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Tipu Sultan: देश का बहादुर योद्धा या धार्मिक कट्टरता का प्रचारक? समझिए क्यों बार-बार होता है विवाद

Tipu Sultan Controversy in Hindi: मैसूर के शासक रहे टीपू सुल्तान के नाम पर हर साल एक-दो बार विवाद हो ही जाता है. एक बार फिर टीपू सुल्तान चर्चा में हैं

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Tipu Sultan: देश का बहादुर योद्धा या धार्मिक कट्टरता का प्रचारक? समझिए क्यों बार-बार होता है विवाद

टीपू सुल्तान

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डीएनए हिंदी: इतिहास के पन्नों में दर्ज मैसूर के टीपू सुल्तान (Tipu Sultan) का नाम अब 'विवादित' माना जाने लगा है. बीते कुछ सालों में टीपू सुल्तान का नाम अक्सर विवादों की वजह से ही चर्चा में आता है. अब बेंगलुरु-मैसूर टीपू एक्सप्रेस (Tipu Express) का नाम बदलकर बेंगलुरु-मैसूर वोडयार एक्सप्रेस कर दिया गया है. इस पर हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) और कांग्रेस पार्टी ने सवाल उठाए हैं. असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), टीपू सुल्तान के नाम को मिटाने पर तुली है लेकिन यह इतना आसान नहीं है.

बीते कुछ सालों में टीपू सुल्तान की जयंती मनाने या न मनाने और टीपू सुल्तान को आजादी की लड़ाई का 'शहीद' मानने या न मानने को लेकर खूब बहस हुई है. कई बार इन बहसों ने विवादों का रूप भी लिया है. आइए विस्तार से समझते हैं कि टीपू सुल्तान आखिर थे कौन और क्या वजह है कि उनके नाम के साथ इतने सारे विवाद जुड़ गए हैं.

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मैसूर यानी आज के कर्नाटक का एक हिस्सा. 16वीं-17वीं शताब्दी में यह एक बड़ी रियासत हुआ करता था. हैदर अली यहां के सेनापति और फिर स्वघोषित शासक थे. साल 1750 में हैदर अली के बेटे टीपू सुल्तान का जन्म हुआ. अंग्रेजों के खिलाफ हैदर अली और टीपू सुल्तान ने लंबी जंग लड़ी. मैसूर ने ऐलान किया था कि वह ब्रिटिश साम्राज्य के आगे कभी सिर नहीं झुकाएगा. तीन युद्धों में मैसूर ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ाए लेकिन आखिर में टीपू सुल्तान की हार हुई.

टीपू सुल्तान की तारीफ का कारण
अंग्रेजों के खिलाफ जमकर लोहा लेने वाले टीपू सुल्तान को 'मैसूर का टाइगर' कहा जाता है. टीपू सुल्तान ने सिर्फ़ 17 साल की उम्र में पहले आंग्ल-मैसूर युद्ध में हिस्सा लिया. चार युद्धों तक अंग्रेजों, मराठाओं और निजामों को नाके चने चबवाने वाले टीपू सुल्तान को उनके सैन्य कौशल, कुशल रणनीति और सेना के आधुनिकीकरण के लिए जाना जाता है. टीपू सुल्तान ने व्यापार के क्षेत्र में मैसूर और भारत के अलग-अलग हिस्सों के साथ-साथ विदेश में भी खूब काम किया और कारोबार को कई गुना बढ़ा दिया. कहा जाता है कि टीपू सुल्तान ने एक बार बाघ को अपने खंजर से मार डाला था, इसी वजह से उन्हें 'मैसूर का टाइगर' कहा जाने लगा था.

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क्यों होती है टीपू सुल्तान की आलोचना?
दक्षिणपंथियों का मानना है कि टीप सुल्तान ने अपने शासनकाल में हिंदू मंदिरों के साथ-साथ ईसाइयों के चर्चों पर खूब हमले किए. इसके अलावा, उसने धर्मांतरण, दूसरे धर्म की महिलाओं के साथ बलात्कार और हत्या जैसी चीजों को भी बढ़ावा दिया. बीजेपी के कई नेता भी टीपू सुल्तान को हिंदू विरोधी और अत्याचारी बताते रहते हैं. हालांकि, कुछ लोग टीपू सुल्तान को धर्म निरपेक्ष और काफी उदार शासक भी बताते हैं. कहा जाता है कि टीपू सुल्तान की सेना में हिंदू-मुस्लिम दोनों थे. 

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क्यों शुरू हुआ अंग्रेजों और ब्रिटिश शासन का झगड़ा
मैसूर पहले एक हिंदू राज्य हुआ करता था. बाद में हैदर अली ने अपनी रणनीति और कौशल के दम पर सत्ता हथिया ली. फ्रांसीसी कंपनियों से हैदर अली की करीबी और मालाबार तट पर कब्जे के चलते अंग्रेज परेशान थे. कैसे भी करके उन्हें मैसूर चाहिए था. इसके बावजूद अंग्रेज पहले आंग्ल-मैसूर युद्ध में कुछ ज्यादा नहीं कर पाए और संधि करने पर मजबूर हो गए.

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दूसरे युद्ध में मराठों ने मैसूर पर हमला किया तो अंग्रेज उसकी मदद कर रहे थे. इसकी वजह से मैसूर ने फ्रांस से मदद ली. नतीजा ये हुआ कि हैदर अली ने अंग्रेजों के खिलाफ मराठाओं और निजाम से गठबंधन कर लिया. 1982 में हैदर अली की कैंसर की वजह से मौत हो गई. दूसरे युद्ध के बाद मैंगलोर की संधि हुई और दोनों पक्षों ने एक-दूसरे से जीते क्षेत्रों को लौटा दिया.

अंग्रेजों के सामने सिर झुकाने को तैयार नहीं था मैसूर
टीपू सुल्तान ने मैसूर की कमान संभाली और अपने पिता की तरह ही अंग्रेजों के सामने सिर झुकाने से इनकार कर दिया. टीपू ने भी सेना के रखरखवा पर खास ध्यान दिया और सैनिकों की जबरदस्त ट्रेनिंग करवाई. टीपू सुल्तान ने नेवी को भी खूब अहमियत दी. टीपू सुल्तान को भारत में रॉकेट के प्रणेता के रूप में भी जाना जाता है. तीसरे युद्ध में टीपू ने अंग्रेजों का जमकर मुकाबला किया. इस बार निजाम और मराठा, अंग्रेजों के साथ हो गए थे. नतीजा यह हुआ कि 1792 में श्रीरंगपटनम की संधि हुई और मैसर का आधा हिस्सा उससे छिन गए.

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चौथा युद्ध मैसूर का काल बन गया. 1799 में युद्ध जब खत्म हुआ तो टीपू सुल्तान की हार हुई. इस युद्ध में भी मराठाओं और निजाम ने अंग्रेजों की मदद की. अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान के सारे खजाने जब्त कर लिए. युद्ध में टीपू सुल्तान शहीद हो गए. हालांकि, आसानी से राज्यों पर कब्जा करने वाले अंग्रेजों को मैसूर जीतने में 32 साल लग गए और टीपू सुल्तान का नाम हमेशा के लिए अमर हो गया.

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