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क्या है One China Policy? भारत समेत अन्य देशों का इसे लेकर क्या है रुख

China-Taiwan: चीन अपनी वन चाइना पॉलिसी के तहत ताइवान को अपना हिस्सा मानता है. दोनों देशों के बीच तकरार की खबरें लगातार सामने आ रही हैं. 

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डीएनए हिंदीः अमेरिकी स्पीकर नैंसी पैलोसी (Nancy Pelosi) की ताइवान (Taiwan) यात्रा के बाद से चीन और अमेरिका के बीच तकरार बढ़ गई है. वहीं चीन ने ताइवान को भी इसे लेकर अंजाम भुगतने की धमकी दे दी है. चीन इसे अपनी वन चाइना पॉलिसी में दखल मान रहा है. दरअसल चीन ताइवान को कभी भी एक अलग प्रांत के रूप में नहीं देखता है और चीन को उम्मीद है कि ताइवान एक दिन उसके साथ एक हो जाएगा. इसी के बाद से वन चाइना पॉलिसी एक बार फिर चर्चा में आ गई है. आखिर यह पॉलिसी क्या है और दुनिया के कई देश इसे मान्यता देने के कतरा रहे हैं. अपनी इस रिपोर्ट में इसे विस्तार से समझते हैं.  

चीन की वन चाइना पॉलिसी क्या है?
ताइवान को लेकर चीन इतना बेचैन क्यों है, इसके लिए पहले चीन की वन चाइना पॉलिसी को समझना होगा. 1949 में पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) ने वन चाइना पॉलिसी बनाई. इसमें ना सिर्फ ताइवान को चीन का हिस्सा माना गया बल्कि जिन जगहों को लेकर उसके अन्य देशों के साथ टकराव थे, उन्हें भी चीन का हिस्सा मानते हुए अलग पॉलिसी बना थी. अंतरराष्ट्रीय मंच पर चीन इन हिस्सों को प्रमुखता से अपना बताता रहा है. इस पॉलिसी के तहत मेनलैंड चीन और हांगकांग-मकाऊ जैसे दो विशेष रूप से प्रशासित क्षेत्र भी आते हैं.  

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कभी चीन का हिस्सा था ताइवान
ताइवान पहले चीन का हिस्सा था. दोनों देशों के बीच लंबे समय तक युद्ध चला. 1644 के दौरान जब चीन में चिंग वंश का शासन तो ताइवान उसी के हिस्से में था. 1895 में चीन ने ताइवान को जापान को सौंप दिया. इसी के बाद से दोनों देशों के बीच विवाद शुरू हो गया. 1949 में चीन में गृहयुद्ध हुआ तो माओत्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्टों ने चियांग काई शेक के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कॉमिंगतांग पार्टी को हरा दिया. इसके बाद कॉमिंगतांग पार्टी ताइवान पहुंच गई और वहां जाकर अपनी सरकार बना ली. दूसरे विश्वयुद्ध में जापान की हार हुई तो उसने कॉमिंगतांग को ताइवान का नियंत्रण सौंप दिया. इसके बाद से ताइवान में चुनी हुई सरकार बन रही है. वहां का अपना संविधान भी है. चीन की कम्युनिस्ट सरकार ताइवान को अपने देश का हिस्सा बताती है. चीन इस द्वीप को फिर से अपने नियंत्रण में लेना चाहता है.    

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चीन-ताइवान के बीच विवाद क्या है?
चीन वन चाइना पॉलिसी के रास्ते पर चल रहा है. इसी के तहत वह ताइवान को अपने देश का हिस्सा मानता है. दूसरी तरफ ताइवान खुद को संप्रभु राष्ट्र मानता है. 73 साल से दोनों देशों के बीच इसी बात को लेकर टकराव चल रहा है. दोनों देशों के बीच सिर्फ 100 मील की दूरी है. ताइवान दक्षिण पूर्वी चीन के तट से काफी करीब है. ऐसे में टकराव की खबरें लगातार सामने आती रहती हैं. ताइवान की समुद्री सीमा में भी चीन लगातार घुसपैठ करता रहता है. चीन नहीं चाहता है कि ताइवान के मुद्दे पर किसी भी तरह का विदेशी दखल हो. 

ये भी पढ़ेंः चीन-ताइवान के बीच विवाद की वजह क्या है? क्या दोनों देशों के बीच हो सकता है युद्ध

वन चाइना पॉलिसी पर अन्य देशों का रुख
दुनिया में आज केवल 15 देश ही ROC को मान्यता देते हैं. इनमें बेलीज, ग्वाटेमाला, हैती, होली सी, होंडुरास, मार्शल आइलैंड्स, नाउरू, निकारागुआ, पलाऊ, पराग्वे, सेंट लूसिया, सेंट किट्स एंड नेविस, सेंट विंसेंट एंड द ग्रेनाडाइन्स, स्वाजीलैंड और तुवालु शामिल हैं. यहां तक ​​कि संयुक्त राष्ट्र और विश्व व्यापार संगठन यानी WTO जैसे अंतरराष्ट्रीय अंतर-सरकारी निकाय भी आधिकारिक तौर पर आरओसी को मान्यता नहीं देते हैं. भारत का रुख इस मामले में तटस्थ है. किसी समय उसने चीन की वन चाइना पॉलिसी का समर्थन किया था लेकिन गलवान में हुई हिंसक झड़प के बाद भारत का रुख बदल गया है. इतना ही नहीं ताइवान की तत्कालीन राष्ट्रपति के शपथग्रहण में दो सांसद वर्चुअली भी जुड़े थे. 

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