दायरे में लाने के लिए महिला संगठन और फेमिनिस्ट ग्रुप (Feminist Group) एक अरसे से मांग करते रहे हैं. राजनीतिक दल भी इसे लेकर बहुत मुखर नहीं हैं. 

दिल्ली हाई कोर्ट ने मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने के मामले में याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए बुधवार को खंडित फैसला सुनाया. इन याचिकाओं में कानून के उस अपवाद को चुनौती दी गई थी जिसके तहत पत्नियों के साथ बिना सहमति के शारीरिक संबंध बनाने के लिए मुकदमे से पतियों को छूट है.

क्या है मैरिटल रेप?

पत्नी की बिना सहमति के अगर पति जबरन उससे शारीरिक संबंध बनाता है तो इसे मैरिटल रेप कहा जाता है. भारतीय दंड संहिता (IPC) इसे अपराध नहीं मानती है. IPC की धारा 375 में रेप की परिभाषा दी गई है. धारा 375 के अपवाद में कहा गया है कि पति अगर अपनी पत्नी के साथ शारीरिक संबंध या किसी भी तरह का सेक्सुअल एक्ट करता है तो यह रेप नहीं है. अगर पत्नी की उम्र 15 साल से कम हो तो इसे रेप की श्रेणी में रखा जाएगा. साफ तौर पर मैरिटल रेप का जिक्र आईपीसी में नहीं है.

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Marital Rape पर क्या कहते हैं कानून के जानकार?

घरेलू हिंसा (Domestic Violence) से जुड़े मामलों पर नज़र रखने वाले एडवोकेट अनुराग ने कहा कि शादी के बाद एक व्यक्ति के तौर पर किसी की सामाजिक पहचान खत्म नहीं हो जाती है. पति-पत्नी के अलावा भी व्यक्ति की एक पहचान है और उसके भी संवैधानिक अधिकार हैं. सेक्स के लिए पत्नी की सहमति अनिवार्य है. किसी को रेप करने का अधिकार सिर्फ इसलिए नहीं मिलना चाहिए कि वह उसका पति है. उन्होंने कहा कि विधि विशेषज्ञों को इस विषय पर और मुखर होने की जरूरत है.

सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अंजन दत्ता कहते हैं कि मैरिटल रेप बहुत संवेदनशील विषय है. विधि विशेषज्ञों को इस पर और ज्यादा सोचने की जरूरत है. एक स्त्री की इच्छा के विरुद्ध सेक्स रेप होता है. पति-पत्नी के रिश्ते की बुनियाद में शारीरिक संबंध भी होते हैं. यह सच है कि सेक्स के लिए पत्नी की सहमति अनिवार्य होनी चाहिए, जबरन शारीरिक संबंध नहीं बनाए जाने चाहिए. पर इसे जुर्म की कैटेगरी में रखना अभी जल्दबाजी होगी जब तक की देश इतना प्रगतिशील न हो जाए कि उसे सहमति का अर्थ समझ में आए.

दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) के ही अधिवक्ता विशाल अरुण मिश्र कहते हैं कि मैरिटल रेप का मामला बेहद संवेदनशील है. लोगों को सही मायनों में सहमति का अर्थ समझाना चाहिए. इसके लिए कानून के जानकार और सामाजिक संगठनों को आगे आना चाहिए. एक तबका जो अपने अधिकार और कर्तव्य के बारे में नहीं जानता है उसे यह समझाने की जरूरत है. मैरिटल रेप के बारे में जब लोगों को बताया जाएगा, तब ही जानेंगे. इस पर कानून बनाने से पहले एक बड़े सामाजिक सुधार से समाज को गुजरना होगा.

मैरिटल रेप पर क्या है कानून?

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 में रेप की परिभाषा बताई गई है. धारा 376 के अलग-अलग क्लॉज में रेप की सजा तय की गई है. मैरिटल रेप का जिक्र किसी भी धारा में नहीं है. मतलब साफ है कि मैरिटल रेप एक सैद्धांतिक अपराध है लेकिन कानून इसे अपराध नहीं मानता है.

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क्या है दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला?

दिल्ली हाई कोर्ट में इस केस की सुनवाई के दौरान एक जस्टिस ने कहा था कि पत्नी की सहमति के बिना जबरन संबंध बनाना संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है. दूसरे जस्टिस इस फैसले से असहमत दिखे. इस केस की सुनवाई जस्टिस राजीव शकधर और सी हरिशंकर कर रहे हैं.

जजों बेंच ने पक्षकारों को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने की छूट दी. बेंच की अगुवाई कर रहे जस्टिस राजीव शकधर ने मैरिटल रेप के अपवाद को खत्म करने का समर्थन किया. उन्होंने कहा कि IPC लागू होने के 162 साल बाद भी एक विवाहित महिला की न्याय की मांग नहीं सुनी जाती है तो दुखद है. जस्टिस सी हरिशंकर ने वहीं कहा था कि IPC के तहत यह अपवाद असंवैधानिक नहीं हैं और संबंधित अंतर आसानी से समझ में आने वाला है.

याचिकाकर्ताओं की क्या थी मांग?

कोर्ट ने IPC की धारा 375 (रेप) के तहत मैरिटल रेप के अपवाद की संवैधानिकता को इस आधार पर चुनौती दी थी कि यह अपवाद उन विवाहित महिलाओं के साथ भेदभाव करता है जिनके साथ उनके पति रेप करते हैं.

क्या है IPC का अपवाद?

धारा 375 के अपवाद के मुताबिक अगर पत्नी नाबालिग (Minor) नहीं है, तो उसके पति का उसके साथ यौन संबंध बनाना या शारीरिक संबंध बनाना रेप की श्रेणी में नहीं आता है. कोर्ट ने इस केस में इस मामले में 393 पन्नों का खंडित फैसला सुनाया. इनमें से 192 पन्ने जस्टिस शकधर ने लिखे हैं. 

मैरिटल रेप पर एकमत नहीं हैं जज

जस्टिस शकधर ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि जहां तक मेरी बात है तो विवादित प्रावधान धारा 375 का अपवाद (Exception) 2 संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19 (1) (A) और 21 का उल्लंघन हैं और इसलिए इन्हें समाप्त किया जाता है. अनुच्छेद 14 जहां इक्वैलिटी की बात करता है, वहीं 15 धर्म, नस्ल, जाति, लिंग और जन्म स्थान के भेदभाव को खत्म करता है. अनुच्छेद 19 (1) (A) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात करता है. अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की बात करता है. जस्टिस शंकर ने वहीं कहा था कि मैं इस फैसले से सहमत नहीं हूं. यह प्रावधान अनुच्छेद 14, 19 (1) (A) और 21 का उल्लंघन नहीं है.

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