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Taiwan vs China: चीन-ताइवान के बीच विवाद की वजह क्या है? क्या दोनों देशों के बीच हो सकता है युद्ध

China-Taiwan Dispute: ताइवान पहले चीन का ही हिस्सा था. अब चीन वन चाइना पॉलिसी के तहत इसे फिर से कब्जाने की कोशिश कर रहा है. 

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डीएनए हिंदीः अमेरिकी स्पीकर नैंसी पेलोसी (Nancy Pelosi) की ताइवान (Taiwan) यात्रा के बाद चीन बौखला गया है. चीन ने ताइवान की सीमा के नजदीक युद्धाभ्यास भी शुरू कर दिया है. इसमें उसके अत्याधुनिक जे-20 विमान भी शामिल है. खबर यह भी है कि चीन के 21 लड़ाकू विमान ताइवान की सीमा में घुस गए हैं. चीन ने भी ताइवान और अमेरिका को इसका अंजाम भुगतने की धमकी दी है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर दोनों देशों के बीच टकराव की वजह क्या है. 

चीन-ताइवान के बीच विवाद क्या है?
चीन वन चाइना पॉलिसी के रास्ते पर चल रहा है. इसी के तहत वह ताइवान को अपने देश का हिस्सा मानता है. दूसरी तरफ ताइवान खुद को संप्रभु राष्ट्र मानता है. 73 साल से दोनों देशों के बीच इसी बात को लेकर टकराव चल रहा है. दोनों देशों के बीच सिर्फ 100 मील की दूरी है. ताइवान दक्षिण पूर्वी चीन के तट से काफी करीब है. ऐसे में टकराव की खबरें लगातार सामने आती रहती हैं. ताइवान की समुद्री सीमा में भी चीन लगातार घुसपैठ करता रहता है. चीन नहीं चाहता है कि ताइवान के मुद्दे पर किसी भी तरह का विदेशी दखल हो. 

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कभी चीन का हिस्सा था ताइवान
ताइवान पहले चीन का हिस्सा था. दोनों देशों के बीच लंबे समय तक युद्ध चला. 1644 के दौरान जब चीन में चिंग वंश का शासन तो ताइवान उसी के हिस्से में था. 1895 में चीन ने ताइवान को जापान को सौंप दिया. इसी के बाद से दोनों देशों के बीच विवाद शुरू हो गया. 1949 में चीन में गृहयुद्ध हुआ तो माओत्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्टों ने चियांग काई शेक के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कॉमिंगतांग पार्टी को हरा दिया. इसके बाद कॉमिंगतांग पार्टी ताइवान पहुंच गई और वहां जाकर अपनी सरकार बना ली. दूसरे विश्वयुद्ध में जापान की हार हुई तो उसने कॉमिंगतांग को ताइवान का नियंत्रण सौंप दिया. इसके बाद से ताइवान में चुनी हुई सरकार बन रही है. वहां का अपना संविधान भी है. चीन की कम्युनिस्ट सरकार ताइवान को अपने देश का हिस्सा बताती है. चीन इस द्वीप को फिर से अपने नियंत्रण में लेना चाहता है.    

चीन की वन चाइना पॉलिसी क्या है?
ताइवान को लेकर चीन इतना बेचैन क्यों है, इसके लिए पहले चीन की वन चाइना पॉलिसी को समझना होगा. 1949 में पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) ने वन चाइना पॉलिसी बनाई. इसमें ना सिर्फ ताइवान को चीन का हिस्सा माना गया बल्कि जिन जगहों को लेकर उसके अन्य देशों के साथ टकराव थे, उन्हें भी चीन का हिस्सा मानते हुए अलग पॉलिसी बना थी. अंतरराष्ट्रीय मंच पर चीन इन हिस्सों को प्रमुखता से अपना बताता रहा है. इस पॉलिसी के तहत मेनलैंड चीन और हांगकांग-मकाऊ जैसे दो विशेष रूप से प्रशासित क्षेत्र भी आते हैं.  

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अमेरिका समेत अन्य देश क्यों ताइवान को दे रहे प्रमुखता? 
ताइवान को बुद्धिजीवियों को देश भी कहा जाता है. वहां की आबादी भले ही कम हो लेकिन तकनीक के मामले में वह दुनिया में नंबर एक पर है. ताइवान दुनिया में चिप बनाने के मामले में पहले नंबर पर है. यह देश लैपटॉप से लेकर महंगे फोन और घड़ियों का उत्पादन करती है. ताइवान की कंपनी वन मेजर दुनिया की बड़ी चिप निर्माता कंपनियों में एक है. दुनिया में चिप निर्माण के मामले में यह कंपनी अकेले ही आधे से ज्यादा का उत्पादन करती है. इस तरह से कहें तो इलेक्ट्रिक वाहनों से लेकर फोन, लैपटॉप और जहाज से लेकर सैटेलाइट तक में इस्तेमाल होने वाले चिप के लिए पूरी दुनिया ताइवान पर ही निर्भर है. 

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